Thursday, 31 May 2018

Kiddo Delight : Schezwan Paneer Burger




Schezwan Paneer Burger

Kids, nowadays, are happy while having burger, pizza, etc. but are reluctant of nutritious, healthy food.
Are you worried about their health as well as fulfill their demands? So here’s the second recipe of Kiddo Delight section, Schezwan Paneer Burger. It’s more healthy than Aloo Tikki Burger as, instead of Potatoes, it contains Paneer. My this innovative recipe can be made easily.

Ingredients:

  • Burger  bun              4
  • Paneer                      200gm
  • Cheese slice            4
  • Onion                         1 medium
  • Tomato                      1 medium
  • Capsicum                  1 medium
  • Butter                         75gm
  • Mayonnaise              75gm
  • Schezwan  chutney  50gm

Method:

  1. Prepare a paste of butter & Ching’s schezwan chutney.
  2. Now, cut paneer into thick slices, as shown in fig.:2. Apply the paste on the paneer slices & keep them aside to get marinated, for about 15-30 minutes.
  3. Later, take a pan &  fry the slices (टिक्की की तरह सेंक लीजिये).
  4. Then, cut the buns into two halves, horizontally.
  5. Apply mayonnaise on the inner side of one & butter on the other half. Take the lower half of the bun, place a fried paneer slice, then slices of tomato, onion & capsicum on it, and then a cheese slice. Close it with the upper half of the bun.
  6. Now, keep it in the oven for 1 min, at 900°C and the Schezwan Paneer Burger is ready to consume.

N.B.:

  • If you want to make it spice less, the paneer slices can be marinated only with butter.
  • The Schezwan Paneer Burger can be served in other three variants, i.e.:

  1. Maggi Masala Paneer Burger (marinate it with butter & Maggi Masala)
  2. Mint Masti Panner Burger (marinate it with butter &  mint chutney)
  3. Achaari Tadka Paneer Burger (marinate it with butter & achaar’s masala)

Wednesday, 30 May 2018

Article : व्यक्तित्व एक प्रेरणा


व्यक्तित्व एक प्रेरणा



आज मैं आप सब के साथ अपने दादा जी डॉक्टर बृजबासी लाल जी के संदर्भ में कुछ विचार व्यक्त करने जा रही हूँ।

आप सब सोच रहे होंगे? ये क्या, ये तो अपने घर के सदस्य के विषय में बताने लगीं? अपने दादा-दादी तो सभी को प्रिय होते हैं, ऐसा क्या है? जो ऐसे बताया जा रहा है?

जी हाँ, आप सबका सोना सही है। पर मेरे दादा जी किसी परिचय के मोहता हीं हैं, वह बुंदेलखंड विश्व-विद्यालय के द्वितीय कुलपति के पद पर आसीन थे।

पर यहाँ मैंने उनके पद के विषय में बताने के लिए आप सबका ध्यान केन्द्रित नहीं किया है, अपितु यहाँ मैं आप सब को बताना चाह रही हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति ठान ले, तो उसको उसकी मंजिलों की ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता।

मेरे दादा जी अपने माता पिता के अकेले संतान थे, उनकी माँ का देहांत अल्पायु में ही हो गया था, अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त करने के पश्चात उन्होंने अपने पिता की सेवा करने के लिए तार बाबू की रेलवे की एक छोटी सी नौकरी प्रारम्भ कर दी थी

उस समय जल्दी विवाह हो जाता था, तो उनका भी विवाह जल्दी ही संपन्न हो गया, विवाह के पश्चात परिवार की जिम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगीं, पर वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे। 

घर-परिवार की सौ जिम्मेदारियों के बीच भी उन्होंने अपने कदम वहीं नहीं रोके, बल्कि उनके कदम तो किसी और ही मंजिलों की तलाश में आगे बढ़ने लगे।

