Thursday 23 February 2023

Article : संस्कार और अनिवार्यता

 संस्कार और अनिवार्यता



इस Sunday हम लोग थोड़ा free थे तो सोचा, कुछ दिल्ली दर्शन कर लिए जाएं।

बंगला साहिब गुरुद्वारा का बहुत नाम सुना था, पर जाना नहीं हुआ था तो सोचा इस Sunday वहीं जाते हैं।

Program final करने के लिए, जब location देखी तो पता चला birla temple, जिसे श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर भी कहते हैं, पास में ही है।

हालांकि हम उस मंदिर के दर्शन कर चुके हैं पर उसके पास तक जाएं और वहां नहीं जाएं, इसके लिए मन तैयार नहीं था।

कारण?

उस मंदिर की दिव्यता, भव्यता और आत्मिक शांति ने हम लोगों को तब भी आकर्षित किया था और आज भी वही सुख हमें अपनी ओर खींच रहा था।

तो बस सुबह-सुबह ही स्नान आदि कर के हम लोग कार से रवाना हो गए, अपनी मंजिल की ओर...

पहले गए मंदिर की ओर, क्योंकि वहां मंदिर के कपाट के खुलने व बंद होने का निर्धारित समय था 4:30 am–1 pm, 2:30–9 pm. 

मंदिर के कपाट पर ही दो लोग प्रसाद सामग्री बेच रहे थे। जिसे जो लोग खरीदना चाहते थे वो ले रहे थे, कोई अनिवार्यता नहीं थी, ना ही वो दुकानदार, अपनी ओर बुलाने के लिए जोर जोर से चिल्ला रहे थे। 

प्रसाद सामग्री में कुछ फूल, एक नारियल और एक प्रभू के नाम का छोटा सा कपड़ा था।

मंदिर में प्रवेश से पहले, जूते चप्पल उतार कर व अपने मोबाइल और कैमरा आदि जमा कर देने थे। उसके लिए clock room था, उसके पास जाने पर आपको व्यक्तियों की संख्या के अनुसार बोरी आदि दे दी जाएगी, जिससे पूरे घर के जूते चप्पल उसमें सुनियोजित तरीके से रखकर दे देना था। कोई भी जूते चप्पल चोरी होने का कोई डर नहीं था।

चंद सीढ़ियां चढ़ कर हम मंदिर के प्रांगण में पहुंच गए थे। बहुत ही विशाल, भव्य व स्वच्छ मंदिर है।

मंदिर के प्रांगण में माता लक्ष्मी व श्री नारायण जी की बड़ी-बड़ी सुन्दर प्रतिमाएं थी, जिनका अद्भुत श्रंगार किया गया था। 

यहां आकर असीम शांति और अपनत्व का एहसास होता है, मानो अपने ईष्ट देव के घर में पधारे हों। श्री लक्ष्मी नारायण जी के दर्शन के बाद, वहां अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के दर्शन किए।

यहां एक बड़ी सी वाटिका भी है, जहां मांगलिक कार्यों को संपन्न किया जा सकता है।

मंदिर में प्रवेश से लेकर निकास द्वार तक कोई भी ऐसा कार्य नहीं था, जो करना अनिवार्य हो, ना तो आप के वस्त्र धारण करने में किसी तरह की कोई पाबंदी, आप ने सिर ढका है या नहीं, कोई अनिवार्यता नहीं, आप प्रसाद के साथ प्रवेश कर रहे हैं कि नहीं, कोई अनिवार्यता नहीं, आप ने दान दिया या नहीं, आप की इच्छा...

इतनी भीड़ नहीं थी कि, आप दर्शन ना कर पाएं, आप का मन, आप जितनी देर दर्शन करना चाहें। कोई नियम नहीं की, आप को इस तरह से ही पूरा दर्शन करना है।

शायद किसी तरह की कोई अनिवार्यता नहीं होने के कारण, बहुत ही अच्छे दर्शन होने के कारण, वहां की दिव्यता, भव्यता और स्वच्छता होने के कारण, मन प्रफुल्लित हो जाता है। जिसके कारण वहां बार-बार जाने की इच्छा होती है।

उसके बाद हम बंगला साहिब गुरुद्वारे गये।

बहुत ही विशाल, सुन्दर और स्वच्छ गुरुद्वारा था। जैसा कि आप सबको पता ही होगा, गुरुद्वारे में स्त्री हो या पुरुष सबको ही सिर ढककर ही प्रवेश करना होता है। सिर ढका होना, वहां की अनिवार्यता है...

