Saturday 17 February 2024

Story of Life : निर्लज्ज (भाग-4)

 निर्लज्ज (भाग-1)  ...

निर्लज्ज (भाग - 2) और

निर्लज्ज (भाग - 3) के आगे... 

निर्लज्ज (भाग-4)

कैसी निर्लज्ज स्त्री हैं आप? जिस उम्र में लोग पूजा पाठ करते हैं, आप उस उम्र में बच्चा पैदा करना चाह रही है। अपनी तो कोई इज्जत है नहीं और हमारी मट्टी में मिलाएं पड़ी हैं। 

आने दीजिए, कार्तिक को सब बताती हूं, क्या क्या गुल खिला रही हैं आप... 

जब श्वेता, तृषा को अनाप-शनाप बोलने में लगी हुई थी, उसी समय कार्तिक घर के अंदर आ रहा था।

उसने अंदर आते ही श्वेता पर बहुत जोर के चिल्लाते हुए कहा, ज़ुबान संभाल कर बोलो श्वेता, तुम मेरी मां से बात कर रही हो, वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा...

दामाद जी, इसको क्या ज़ुबान संभालने के लिए बोल रहे हो, अपनी मां को बोलें, जो इस उम्र में भी संभल नहीं पाईं, लता ने फुंकारते हुए कहा...

कार्तिक ने घूरते हुए कहा, मौसी जी, अपने संस्कार भूल जाऊं, उसके पहले इतना ही कहूंगा कि आप हमारे घर के मामले में कुछ ना ही बोलें तो अच्छा है... 

तब से शर्म से गड़ी जा रही, तृषा बोली, यह सही है कि मैं pregnant हूं, पर मैं निर्लज्ज नहीं हूं।

आहा‌ हा‌ हा, यह कैसे हुआ कि आप pregnant हैं पर निर्लज्ज नहीं, श्वेता ने दबी हुई आवाज़ में बोला... 

कार्तिक भी आश्चर्य से तृषा को देख रहा था। 

बेटा, हम जो कमा रहे थे, उससे घर का खर्च ही पूरा नहीं पड़ रहा था, फिर तेरा ठीक से इलाज कैसे करती? 

इसलिए मैं doctor दीदी के पास गयी थी कि क्या करें? 

उनके पास एक धनाढ्य संतानहीन परिवार आया हुआ था कि क्या करें? कैसे बच्चा हो, क्योंकि उनकी पत्नी की कोख में बच्चा ठहरता नहीं था। 

थोड़ी देर सोचने के बाद वो बोली कि आप दोनों का साथ ही आपको बच्चे का सुख देगा... 

हम दोनों को समझ नहीं आया, दोनों ने एकसाथ पूछा, मगर कैसे?

वो बोली कि तृषा तुम्हें अपने बेटे को बचाने के लिए पैसा चाहिए, जो यह तुम्हें देंगे और इन्हें कोख चाहिए वो तुम इन्हें दे देना। मतलब इनके बच्चे की surrogate mother बन के। वैसे भी तृषा तुम्हारी उम्र अभी कम ही है...

दोनों को ही यह बात जंच गई। तो मेरी कोख में वही बच्चा है।

मैं आज ही तुम लोगों को सब बताकर घर छोड़कर जाने वाली थी, तो अभी सही...

नहीं मां, आप नहीं जा सकती मुझे ऐसे छोड़कर, कार्तिक के आंसू टपकने लगे...

अरे मेरे दिल के टुकड़े, हमेशा के लिए नहीं जा रही हूं, उनकी यह शर्त थी कि बच्चे के होने का confirm होते ही मैं उनके साथ रहूं, जिससे स्वस्थ व सुंदर बच्चा हो।

यह लो बहू, इन पैसों को संभालों, इससे कार्तिक का अच्छे से इलाज करना, साथ ही business का भी ध्यान रखना। 

बेटा, मैंने अपने पति को बहुत छोटी उम्र में खो दिया था, मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें भी वही दुःख सहन करना पड़े ...

श्वेता को काटो तो खून नहीं, जैसी अवस्था में हो गई। वह तृषा के पैरों पर गिर पड़ी। मां आप महान हैं जो अपने बेटे को बचाने के लिए इस उम्र में भी pregnancy के ख़तरे को उठाने को तैयार हैं। और मैं अभागी, कभी भी आपका प्यार और त्याग समझ ही नहीं पाई।

मैं निर्लज्ज, आपको अनाप-शनाप बोलती रही और आप मुझे अपना सब सौंपकर जा रही हैं।

तृषा ने प्यार से श्वेता को अपने गले से लगा लिया और कहा, बेटा कोई निर्लज्ज नहीं है, सब समय का फेर था, टल जाएगा, तुम बस मेरे कार्तिक का ध्यान रखना, जब तक मैं लौटकर ना आऊं..

मां, हम दोनों मिलकर भगवान जी से लड़ जाएंगे और कार्तिक को ठीक कर के रहेंगे। 

मां, श्वेता‌ भगवान जी से लड़ने लगी, तब तो मैं जरूर ही ठीक हो जाउंगा, क्योंकि इनसे लड़ाई में कोई नहीं जीत सकता, कार्तिक ने चुटकी ली...

देख कार्तिक, पीछे से मेरी बहू को परेशान मत करना, वरना मैं तुम्हें छोडूंगी नहीं...

सब हंसने लगे और तृषा वहां से चली गई। 

पैसे के अच्छे इंतजाम से कार्तिक का उचित इलाज हो गया, वो ठीक होने लगा।

कुछ महीने बाद वो पूरी तरह से ठीक हो गया, उसने अपनी कंपनी भी join कर ली।

बीच-बीच में कार्तिक और श्वेता, तृषा से मिलने जाते थे। श्वेता बहुत अच्छी पत्नी और बहू बन चुकी थी।

वो दिन भी आ गया, जब उस नन्हे शिशु ने जन्म लिया, जिसके होने का कारण, दो परिवारों को खुशी दे गया। 

तृषा वापस अपने परिवार में लौट आई, कुछ सालों बाद आचार पापड़ का business भी बहुत अच्छा चलने लगा, कार्तिक और श्वेता दोनों ही उसे संभालने लगे थे। उनके एक छोटा सा बेटा भी था आरव... जिसे ‌तृषा संभालती थी, क्योंकि श्वेता का कहना था कि आरव को उसकी दादी से अच्छी परवरिश और कोई नहीं दे सकता...

तृषा के surrogate mother बनने के फैसले ने उसे सारी खुशियां दे दी थी, वो बीच बीच में उस बच्चे से भी मिलने जाती थी।

जब वो pregnant थी, उस समय ना जाने कितने लोगों ने उसे निर्लज्ज कहा था, पर सच्चाई पता चलने पर सब उसे देवी कहने लगे थे...

मां, इतनी महान होती है कि वो अपने बच्चे पर आई मुसीबत को खत्म करने के लिए ना भूख-प्यास की परवाह करती है, ना अपनी इज़्ज़त की ना जान की...

फिर उसके लिए ऐसा करने से बच्चे क्यों चूक जाते हैं???

मां को अपने जीवन में सर्वोपरि स्थान दें 🙏🏻🙏🏻😊