Wednesday, 17 July 2019

Poem : मन खिल जाता है

मन खिल जाता है



सावन की पहली वर्षा
गिरती है जब नन्ही कोपल पर
मन धरा का खिल जाता है
नवजीवन की आशाओं पर
पड़ती हैं वही बूंद जब
चातक के प्यासे अधरों पर
मन चातक का खिल जाता है
प्रेम मिलन की इच्छाओं पर
गिरे वही बूंद जब 
 अधखुली-सी सीपी पर
मन सीपी का खिल जाता है
नव मोती के निर्मित होने पर
होती है जब यह वर्षा 
महीनों से सूखे खेतों पर
मन कृषक का खिल जाता है
खेतों में हरियाली होने पर
होती है जब यह वर्षा 
मुरझाये वन, उपवन में
मन मयूर का खिल जाता है
नृत्य की अभिलाषा होने पर
गिरती हैं यही बूंदें जब 
हो चुके मलिन पल्लव पर
मन कोकिला का खिल जाता है
मधुर गान की कामना होने पर
सावन के इसी महीने में 
महादेव की दृष्टि रहती भक्तों पर 
मन भक्तों का खिल जाता है 
महादेव के दर्शन होने पर 
ऐसे ही आपकी प्रेम वर्षा 
प्रेरित करती मुझको लिखने पर 
मन मेरा भी खिल जाता है
सतत लिखने की आकांक्षा होने पर

आप सभी को सावन के आगमन की हार्दिक शुभकामनाएं