Monday, 14 November 2022

Poem : मेरे अंदर का बच्चा

मेरे अंदर का बच्चा 


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो 

बहते पानी को 

कागज़ की कश्ती

चलाने को मचलता है 


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो

ज़मीन में खींची लकीरों को

इक्कड़ दुक्कड़ 

खेलने लगता है 


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है  



देखता है जब वो

कहीं कोई झूला 

झूला झूलने का 

उसका मन करता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो 

कोई पटाखा चलता 

उसकी तेज़ आवाज़ से

झूम जाने का मन करता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है  


देखता है जब वो

कोई कंकड़ 

उसे पानी में

चलाने का मन करता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो

कटी हुई पतंग को 

उसकी डोर पकड़ कर

उड़ाने को मन करता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो

कोई रस्सी 

मन उसका भी

कूदने का करता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 


देखता है जब वो

किसी को उंगलियां मिलाए हुए 

उंगली बीच की ढूंढ लूंगा

मन में वो चिल्लाता है


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है 

देखता है जब वो

माँ का आंचल

उसमें फिर से 

छिप जाने का मन करता है 


मेरे अंदर का बच्चा

आज भी मुझमें 

जिंदा है... 




एक बार आप भी अपने मन को टटोलिए जरुर... 

Happy children's day🥳💞🎊