Monday, 14 May 2018

Article : माँ

माँ


आज यूं ही बैठे बैठे ख़्याल आया, ये माँ शब्द का क्या अर्थ है। तब म व को अलग अलग किया, नहीं कोई संधि-विच्छेद नहीं, बस दो अक्षर को अलग किया, तो पाया कि, मैं आ गया।  

क्या यही अर्थ नहीं है? जब एक नन्हा शिशु, एक स्त्री की कोख में आ जाता है, तब वह स्त्री नहीं रह जाती है, बल्कि माँ बन जाती है। जैसे वो नन्हा शिशु कह रहा हो मैं आ गया
सच वो पहला एहसास ही जब एक स्त्री को पता चलता है, कि एक शिशु, उसकी कोख में आ गया है, वह क्षण उसके लिए सर्वाधिक अनमोल होता है, उसी क्षण से वह माँ स्वरूप में बदल जाती है, और वो नौ महीने, उसको एक अन्य दुनिया में ले जाते हैं, जिससे वो अपनी अंतिम सांस तक वापिस नहीं लौटती है।
उसकी सारी ज़िंदगी, सारी सोच अपने शिशु के इर्द-गिर्द ही सिमट जाती है। जैसे वो भूल ही जाती है, कि उसका अपना भी एक अस्तित्व है, अपनी भी एक पहचान है।
यही कारण है, बच्चे के कहे गए पहले शब्द सिर्फ माँ ही सबसे अच्छे से समझ पाती है, तब भी वो अपने बच्चे कि सब जरूरत को पूरी करती रहती है, जब वो बोल भी नहीं पाता है। माँ को ही सबसे पहले पता चलता है, कि उसके बच्चे को क्या परेशानी है, चाहे वो उसके पास हो, या दूर।
किसी और रिश्ते में, शायद स्वार्थ निहित हो, पर माँ की अपने बच्चे से कोई अपेक्षा नहीं रहती हैं।
पर क्या हमारा कोई फर्ज नहीं होता है, एक ऐसे रिश्ते के प्रति?
क्या हमें भी, अपनी माँ की हर इच्छा, उनके बताने से पहले नहीं समझ जानी चाहिए? और उन्हे पूरा करने की हर संभव कोशिश भी करनी चाहिए। क्योंकि माँ तो, कभी बताएँगी नहीं कि उन्हे क्या चाहिए।

मैंने देखा है माँ को अपनी ख्वाइशों को परतों में दबाते हुए                         
इल्म तोवो खुद को भी नहीं लगने देतींकि उन्हे चाहिए क्या है।                                     (इल्म : जानकारी)


माँ के तो चरणों में ही स्वर्ग है, कहा जाता है, ईश्वर से भी पहले माँ को पूजा जाता है, तो क्यों हम केवल एक दिन ही माँ दिवस मनाएँ। रोज़ ही कम से कम एक इच्छा को ही समझते जाएँ, और उसे पूरी करने का मन बनाएँ, या कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं, कि उनका सम्मान रें और करवाएँ।