Sunday, 3 June 2018

Poem : बेटी ओ बेटी

बेटी ओ बेटी


बेटी ओ बेटी, तू कहाँ  पर रहती है
किस घर आंगन को, तू अपना घर कहती है

क्या वो आंगन, 
जहाँ  माँ  ने तुझको  था जन्म दिया
और बैठ कर बाबा के कन्धों में 
तूने जग का भ्रमण किया
भाई-बहन के संग खेल 
 बचपन अपना बिता दिया

बेटी ओ बेटी, तू कहाँ  पर रहती है
किस घर आंगन को, तू अपना घर कहती है

साजन के मिलते ही, 
बाबुल ने था विदा किया
जन्म दिया था  जिसने,
उसने गैरों से मिला दिया
सास ससुर हैं, मात  पिता अब 
देवर नन्द हैं भाई बहन
ये सबने समझ दिया

बेटी ओ बेटी,तू कहाँ पर रहती है
किस घर आंगन को, तू अपना घर कहती है

जन्म बेटी का तूने पाया,
तो तुझको ये सौभाग्य मिला
बेटे का है, बस एक घर
तुझको दो का प्यार मिला

बेटी ओ बेटी, तू कहाँ  पर रहती है
किस घर आंगन को, तू अपना घर कहती है