Tuesday, 31 July 2018

Recipe : Aam-e-Khaas

Aam-e-Khaas

Mango is not Aam like Aam Aadmi, its our Royal Indian Fruit. Giving a khaas touch to Mango, I present here Aam-e-Khaas.




Ingredients:


  • Mango (preferably Dashahri): 1 big
  • Amul Fresh cream: 200 ml.
  • Sugar Powder: As per taste.

Method:


  1. Prepare mango puree from mango pulp and taste it for its sweetness.
  2. Keep the packet of cream in refrigerator for 5-6 hours.
  3. Then take out the thickened cream and mix sugar into it as per the taste of the mango and your taste desire.
  4. Now, whisk the cream to make it fluffy. When the cream gains fluffiness, mix mango puree into it.
  5. Then, pour the mixture into moulds and let it freeze.
  6. Now, de-mould it and Aam-e-Khaas is ready to serve.

Monday, 30 July 2018

Poem : हमसफर मेरे हमसफर


हमसफर मेरे हमसफर


हमसफर मेरे हमसफर
साथ चलना उम्रभर
तेरी ही है आरज़ू
तेरी ही है जुस्तजू

हमसफर मेरे हमसफर

हो कमी मुझमें अगर
रखना ना उनपे नज़र
प्यार ही प्यार रखना
हो कठिन चाहे डगर

हमसफर मेरे हमसफर

जो कहोगे, वो करेंगे
हो ये विश्वास गर
साथ होंगे उम्रभर हम
लेना ना इंतिहाँ मगर

हमसफर मेरे हमसफर

Sunday, 29 July 2018

Article : अब ना वैसी बरखा

अब ना वैसी बरखा

आज जब सो के उठी, तो रोज़ की तरह कमरे का A.C.बंद कर के खिड़की खोल दी, अभी खिड़की खोली ही थीकि पानी की बौछार ने गालों को सहला दिया। तपती गर्मी में वो ऐसी लगी मानो, रेगिस्तान में झरना फूट आया हो। उन बूंदों के स्पर्श से मन बचपन में लौट गया। जब बारिश का इंतज़ार किया करते थे,मेघों के घिरने से वर्षा भी आ जाए, हम लोग इसके लिए सुरीले 
गीत भी गाया करते थे। और बारिश शुरू हुई नहीं कि बारिश के होने से मिट्टी से उठने वाली सौंधी-2 खुशबू बरबस ही हमें बाहर खींच लेती और बस फिर क्या हम सब बच्चे घरों से बाहर छम छम नाचा करते, और कितने ही खेल शुरू हो जाते थे

 पैरों से पानी उछालना, पानी पर कंकड़ चलाना और हाँ हम बड़े अमीर भी हुआ करते थे, क्योंकि पानी में हमारे जहाज़ जो चला करते थे, वो कागज़ की कश्ती जिनका हमारी नज़रें दूर तक पीछा किया करती थीं

बारिश हुई, तो पापा को पकौड़ियाँ बहुत भाती थीं। तो बस इधर बारिश हुई, और उधर माँ की कढ़ाई चढ़ जाती। पकौड़े-भजिए की सुगंध ही हमें वापस घर को खींच लाती थी। सच गरम गरम पकौड़े-भजिए खा के तो आत्मा ही तृप्त हो जाती थी।

कभी जब पापा बाहर होते, तो वो लौटते time  नाथू हलवाई के समोसे लाना नहीं भूलते। उन समोसों में जो स्वाद था, वो आज भी याद है। कोई भी दो-चार से कम तो खाता ही नहीं था।
तभी छुटकू बोला, माँ क्या कर रही हैं? उसकी आवाज़ ने बचपन के स्वर्णिम दिनों से वापस वर्तमान में ला दिया। उसको देख के लगा चलो, फिर से बचपन में जिया जाए। पर इन apartment  में कहाँ वो आँगन, कहाँ वो बगीचा!
सोचा, चलो नीचे parking area पर ही चलें। उसको बोला तो, वो बोला कपड़े गीले हो जाएंगे। मन में आया- क्या बच्चा है! भीगने का सुख नहीं ले रहा है, क्योंकि कपड़े भीग जाएंगे। अभी water park चलने की बात बोली होती, तो खुशी से झूमने लगता, तब कपड़े भीगने की परवाह नहीं होती।
मैं खुद ही नीचे भीगने चल दी, अभी parking area  के करीब भी नहीं पहुंची थी कि गंदी बदबू का भभका आया। guard से पूछा, तो बोला madam आप नई आयीं हैं ना, यहाँ हर बारिश में यही आलम रहता है। ऐसा क्यूँ? अरे madam दुनिया की polyethene  यहाँ इकठ्ठा रहती है। वो ही सारी गंदगी रोक देती है, और बारिश में सब मिलके बदबू फैलाते हैं। भीगना तो छोड़िए, वहाँ रुक के बारिश देखने का मज़ा भी नहीं ले पायी।
लगा, कोई नहीं, पकौड़े- भजिया  बना के ही बारिश का मज़ा लिया जाए। अभी कढ़ाई चढ़ाई ही थी, कि पतिदेव की आवाज़ आ गयी, सुबह सुबह क्या तला बनाने लगीं? कुछ हल्का बना लाओ।
लो जी हो गयी बारिश, और हो गए उसके मज़े।
क्या जानेगी ये generation , हमारे समय की बारिश और उसके मज़े।