गुरुद्वारे के प्रवेश द्वार पर ही रुमाल व चुनरी बेचने की बड़ी बड़ी दुकानें थीं।

जो अपने साथ लाए थे, उन्होंने अपने और जो नहीं लाए थे, उन्होंने चुनरी या रुमाल खरीद कर सिर ढक लिए।

गुरुद्वारे में प्रवेश से पहले, अपने जूते चप्पल उतार देने थे, उसके लिए clock room था, उसके पास जाने पर आपको एक plastic की डलिया दी जाएगी, जिससे पूरे घर के जूते चप्पल उसमें सुनियोजित तरीके से रखकर दे देना था। कोई भी जूते चप्पल चोरी होने का कोई डर नहीं।

वहां साफ साफ लिखा था कि गुरुद्वारे में रुमाल या चुनरी से सिर ढककर जाएं। सिर ढकने के लिए cap वर्जित थी। छोटे-छोटे वस्त्र धारण करना भी वर्जित था। 

उसके बाहर ही चार पांच washbasin थे, जिनमें साबुन भी रखे हुए थे। जिससे जूते चप्पल उतारने से गंदे हुए हाथों को धोया जा सके।

गुरुद्वारे की तरफ जाने वाली पहली बड़ी सी सीढ़ी पर साफ जल प्रवाहित हो रहा था, जिस पर सभी को अपने पैर धोकर ही अंदर प्रवेश करना था।

अंदर एक जगह, प्रसाद चढ़ाने के लिए हलवा बिक रहा था, जिसे लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार खरीद रहे थे, पर खरीदना कोई अनिवार्यता नहीं थी।

पर जहां से प्रसाद खरीदा जा रहा था, वो जगह पूर्णतः बंद थी। प्रसाद के लिए, एक line थी, जिसमें लगने से पहले coupon  लेना अनिवार्य था। सब एकदम systematic way में था।

जहां से गुरुद्वारा प्रारम्भ था, वहां से पूरे गुरुद्वारे में बहुत ही सुन्दर और नर्म कालीन बिछा था। बहुत ही भव्य और दिव्य गुरुद्वारा था।

गुरुद्वारे में अंदर जाने पर गुरुग्रंथ साहिब की आराधना करते हुए गुरुबानी चल रही थी। 

वहां दर्शन करने जाने के लिए, मार्ग तय था, जिसका पालन करना सबको अनिवार्य था। वहां दर्शन करने के लिए बहुत लोग थे। कुछ गुरुबानी सुनने के लिए, वहां बैठे भी हुए थे।

सिर के खुलने पर तुरंत टोक दिया जा रहा था। दर्शन के बाद, अमृत सरोवर में जाकर, उसके जल को सिर, चेहरे, हाथ, कन्धों और पैर पर लगाया। माना जाता है कि उस जल से सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं...

पर वहां घंटों पैर डूबाकर नहीं बैठ सकते थे। गुरुद्वारे से निकलते समय, थोड़ा-थोड़ा हलवा प्रसाद मिल रहा था, जिसके लिए line लगानी थी। 

उसके बाद जिन्हें लंगर चखना था, (गुरुद्वारे में भोजन प्रसाद ग्रहण करने को लंगर चखना कहते हैं) उन्हें एक बड़े से हॉल के आगे बैठ जाना था। वहां भी बहुत भीड़ थी। 

हम भी बैठ गये कि आज लंगर प्रसाद चख कर जाएंगे, क्योंकि कहा जाता है कि जिन पर बाबा जी की महर होती है, वो ही लंगर चखते हैं।

हम अभी बैठे ही थे कि hall में अंदर जाने का आदेश हो गया।

एक बड़े से hall में पतली पतली 10 दरियां बिछी थी, हर एक दरी में एक दूसरे की तरफ पीठ से पीठ टिकाए दो row बनी थी। इस तरह से वहां एक ही hall में 800 से 1000 व्यक्ति एक साथ लंगर चख रहे थे।

छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग, स्त्री, पुरुष वहां भोजन प्रसाद को serve कर रहे थे। निस्वार्थ सेवा भाव कर रहे थे।

सादा, सात्विक, गर्मागर्म व स्वादिष्ट भोजन था। वहां थाली, चम्मच व रोटी दोनों हाथों को जोड़कर लेनी थी। बाकी दाल, सब्जी, चावल, अचार वो थाली में रख दे रहे थे।

भोजन, आप को जितना खाना हो, मिल जाएगा, बस अनिवार्यता इतनी है कि खाना छोड़ना नहीं था। अतः सब लोग सिर्फ उतना ही भोजन ले रहे थे, जितना खा सकें।

