Tuesday, 21 September 2021

Poem : घर के कुछ पुराने से बर्तन

आज से पितृपक्ष प्रारंभ हो रहा है। सभी पितरों व पूर्वजों को मेरा सादर नमन 🙏🏻

आज अपनी इस कविता के माध्यम से हमने एक गहरे विषय को आप सबके समक्ष रखने का प्रयास किया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप कविता के मर्म को समझेंगे और अपने अस्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करेंगे 🙏🏻

इस कविता का रस आप पठन, श्रवण, मनन और जीवन, सभी में ले सकते हैं।


घर के कुछ पुराने से बर्तन




घर के कुछ पुराने से बर्तन,

जो अक्सर काम नहीं आते थे।

अपनी टूट-फूट के कारण वो,

कई-कई दिन चूल्हे पर नहीं चढ़े थे।।

फिर भी अपनी जगह पर अडे़ थे,

कभी-कभी वो गिर जाया करते थे।

बेवजह अपने होने का,

एहसास करा दिया करते थे।।

एक दिन ना जाने कहांँ से कोई,

बर्तन संवारने वाला चला आया।

उन बर्तनों को सुधरवा लें,

ऐसा ख्याल मन में आया।।

देकर उन पुराने बर्तनों को,

हमने अलमारी में जगह बना ली।

नये बर्तनों ने बड़ी शान से,

वो सारी जगह खा ली।।

अभी उन बर्तनों को गये,

चंद दिन भी नहीं हुए थे।

और वो हमें हर दूसरे क्षण,

याद आने लगे थे।।

वो भी बड़े काम के थे,

एहसास दिलाने लगे थे।

हमने झट उस,

बर्तन बनाने वाले को फोन घनघनाया, 

कब तक मिलेंगे बर्तन?

ऐसा प्रश्न उठाया।

वो हमारी बेसब्री सुन,

पहले ज़रा मुस्कुराया।

फिर गले को खंखारते हुए बोला,

क्या हुआ आपको? 

इतनी जल्दी एहसास हो गया?

जिन को आप छोड़ चुके थे,

जिन से अपना मुंह मोड़ चुके थे।

वो, पुराने बर्तन भी बड़े काम के हैं,

आपके लिए जिन्होंने अपनी चमक खो दी।

वो आज भी आप के,

आराम के हैं।।

चिंता ना करें, 

जल्द ही मैं आऊंगा।।

वो बर्तन दे जाऊंगा,

जिनके बिना आप का,

जीवन है अधूरा।।

रखिएगा, मान उन का,

जिनका अस्तित्व आपको,

करता है पूरा।

जिनका अस्तित्व आपको,

करता है पूरा।।