उन्होंने तार बाबू की नौकरी छोड़ दी, और विद्या की देवी के चरणों में पुष्प अर्पण करने का मन बना लिया, और पुनः अध्यन प्रारम्भ कर दिया। 

तत्पश्चात वह एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक के पद र आसीन हो गए, उसके बाद उन्होंने  D.I.O.S. का पद प्राप्त किया, किन्तु यहाँ भी उनकी महत्वकांक्षा की पूर्ति नहीं हुई।

उन्होंने अपना अध्ययजारी रखा, और हमीदिया महाविद्यालय भोपाल में प्राध्यापक बन गए, उसके बाद दयानन्द वैदिक महाविद्यालय, उरई के प्राचार्य बने, पर उनकी  मंजिलों की ऊंचाई छूने की ख्वाइश यहाँ भी नहीं थमी, अपितु उन्होंने विद्या के सर्वोच्च पद कुलपति की उपाधि प्राप्त कर के ही अपनी कामनाओं की पूर्ति की। 

उन्हें नेपाल में भी सम्मानित किया गया था। जी हाँ, ऐसे ही व्यक्तितव के स्वामी थे मेरे दादा जी, जो लोगों की प्रेरणा-स्त्रोत बने।

उन्होंने दिखा दिया, यदि मनुष्य ठान ले, कि उन्हें अपनी मंजिलों की ऊचाइयों को छूना है, तो कोई भी जिम्मेदारियाँ, बाधाएं, आपको रोक नहीं सकतीं, पर आपकी कोशिशों में सच्चाई होनी चाहिए। 

साथ ही उनका कहना था, आपको लोगों के कहने का बुरा भी लगना चाहिए, क्योंकि उससे आपके अंदर एक आग जलने लगती है, और वो आग ही आपको आपकी ऊंचाइयों की ओर ले जाती है।

तो अगर आप भी कुछ कर दिखाना चाह रहे हैं, तो अपनी महत्वकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए व्यर्थ के बहाने न खोजें बल्कि एक सच्ची कोशिश करें, कामयाबी आपके कदम चूमेगी।
आज मेरे इस लेख को लिखने का तात्पर्य, महत्वाकांक्षी व्यक्तियों को जाग्रत करना है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति ही देश-उद्धारक होते हैं। 

Tuesday, 29 May 2018

Story Of Life : प्यार तो प्यार है - Part 3


अब तक आपने पढ़ा, रितेश और अलिया ने अपने प्यार के लिए क्या-2 सहा, पर क्या उन्हें परिवार वालों की स्वीकृति मिली, जानते हैं, part 3 में  

