Wednesday 7 February 2024

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3

अब तक के trip review में हम आपको तलवार म्यूजियम और वाघा बॉर्डर के बारे में बता चुके हैं। 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का 

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -2

चलिए अब आगे के सफ़र में चलते हैं -

Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का -3 


राम तीरथ 




Border से चल कर हम लोग रामतीरथ‌ या लवकुश मंदिर गये। यह वो जगह है, जहां त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि जी का आश्रम था और माता सीता उस समय उनके पास थी, जब वो pregnant थी। 

इसी आश्रम में उन्होंने अपने पुत्र लव को जन्म दिया था और महर्षि वाल्मीकि जी के आशीर्वाद से कुश को भी पुत्र रूप में प्राप्त किया था।

जब प्रभु श्री राम जी ने अश्वमेध यज्ञ किया था तब यहीं पर लव व कुश ने उनके घोड़े को पकड़ा था तथा हनुमान जी भी दोनों बच्चे के प्रेम और प्रभु श्री राम जी की भक्ति में यहीं बंधे थे। 

यह आश्रम रुपी मंदिर बहुत सुंदर है। एक और विशेषता है, अमृतसर के बड़े मंदिरों की, कि वो सरोवर के बीच में स्थित होते हैं। और यह विशेषता वहां के मंदिरों में चार चांद लगा देती है। 

साथ ही सरोवर का हल्का हल्का बहता हुआ पानी एक विशेष शांति और जीवटता उत्पन्न करता है। जिससे मंदिर का वातावरण पूजा अर्चना और positive vibes के लिए अनुकूल हो जाता है।

यहां के पवित्र माहौल के बाद, हमने golden temple जाने का विचार बनाया था। 

पर हमारे car driver ने कहा कि आज बाबा दीप सिंह जी का जन्म हैं, अतः अत्यधिक भीड़ होगी। अतः आज के बजाए कल का program रखें। 

तो हम उस दिन वापस अपने hotel आ गये। पर हम आपसे यही कहेंगे कि आप पहले दिन ही golden temple जाएं और माथा टेक लें। क्योंकि वहां माथा टेकने जाना बहुत आसान नहीं है। बहुत भीड़ होती है।

Golden temple  ‌


Golden temple, बहुत सुन्दर, बहुत भव्य और अत्यंत दिव्य। वो जितना खूबसूरत है उतना ही शांत और पवित्र भी। उसका वर्णन करना सूरज को दीपक दिखाना है। पर अपनी आस्था और श्रद्धा के दीपक द्वारा यह धृष्टता कर रहे हैं। बाबा जी, हमारे आस्था के फूल स्वीकार करें। 

यह हम लिखकर उनके श्रीचरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित कर रहे हैं 🙏🏻

वहां रहकर समय का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, क्योंकि आप ऐसे सुख और आनंद की अवस्था में रहेंगे कि आप को अपनी सुध-बुध ही नहीं होगी। वहां सब बाबाजी की मेहर लेने आते हैं। 

Golden temple के लिए लोगों के मन में बहुत अधिक श्रृद्धा है। वहां सुबह के 2 बजे से ही लोग नहा-धोकर पहुंच जाते हैं और तभी से ही line में खड़े हो जाते हैं, सुबह के 3 बजे से गुरुद्वारे में जाना आरंभ हो जाता है।‌ जो कि रात 10 बजे तक होता है। गर्मियों में मंदिर के दरवाजे बंद होने का समय 11 बजे है।

वहां जाने के लिए आपको शालीन वस्त्र पहनने होंगे। सिर ढककर रखना होगा, पर वहां टोपी पहनना allowed नहीं है। 

वहां अंदर पहुंचने से पहले अपने जूते-चप्पल, जूता घर में रखकर हाथ धोकर व पैर भी नीचे बहते हुए जल से धोकर जाना होता है। 

