Wednesday, 19 December 2018

Poem : हमसफ़र का साथ

हमसफ़र का साथ 


ज़िंदगी की राह
टेड़ी-मेड़ी हो मगर
साथ हो गर हमसफर,
तो रास्ता कट जाता है,
कठनाईयाँ कब पड़ी
ये समझ नहीं आता है
इसलिए ही खुदा ने
अकेला ना भेजा हमें  
   हमसफर का साथ दिया     
   ना घिरे परेशानियों में     
हाथों में उसका हाथ दिया
और कोई साथ दे ना दे
संग चलेगा हमसफर
चाहे कितनी भी हो लंबी
हो कठिन चाहे डगर
जो हमसफर है तुम्हारा  
उसका मान करो सम्मान करो
है धरोहर वो खुदा की
भूल से भी कभी भी
उसका ना अपमान करो