Polyethene का इस्तेमाल करना, हम बंद करेंगे नहीं। दुनिया के junk food खिला देंगे बच्चों को, पर Indian snacks  नहीं देंगे, क्योंकि वो बहुत oily हैं, health  के लिए ठीक नहीं होंगे। अब ना वैसी बरखा है ना वैसे लोग।           

Saturday, 28 July 2018

Story Of Life आखिर क्यों ? भाग -2

अब तक आपने पढ़ा बरसात में रैना की कार से आनंद टकरा जाता है, hospital में ले जाकर जब रैना उससे फिर मिलती है, तो उसे ये एहसास होता है कि वही उसका dream boy है, आनंद ने रैना को आखिर क्यों रंजना बोला..... 


आखिर क्यों ? भाग -2




तभी आनंद भी बोल उठा, अगर आपको office जाने की जल्दी ना हो, तो आप car आने तक रुक जाइए। शायद आनंद भी नहीं चाहते कि मैं जाऊँ, सोच कर रैना रुक गयी।
दोनों में बातें शुरू हो गयी। जितनी उन लोगों में बातें हो रही थी, उतना ही दोनों एक दूसरे से प्रभावित हो रहे थे।
आनंद की कार आ गयी, दोनों अपने अपने रास्ते चले गए।
एक दिन रैना गिफ्ट शॉप से कुछ समान ले रही थी। वहाँ गाना बज रहा था, अबके सजन सावन में..... तभी तेज़ बारिश शुरू हो गयी, और एक आदमी तेजी से अन्दर आया, और रैना से टकरा गया। रैना जब तक चिल्लाती, उसने देखा कि वो तो आनंद था। आनंद को देखकर वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। आनंद सकपका गया, बोला रंजना!
वो बोली नहीं रैना। Sorry मैं आपका नाम भूल जाता हूँ। Ok रैना जी, आप इतनी ज़ोर ज़ोर से क्यों हँस रही हैं?
क्योंकि हमारी मुलाक़ात हमेशा, टक्कर, बारिश और सावन के गीतों के साथ ही होती है। सुन कर आनंद भी हँस दिया।
अब दोनों की मुलाकातें दोस्ती में बदलने लगीं, और कब प्यार में, दोनों को पता ही नहीं चला।
बस रैना को जब भी आनंद मिलता, तो उसे उसकी एक आदत अच्छी नहीं लगती थी, कि वो उसे हमेशा मिलते ही रंजना ही बोलता था। और कभी भी कुछ भी भूल जाता था, उन लोगों को मिलना है ये भी। कभी वो उसे किसी जगह ले के आता था, और order दे के आता हूँ, ये कह कर जाता और आता ही नहीं था। जब भी रैना फोन कर के पूछती, कहाँ हो? वो हमेशा यही कहता, अरे यार भूल गया था, आता हूँ अभी, और फिर आ भी जाता।
एक दिन आनंद ने विवाह का प्रस्ताव रखा। रैना सोचने लगी, एक भूलने की आदत के अलावा आनंद में वो सब है, जो उसे अपने जीवन साथी में चाहिए। उसने हाँ कर दी।
आनंद बोला, मेरे घर चलो, मैंने शादी का जोड़ा वहीं रखा है। दोनों आनंद के घर आ गए। बहुत ही आलीशान बंगला था। ऊपर कमरे में आकर रैना ने देखा, बहुत ही सुंदर शादी का जोड़ा रखा था। आनंद बोला तुम ready हो, मैं अभी आया।
आज रैना बहुत खुश थी, उसका सपना जो पूरा होने वाला था। रैना को तैयार हुए तीन घंटे हो गए थे, पर अभी तक आनंद नहीं आया था। अब उसके सब्र का बांध टूट गया था, वो नीचे आई, तो एक प्यारी सी 7 साल की बच्ची ने उससे पूछा- आप?... और मेरे घर में क्या कर रही हैं? रैना बोली- तुम्हारा घर? ये तो Mr. आनंद का घर है?

