Friday, 4 May 2018

poem : हम भी कैसे होते हैं

हम भी कैसे होते हैं


हम भी कैसे होते हैं
परेशानी तो परेशानी होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
परेशानी दूसरों को हो, 
तो समझाते हैं
खुद पे आए तो, घबराते हैं
हम भी कैसे होते हैं

दर्द तो दर्द होता है, 
कम या ज्यादा कहाँ होता है
दर्द दूसरों को हो तो, 
सहनशीलता दर्शाते हैं
खुद को हो तो, 
सह हीं पाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

कमी तो कमी होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
कमी दूसरों की हो तो, 
झट बताते हैं
खुद की हो तो, तुरंत छिपाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

सफलता तो सफलता होती है, 
कम या ज्यादा कहाँ होती है
अपनी होती है तो, 
बढ़ा-चढ़ा के बताते हैं
दूसरों की हो तो, 
बेवजह घटाते हैं
हम भी कैसे होते हैं

सुख तो सुख होता है, 
कम या ज्यादा कहाँ होता है
अपने को मिले, 
इसके लिए मचलते हैं
दूसरों को मिले तो, जलते हैं
हम भी कैसे होते हैं

हर बात का मापदंड
अपने और दूसरों के लिए बदलते हैं
एक ही बात पे कभी दिल बड़ा, 
कभी छोटा कर लेते हैं  
हम भी कैसे होते हैं