Monday, 2 March 2020

Stories of Life : स्नेह भवन

स्नेह भवन

बच्चे और पति दोनों को उनके school  और office भेजने के बाद नीरजा कपड़े उठाने छत पर आई, उसने कुछ कपड़े अभी तार से उतारे ही थे  कि उसकी  नज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं।

ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस तरह से  मेरे घर की ओर ताकती है?’


यह कौन है? और मेरे घर को ऐसे क्यों देखती रहती  है? मन में शंकाएं पनपने लगीं. इससे पहले भी नीरजा  उस बुढ़िया को तीन-चार बार notice  कर चुकी थी.

इस घर में shift हुए उन्हें साल भर भी नहीं हुआ था, इससे पहले  वो गाज़ियाबाद में रहते थे, साथ में सासू माँ भी थीं। नीरजा की नौकरी बहुत अच्छी चल रही थी, उसे बच्चों की चिंता नहीं थी। बच्चे दिन भर दादी के साथ जो रहा करते थे। 

नीरजा की माँ तो पहले ही नहीं थीं, पर जब से माँ जी स्वर्गलोक चली  गईं, पूरे परिवार से बड़े बुजुर्गों का साया ही चला गया। 

उनके जाने से वो घर, पूरे परिवार को बहुत दुखी करता था, सबका अपने काम में मन लगना बंद हो गया था। एक दिन ऋषि ने नीरजा से कहा, मुझे दिल्ली में अच्छी job मिल रही है, माँ के जाने से यह घर तो अब वैसे भी रास नहीं आता। अगर तुम्हें ठीक लगे तो हम दिल्ली में घर ले लें?

जैसा तुम को ठीक लगे, नीरजा बोली। 

मैंने वहाँ के school में भी छोटू, मिनी के admission की  बात कर ली है।  बस एक ही problem है, तुम्हारे लिए manage करना difficult होगा, क्योंकि तुम्हारा office दूर पड़ेगा। 

तुम उसकी चिंता मत करो, मैं उसे छोड़ रही हूँ। 

क्यों ?

अब जब बच्चों की दादी नहीं हैं, तो इन्हें कौन देखेगा, बहुत difficulty होती है। 

पर वो job तुम्हें बड़ी मेहनत के बाद मिली है। 

कर क्या सकते हैं? मैंने भी मन पर पत्थर रखकर, ये बात बोली है ,  दुख से भरी नीरजा बोली। 

कुछ दिनों में ही वो दिल्ली आ गए ।  इस job में ऋषि official tour में बहुत ज्यादा व्यस्त हो गया।  छोटू और मिनी का admission भी हो गया , नए school में  वो दोनों भी धीरे धीरे adjust हो रहे थे। लेकिन नीरजा, आए दिन अपनी नौकरी को miss  करती थी,  बरसों की मेहनत को यूं छोड़ देना आसान नहीं होता। 

फिर भी वो adjust करने की कोशिश कर रही थी। 

पर रोज़, रोज़ इस अनजानी ,विचित्र बुढ़िया का दिखना, कहीं ना कहीं नीरजा को डराने भी लगा,  कहीं छुपकर घर की टोह तो नहीं ले रही? वैसे भी इस इलाके में चोरी और फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कोई नई बात नहीं है. सोचते-सोचते नीरजा  परेशान हो उठी.......

आगे पढ़ें, स्नेह भवन(भाग- 2) में