प्यार तो प्यार  है - Part 3                           

रितेश को पता चला, तो उसने अब्बू को बिना बताए, stockist का सारा काम संभाल लिया, अब दवाइयाँ समय पर आने लगी।
अलिया की बहन की शादी की सारी ज़िम्मेदारी भी रितेश ने ही संभाल ली, वहीं अब्बू की stockist, से बात हुई, अब्बू उसकी सबके सामने प्रसंशा करने लगे, तब उसने बताया, नहीं जनाब, घोड़ा घाँस से यारी करेगा, तो खाएगा क्या? आपके medicine के सारे cheques  रहमान  मियां पहले ही दे जाते हैं।
आज अब्बू को अपने दामाद में अपना बेटा दिख रहा था, कोई हिन्दू लड़का नहीं दिख रहा था
एक दिन रितेश के पापा की तबीयत काफी खराब हो गयी, उन्हें hospital में admit कर दिया गया, रितेश और अलिया ने पैसा पानी की तरह बहाया। बहुत प्रयासों के बावजूद भी वो उन्हें बचा नहीं सके
कुछ दिनों बाद रितेश को एक अच्छी company का offer आया Bombay जाना था रितेश और अलिया आपस में कमरे में बात कर रहे थे, रितेश बोल रहा था, मुझे एक हफ्ते में join करना है, one BHK flat ही मिलेगा, उसने अपने एक दोस्त से अलिया की job के लिए भी बात कर ली है। 
अलिया: आप कल ही flight से निकाल जाइएबड़ा घर ढूंढ लीजिये, तब मैं माँ के साथ आ जाऊँगी, वरना माँ को ऐसे कहाँ छोड़ जाएंगे?
रितेश: माँ कौन से, नए शहर में हैं? फिर मिनी भी तो यहीं है
अलिया: मिनी दी, अपना ससुराल देखेंगीं या माँ को देखेंगीं?
रितेश: तुम्हें फिर पता नहीं, इतनी अच्छी job मिलेगी कि हीं?
अलिया: ना मिले, जो मिलेगी, वही कर लूँगी
रितेश: तुम भी ना, बहुत जिद्दी हो माँ को तुमने इतने मंदिर घूमवा दिये, तीर्थ करा दिये, पर माँ के मन में तो, तुम्हारे लिए कभी प्यार जागा हीं, तुम बैठी रहो यहीं
अलिया: चाहे जो भी होमैं अभी नहीं जा रही हूँ
माँ, बाहर बहू-बेटे की बात सुन रही थीं, और सोचने लगींकि वो हमेशा यही सोचती रहीं, बेटा मंदिर- तीरथ करवा रहा है, कभी सोचा ही नहीं, कि कोई मुस्लिम लड़की भी ऐसा सोच सकती है। मैंने कभी इसे प्यार से नहीं देखाऔर एक ये है, जो अपने पति का साथ, अच्छी नौकरी किसी की परवाह नहीं कर रही है
आज उन्हें बहू में, अपनी बेटी नज़र आ रही थी, कोई मुस्लिम लड़की नहीं
रितेश ने Bombay पहुँच कर बड़ा घर ढूंढ लिया।
15 दिन बाद, आज वो माँ और अलिया दोनों को ले जा रहा था, अलिया के अम्मी-अब्बू भी आए थे, दोनों ही परिवार को रितेश और अलिया पर बहुत नाज़ था।
अब दोनों ही परिवार बड़े गर्व से कहते थे, प्यार तो प्यार होता है, उसमें कोई धर्म-समाज नहीं होता है, इंसान देखना चाहिएजाति धर्म हीं 


Monday, 28 May 2018

Poem : जी चाहता है

जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,
फिर से वही भाई बहन की नौकझौंक चाहता है
भाई का चिढ़ा के भाग जाना
छोटी छोटी बातों में बेवजह चिल्लाने को जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,
बहन से हमेशा बराबरी करना
वो, जब ससुराल गयी, तो आंहे भरना
उससे ढेरों गप्पे लड़ाने को जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,
पापा करते थे सारी फरमाइशें पूरी
नहीं रहती थीं, तब कोई ख्वाहिश अधूरी
फिर से पापा की गोद में बैठ जाने को जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,
कोई गलती हो, तो मां आगे खड़ी हो जाती
मुझ पे आंच आए, तो वो सबसे लड़ जाती
उसी आंचल में छुप जाने को जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,
हम इतनी जल्दी बड़े हुए क्यों
सब अपनों से दूर हो गये यूं
फिर उन्हीं गलियों में जाने को जी चाहता है
आज फिर दिल बचपन में लौट जाने को चाहता है,

Friday, 25 May 2018

Story Of Life : प्यार तो प्यार है -Part 2

अब तक आपने पढ़ा, कैसे रितेश और अलिया एक दूसरे से प्यार करने लगे ,तो इसमें ऐसा भी क्या हो गया, कि उनकी दोस्त मीरा सहम गयी, जानने के लिए पढ़िए  
प्यार तो प्यार है -Part 2