मंदिर के चारों ओर सरोवर है, जो कि बहुत पवित्र और मनोकामना को पूर्ण करने वाला माना जाता है। वहां हाथ, मुंह, पैर धोकर जल को सिर-माथे लगाया जाता है। आप चाहे तो सरोवर में डुबकी भी लगा सकते हैं। कहा जाता है इस का जल दुःख, कष्ट, व्याधि को दूर करने वाला होता है।

मंदिर में पंहुचने तक आप आधे मंदिर की परिक्रमा लगा लेते हैं। उसके बाद आप वहां पहुंचेंगे जहां, अंदर जाने के लिए line बनती है। 

वहीं अकाल तख्त साहिब भी है, वहां भी माथा टेकते हैं। 

हम भी line में लगे थे, पर भीड़ बहुत होने के कारण line बहुत धीरे धीरे बढ़ रही थी।

और फिर वही हुआ, जिसका हमें डर था। रात के दस बज गए थे और हम अंदर जाने से वंचित रह गए। 

हम मायूस होकर लौटने लगे, तभी किसी ने कहा कि स्वरुप अभी आएंगे और उनके दर्शन, माथा टेकने के समकक्ष ही हैं।

थोड़ी देर में एक पालकी में गुरू ग्रंथ साहिब को लेकर आए और हम ने वहीं खड़े खड़े माथा टेक लिया। हम पर बाबा जी की मेहर हो गई।

अकाल तख्त साहिब पर माथा टेकने गये तो हमें हलवा का प्रसाद भी मिल गया।

उसके बाद हम लोग ने प्रसाद रुपी लंगर भी ग्रहण किया। Golden temple में 24 घंटे लंगर चलता है। लंगर चखने से पहले और बाद में दोनों समय पैर धोकर ही जाते हैं। वहां पर उपस्थित सभी सेवादार, चुस्त दुरुस्त अपने कार्य को पूजा मानकर लगे हुए थे। दिन भर में ना जाने कितने हजारों लोग लंगर खाकर जाते हैं, पर भोजन व्यवस्था बहुत सुचारू रूप से चलती है कि कुछ भी कमी या गड़बड़ी नहीं होती है। 

सिखों के गुरुद्वारे का एक ही नियम है कि सब याचक हैं, सब एक समान हैं। बाबा जी के दरबार में जो कोई आएगा, उनकी मेहर जरुर से पाएगा।

शायद यही वजह थी कि हम वहां जाकर खाली हाथ नहीं लौटे, हम उनके स्वरुप के दर्शन भी हुए, हमने माथा टेका, हलुआ रुपी प्रसाद व लंगर प्रसाद ले सके। 

बाबा जी की मेहर हो गई। तो हम आप से यही कहेंगे कि अगर किसी कारण वश आप दिन में गुरुद्वारा साहिब नहीं आ पाए हों तो रात में जाएं और भीड़ के कारण अंदर प्रवेश ना कर पाए तो रुक कर स्वरुप के दर्शन अवश्य करें। उसे ही अपने आंखों में बसा कर जाएं।

जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल वाहेगुरु जी का खालसा वाहे गुरु जी की फतेह 

एक विशेष बात ध्यान देने योग्य की अगर संभव हो पाए तो यह पता कर के जाएं कि वहां किसी व्यक्ति विशेष जैसे उनके किसी गुरु जी या किसी विशेष व्यक्ति का जन्म तो नहीं है, क्योंकि ऐसा होने पर golden temple पर भीड़ बढ़ जाती है, शनिवार और रविवार को भी भीड़ बहुत ज़्यादा होती है।‌ अगर आप ऐसे दिन में पहुंच गए हैं तो बस बाबा जी पर श्रद्धा और धैर्य रखकर आगे बढ़ते जाएं, आगे उनकी मेहर तो मिल ही जानी है, वो अपने भक्तों पर कृपा अवश्य बरसाते हैं 🙏🏻