Wednesday, 30 May 2018

Article : व्यक्तित्व एक प्रेरणा


व्यक्तित्व एक प्रेरणा



आज मैं आप सब के साथ अपने दादा जी डॉक्टर बृजबासी लाल जी के संदर्भ में कुछ विचार व्यक्त करने जा रही हूँ।

आप सब सोच रहे होंगे? ये क्या, ये तो अपने घर के सदस्य के विषय में बताने लगीं? अपने दादा-दादी तो सभी को प्रिय होते हैं, ऐसा क्या है? जो ऐसे बताया जा रहा है?

जी हाँ, आप सबका सोना सही है। पर मेरे दादा जी किसी परिचय के मोहता हीं हैं, वह बुंदेलखंड विश्व-विद्यालय के द्वितीय कुलपति के पद पर आसीन थे।

पर यहाँ मैंने उनके पद के विषय में बताने के लिए आप सबका ध्यान केन्द्रित नहीं किया है, अपितु यहाँ मैं आप सब को बताना चाह रही हूँ, कि यदि कोई व्यक्ति ठान ले, तो उसको उसकी मंजिलों की ऊंचाइयों को छूने से कोई नहीं रोक सकता।

मेरे दादा जी अपने माता पिता के अकेले संतान थे, उनकी माँ का देहांत अल्पायु में ही हो गया था, अपनी स्कूली शिक्षा समाप्त करने के पश्चात उन्होंने अपने पिता की सेवा करने के लिए तार बाबू की रेलवे की एक छोटी सी नौकरी प्रारम्भ कर दी थी

उस समय जल्दी विवाह हो जाता था, तो उनका भी विवाह जल्दी ही संपन्न हो गया, विवाह के पश्चात परिवार की जिम्मेदारियाँ भी बढ़ने लगीं, पर वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी थे। 

घर-परिवार की सौ जिम्मेदारियों के बीच भी उन्होंने अपने कदम वहीं नहीं रोके, बल्कि उनके कदम तो किसी और ही मंजिलों की तलाश में आगे बढ़ने लगे।

उन्होंने तार बाबू की नौकरी छोड़ दी, और विद्या की देवी के चरणों में पुष्प अर्पण करने का मन बना लिया, और पुनः अध्यन प्रारम्भ कर दिया। 

तत्पश्चात वह एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक के पद र आसीन हो गए, उसके बाद उन्होंने  D.I.O.S. का पद प्राप्त किया, किन्तु यहाँ भी उनकी महत्वकांक्षा की पूर्ति नहीं हुई।

उन्होंने अपना अध्ययजारी रखा, और हमीदिया महाविद्यालय भोपाल में प्राध्यापक बन गए, उसके बाद दयानन्द वैदिक महाविद्यालय, उरई के प्राचार्य बने, पर उनकी  मंजिलों की ऊंचाई छूने की ख्वाइश यहाँ भी नहीं थमी, अपितु उन्होंने विद्या के सर्वोच्च पद कुलपति की उपाधि प्राप्त कर के ही अपनी कामनाओं की पूर्ति की। 

उन्हें नेपाल में भी सम्मानित किया गया था। जी हाँ, ऐसे ही व्यक्तितव के स्वामी थे मेरे दादा जी, जो लोगों की प्रेरणा-स्त्रोत बने।

उन्होंने दिखा दिया, यदि मनुष्य ठान ले, कि उन्हें अपनी मंजिलों की ऊचाइयों को छूना है, तो कोई भी जिम्मेदारियाँ, बाधाएं, आपको रोक नहीं सकतीं, पर आपकी कोशिशों में सच्चाई होनी चाहिए। 

साथ ही उनका कहना था, आपको लोगों के कहने का बुरा भी लगना चाहिए, क्योंकि उससे आपके अंदर एक आग जलने लगती है, और वो आग ही आपको आपकी ऊंचाइयों की ओर ले जाती है।

तो अगर आप भी कुछ कर दिखाना चाह रहे हैं, तो अपनी महत्वकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए व्यर्थ के बहाने न खोजें बल्कि एक सच्ची कोशिश करें, कामयाबी आपके कदम चूमेगी।
आज मेरे इस लेख को लिखने का तात्पर्य, महत्वाकांक्षी व्यक्तियों को जाग्रत करना है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति ही देश-उद्धारक होते हैं।