Tuesday, 24 April 2018

Story of life :. बहू–बेटी

                         बहू–बेटी 



रंजना की बेटी दिव्या की शादी होने वाली थी, माँ बेटी को समझा रही थी, अब से तुम्हारी नयी ज़िंदगी शुरू हो रही है, जिसकी मालकिन तुम खुद हो, इसलिए जो तुम्हें अच्छा लगे वही करना, किसी की सुनने की कोई जरूरत नहीं  है, एक बार सुनना शुरू करोगी, तो ज़िंदगी भर सुनती ही रहोगी और हाँ कोई भी व्रत त्यौहार के लिए तो हामी भरना ही नही वर्ना झड़ी लगा दी जाएगी, क्योंकि बहू कितना भी कर ले, वो कभी perfect  नही हो सकती।

इतने अच्छे संस्कारो के साथ विदा हुई दिव्या ने ससुराल पहुँचते ही अपना झण्डा गाड़ दिया।

सुबह देर से उठना, किसी का भी ध्यान नहीं रखना, और तो और कोई कुछ कहे तो बस लड़ना शुरू, बात बात पर मायके चली जाती, और एक महीने से पहले ना आती।

रसोई में जाना तो उसे अपनी तौहीन लगती थी, आते ही से एक रसोइया घर में लगवा दिया, व्रत त्यौहार से तो उसने नाता ही नहीं रखा था।   

शुरू शुरू में तो रोहित और उसके घर वाले दिव्या के इस रवैये से बड़े दुखी हुए, पर कुछ दिन बाद सब उसकी इन हरकतों से आदी हो गए, हाँ रिश्तेदरों  का आना, दिन पर दिन जरूर कम हो गया।

अब रोहित के घर सन्नाटा ही ज्यादा छाया रहता था, क्योंकि आपस में बात होने से कब कोहराम मचने लगे, पता नहीं रहता था।

एक दिन फोन की घंटी बजी, दिव्या की रंजना से फोन पर बात हुई, तभी रोहित ऑफिस से आया था, उसने देखा दिव्या खुशी से झूम रही थी।

रोहित को देखते ही दिव्या ने बताया माँ का फोन आया था, उसके भाई रजत की शादी तय हो गयी है, इस october  में शादी है।

दिव्या ने ढेरों ख़रीदारी शुरू कर दी, जबकि उसकी शादी को साल भर भी नहीं हुआ था, उसके पास ढेरों ऐसी dresses थीं, जिसे उसने अभी तक नहीं पहनी थीं, पर रोहित ने उससे कुछ हीं बोला, वो जानता था, कहने से सिवाय झगड़े के और कुछ नहीं होना है।

रजत की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई, दिव्या स्नेहा से अधिक सुंदर दिखने की होड़ में लगी रही, पर वो स्नेहा का दिन था, दुल्हन से कहाँ कोई ज्यादा सुंदर लग सकता है।

स्नेहा ने आते ही....
                               आगे की कहानी भाग-2 में