ऐसा भी क्या कर दिया, जो तुम इतनी परेशान हो, दोनों समवेत स्वर में बोले?
ये अलिया खान है, और तुम रितेश शर्मा, दोनों ने प्यार करने कि भूल कैसे कर ली? कैसे मिल पाओगे दोनों? क्या तुम्हारे माता-पिता इसके लिए राजी होंगे?
दोनों ने प्यार करते वक़्त, धर्म समाज के बारे में सोचा ही नही था, पर  आज मीरा ने उन्हे सच्चाई से अवगत करा दिया था।
दोनों ने decide किया, आज ही घर में, बात करेंगे।
वही हुआ, जिसका डर था, दोनों घरों में कोहराम मच गया।
रितेश और अलिया भी अडिग रहे कि हम इंसानों ने प्यार किया है, धर्म को नही, इंसानियत को ही माना जाए।
आखिरकार बच्चो की जिद के आगे, दोनों के परिवार वाले मान तो गए,पर इस शर्त पर कि, जब वो अपनी ससुराल में होंगे, तो उन्हे उनके धर्म के नाम के अनुसार नाम से पुकारा जाएगा।
रितेश का रहमान और अलिया का श्वेता नाम रख दिया गया। प्यार के आगे अपनी पहचान खोना, उन्हे मंजूर करना पड़ा।
दोनों एक दूसरे के परिवार मेँ रंगने लगे, पर परिवार ने हाँ तो कर दी, पर उन्हे दिल से नही अपना पाये, कोई अलिया के गोरे रंग कि तारीफ करता तो, रितेश कि माँ को यही लगता, इसी गोरे रंग को देख कर मेरा बेटा ऐसा दीवाना हो गया, कि धर्म -समाज सब भूल गया।
उधर रितेश को भी दामाद सा मान सम्मान नही मिल रहा था। पर दोनों ने अपनी अच्छाई नही छोड़ी, दोनों पूरे भाव से परिवार की सभी मांगों को निभाने में लगे रहे।
अलिया के अब्बू, homeopathy के काफी अच्छे doctor थे, पर अब वो बुजुर्ग हो चले थे, अलिया का कोई भाई नही था, stockist से medicine लाने की भाग दौड़, उन से अब संभव नही हो पा रही थी, जिसके चलते मरीज़ कम हो रहे थे।
रितेश को पता चला, तो उसने अब्बू को बिना बताए.......

अलिया के अब्बू को बिना बताए रितेश ने क्या किया.......