वो मेरे पापा हैं। पापा..... रैना के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। तभी उसकी वहाँ लगी तस्वीर पर निगाह गयी, उसमें हार चढ़ा था। बेटा ये कौन हैं? ये मेरी माँ रंजना हैं। रंजना की शक्ल बहुत कुछ रैना जैसी थी। वो बोली आज से 1 साल पहले मेरे माँ पापा का accident  हो गया था, जिसमे माँ नहीं रहीं। पापा माँ को बहुत प्यार करते थे। तब से पापा ऐसे हो गए हैं। उन्हें कभी कभी ही याद आता है कि मैं उनकी बेटी हूँ। और वैसे भी वो बातें भूल जाते हैं। आज रैना को समझ आ रहा था, आखिर क्यूँ आनंद उसे रंजना बोलता था। उसने रैना को कभी चाहा ही नहीं था, वो तो केवल अपनी रंजना को ही ढूंढा करता था। सब सुन कर रैना कभी ना वापस आने के लिए चली गयी। आज भी बूंदें बरस रही थी, पर बादलों से नहीं, उसकी आँखों से, और चाय की दुकान पर गाना बज रहा था। नैना बरसे रिमझिम रिमझिम......

Friday, 27 July 2018

Article : गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा


आज का दिन बहुत ही शुभ है। इस पवित्र दिन को अपने सभी गुरुओं को ना समर्पित किया जाए, तो मेरा लिखना व्यर्थ है।
कबीर जी ने बहुत पहले ही हमें अपने दोहे के द्वारा ये अवगत करा दिया था,

गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिएगुरू को अथवा गोविंद को? ऐसी

स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

ईश्वर तो सर्व शक्तिमान हैं, तो क्या वे हमें सीधे-सीधे प्रेरणा नहीं प्रदान कर सकते हैं?

क्यों नहीं कर सकते, बिलकुल कर सकते हैं। फिर आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?

शायद इसलिए कि उन्होंने हमारे इर्दगिद बहुत ही सुंदर रिश्तों का ताना-बना बुना है, और उन सब रिश्तों के जरिये ही वो हमारे साथ रहते भी हैं। और समय समय पर ज्ञान भी प्रदान करते हैं।

प्रथम गुरु माँ व पिता, जिनके होने के कारण ही हमारा अस्तित्व है। वो जब तक हमारे साथ रहते हैं, हमें उचित अनुचित का ज्ञान प्रदान करते रहते हैं। और यही इस पूरे संसार में ऐसे भी हैं, जो हमारा कभी भी अनहित नहीं होने देते हैं। अत: ये हमारा कर्तव्य है, कि हम हमेशा उनको सम्मान प्रदान करें।

उसके बाद आतें है भाई-बहन, जो हमारी छाया होते हैं, या हम उनकी, उनके रहते आप कभी दुनिया में अकेले नहीं रह सकते हैं। वो हमें साथ और भागीदारी दोनों का ज्ञान प्रदान करते हैं।
फिर जीवन-साथी, जो आपसे अलग होता है, किन्तु फिर भी वह आपका पूरक होता है, आपको संपूर्णता प्रदान करता है। जिंदगी के सही मूल्यों का ज्ञान प्रदान करता है।

अंत में बच्चे, जो आते तो सबसे बाद में, पर इनके आते ही आपके जीवन में प्रथम स्थान पा जाते हैं। इनके जरिये ईश्वर हमें ये ज्ञान प्रदान करते हैं, कि जिस तरह हमारे लिए हमारे सारे बच्चे एक समान प्रिय हैं, उसी भांति वो भी हम सबको एक समान प्यार करते हैं।

और ये सारे एहसास इतने सुखद होते हैं, कि ईश्वर इनके जरिये हमें ज्ञान प्रदान करते हैं।

फिर आती है सारी दुनिया, जहाँ आपको कुछ ऐसे लोग मिलेंगे, जो आपको इतनी कटुता प्रदान करेगें कि आपका संसार से मोह ही खत्म कर देंगे। जिनके जरिये आपको ईश्वर ये ज्ञान प्रदान करते हैं, कि सब कुछ अच्छा ही नहीं है, बल्कि आपको यहाँ फूल मिले हैं, तो शूल भी मिलेंगे।

पर जो मनुष्य इन शूल को भी फूल बना दें और आपकी ज़िंदगी में ऐसी स्वर्णिम छवि छोड़ दें, कि आप जीवन के सही मार्ग पर अग्रसारित होकर ईश्वर को प्राप्त कर सकें। वो ही गुरु हैं। जो आपको टूटने नहीं देंगे, आपको अपने हाथों से भवसागर में छूटने नही देंगे, वही गुरु हैं।

वो ईश्वर के नाम पर अपनी अंधभक्ति कराने वाले ढोंगी बाबा लोग तो बिल्कुल भी नहीं हैं।


वो आपके पिता भी हो सकते हैं, माँ भी, शिक्षक भी, जीवन-साथी, भाई-बहन या कोई अभिन्न मित्र भी।

मेरा ये लेख, उन सबको समर्पित है, जिन्होंने मुझे जीवन में किसी भी रूप में किसी भी तरह का ज्ञान प्रदान किया है। उन सबको नमन