लंगर चखते समय भी आपके सिर से चुनरी या रुमाल गलती से भी हट गया तो तुरंत टोक दिया जा रहा था, वहां भी सिर ढककर रखना अनिवार्य है।

और आपको बता दें, हर एक व्यक्ति, चाहे स्त्री हों, पुरुष हों या बच्चे सिर सबके ढके थे और भोजन किसी ने भी नहीं छोड़ा था। 

यदि किसी का बच्चा भोजन प्रसाद खत्म नहीं कर सकता है तो उसके माता-पिता भोजन प्रसाद खत्म कर रहे थे।

भोजन खत्म होने के बाद वो लोग ही थाली एकत्रित कर रहे थे, जिन्होंने भोजन प्रसाद वितरण किया था।

बंगला साहिब गुरुद्वारा जाने के बाद, हमें यही समझ आया कि अगर अनिवार्यता कर दी जाए, तो संस्कारों का पालन लोग स्वतः ही करने लगते हैं।

ईश्वर के दर्शन के लिए, स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए, वो वहां था, लोग हाथ और पैर धोकर ही गुरुद्वारे में प्रवेश कर रहे थे।

वस्त्र ऐसे हों जो शालीन हों, सिर ढका हुआ होना चाहिए, वो सब कर रहे थे और जिनका गलती से सिर खुल जा रहा था, टोके जाने पर वो भी तुरंत सिर ढक लेते थे। 

भोजन कभी भी छोड़ना नहीं चाहिए, फिर अगर भोजन प्रसाद हो, तब तो इस बात का और ज्यादा ध्यान रखना चाहिए, यह बात भी वहां पूरी तरह मान्य थी।

निस्वार्थ भाव के साथ अपने कार्य को ईश्वर की सेवा रुप में करना चाहिए और वहां सभी कार्य करने वाले लोग ऐसा ही कर रहे थे..

एक तरह से देखा जाए तो वहां जो कुछ भी हो रहा था, वो पूरी तरह से सही था। साथ ही ऐसा होना कोई नई बात भी नहीं है। 

यह सब ही तो भारतीय संस्कार हैं। स्वच्छता का ध्यान रखना, शालीन वस्त्र धारण करना, भोजन की बर्बादी को होने से रोकना व निस्वार्थ सेवा करना...

समझा जाता है कि पंजाबी और सिख सबसे ज्यादा modern और advanced होते हैं। पर हम आपको उनके ही पवित्र स्थान की विशेषता बता रहे हैं, जहां सभी अच्छे संस्कारों का पालन किया जा रहा था। 

और अगर जो समझा जाता है, वही मान भी लिया जाए तो जब वो कर सकते हैं तो बाकी क्यों नहीं?

 क्या यह सब हर जगह नहीं हो सकता, बिना किसी डर और अनिवार्यता के? 

क्या ईश्वर के लिए भी हम अपने सुसंस्कारों को नहीं अपना सकते हैं, कुछ घंटों, कुछ दिनों के लिए?...

मंदिर और तीज-त्योहार में स्नान कर के ही ईश्वर के दर्शन करने जाएं।

खूब modern और advance बनें, पर Atleast मंदिर और तीज-त्योहार में तो शालीन वस्त्र पहने। 

भोजन को तो कभी भी जूठा छोड़ने की आदत ख़राब है, इसलिए कहा भी गया है, उतना ही लें थाली में कि अन्न ना जाए नाली में...

आप को एक एक दाना अच्छा मिले इसके लिए किसान कितना परिश्रम करता है। क्या उसके श्रम का मोल, हम भोजन का मान देकर नहीं दे सकते हैं?

वैसे भी जहां अन्न का मान होता है, वहीं समृद्धि का भंडार होता है।

तो आज से हम अपने आप से प्रण करते हैं कि हम भारतीय संस्कारों का पालन atleast सभी धार्मिक स्थानों, फिर चाहे वो मंदिर हो, गुरुद्वारा हो, चर्च हो या मस्जिद हो, पर जरुर से करेंगे, बिना किसी अनिवार्यता के, बिना किसी भय के...

और हां भोजन तो, कभी भी जूठा नहीं छोड़ेंगे, फिर चाहे पवित्र स्थान का प्रसाद हो या घर आदि का खाना...

जब हम करेंगे, तभी तो बच्चे अनुपालन करेंगे और जिस देश में भरपूर मात्रा में अन्न होगा, उसका विकास तो सर्वविदित सत्य है।

जय भारतीय संस्कार 🚩