जानते हैं प्यार तो प्यार है के Part 3  में 

Thursday, 24 May 2018

Kids Story : मेहनत का मोल

समस्या : बच्चों को मेहनत का मूल्य समझना

कहानी :  मेहनत का मोल

अंशुल अपने Mummy Papa के साथ Delhi में रहता था, हर गर्मी की छुट्टियों में वो लोग घूमने जाते थे।
Papa, इस बार, हम लोग कहाँ घूमने जाएंगे? नहीं बेटा, हम लोग इस बार, कहीं घूमने नहीं जाएंगे, मुझे और तुम्हारी Mummy को इस बार कुछ काम से गाँव जाना है, 1 से 1½ महीने लग जाएँगे, तुम्हें नानी के घर छोड़ देंगे।
पापा गाँव क्या होता है? मुझे भी वहीं चलना है। बेटा गाँव में तुम्हारे साथ कोई खेलने वाला नहीं होगा, वहाँ बिजली पानी भी  ठीक से नहीं आते हैं, वहाँ तुम्हें A.C. नहीं मिलेगा। Papa तब भी मैं चलूँगा। Mummy बोलीं, इतनी जिद्द कर रहा है, तो ले चलते हैं, इसका मन नहीं लगा तो इसके  मामा ले जाएंगे इसे
अंशुल पहली बार गाँव आया था, उसके Mummy Papa  तो काम में लग गए, और अंशुल को अपने खेत के कामगर, हरिया के पास छोड़ देते थे।
अंशुल एक दिन हरिया के साथ अपने खेत गया, उन लोगों के खेत में tubewell के पास एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था, उसी से लगा एक कच्चा कमरा था, अंशुल को हरिया वहीं ले गया। कमरा बहुत ठंडा था, अंशुल ने घूम-घूम के देखा, पर उस कमरे में न तो A.C. लगा था, ना पंखा। उससे रहा ना गया, उसने पूछा चाचा इसका A.C. कहाँ है, वो बोले यहाँ A.C., पंखा कुछ नहीं है, एक तो कच्चा कमरा है, साथ ही tubewell और बरगद के पेड़ के कारण इतना ठंडा है।
चाचा आप कहाँ जा रहे हैं? बेटा मैं खेत जोतने जा रहा हूँ। खेत जोतना क्या होता है? खेत की कड़ी मिट्टी को मुलायम करना खेत जोतना होता है। इतनी धूप में चाचा? अरे बेटा, धूप-छाँव देखेंगे तो काम नहीं हो पाएगा। चाचा मैं भी चलूँ? नहीं बेटा, तुमसे नहीं होगा। पर अंशुल नहीं माना, चाचा थोड़ा सा ही कर लेने दो...
हरिया खेत जोतने लगा और बहुत ही छोटे हिस्से को अंशुल ने हरिया के साथ जोता, पर खेत की चिलचिलाती धूप ने उसे बुरी तरह से थका दिया और ज़मीन की कठोरता से उसके हाथों में छाले पड़ गए।
अगले दिन हरिया खेतों में बीज और पानी डालने गया, तो अंशुल भी अपने हिस्से में बी और पानी डालने गया।
अब तो रोज़ ही वो और हरिया खेत आते, क्योंकि ना तो Mummy Papa  के पास उसके लिए time था, ना वहाँ उसका कोई दोस्त था।
अंशुल वहीं कमरे में खेलता, कभी खेतों को निहारता, और साथ साथ में हरिया से रोज़ पूछता, पौधे कब निकलेंगे?
हरिया रोज़ कहता, बाबू निकल आएंगे, एक हफ़्ते बाद छोटे छोटे पौधे निकल आए,न्हें देख कर अंशुल बहुत खुश हुआ। रोज़ खेत में पानी डालना होता था।
दस दिन में पौधे कुछ बड़े हो गए थे, पर ये क्या? ना जाने और कौन-कौन से पौधे भी निकाल आए थे, चाचा, ये क्यों निकल आए? हमने तो इन्हें नहीं लगाया था?”
निकलते हैं, बेटा इन्हें हटाना पड़ता है, अंशुल ने पने हिस्से के जंगली पौधे निकाले, कुछ में कांटे भी थे, जो उसे चुभ गए। ऐसा डेढ़ महीने तक चला। Papa  mummy के सारे काम भी हो चुके थे। अंशुल के दिल्ली लौटेने का समय आ गया था।
उसने हरिया से पूछा, चाचा फसल कब कटेगी? वो बोले बेटा, अभी तो तीन महिना और लग जाएगा।
कई बार खाना अच्छा नहीं लग रहा है यह कह कर वो खाना छोड़ दिया करता था। पर आज उसे समझ आ गया था, कि उसे उगाने में कितनी मेहनत पड़ती है।
माँ पापा ने अंशुल से पूछा, कैसा लगा गाँव में?
अंशुल बोला Papa. farmer uncle कितनी मेहनत करते हैं, तब में खाना मिलता है, हाँ बेटा, फिर तुम्हारी mummy, भी उसे बहुत मेहनत और प्यार से बनाती हैं।
पापा, अब से मैं कभी खाना नहीं छोड़ूँगा। और अपने सारे दोस्तों को भी farmer uncle की मेहनत का मोल बताऊंगा।
Good बेटा, ऐसा सब सोच लें, तो देश में अन्न की कभी कमी नहीं रहेगी, कोई भूखा भी नहीं रहेगा। और देश भी खुशहाल रहेगा।