Tuesday 1 October 2024

Article: श्राद्ध पक्ष में इमरती का महत्व

 श्राद्ध पक्ष में इमरती का महत्व 




श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं और आपको हर  मिठाई वालों के पास इमरती अवश्य देखने को मिलेगी, फिर चाहे वो, हल्दीराम और बीकानेर आदि के जैसे बड़े outlets हों या मिठाईयों की छोटी-छोटी दुकानें..

इमरती को कहीं-कहीं कंगन भी कहते हैं, शायद इमरती के shape and design के कारण...

पर क्या कारण है कि गाहे-बगाहे मिलने वाली इमरती, श्राद्ध पक्ष में पूरे सोलह दिन और वो भी सुबह-शाम हर समय मिलती है?

चलिए समझते हैं कि ऐसा क्यों? 

सबसे पहले जानते हैं, उसके बारे में, जिससे इमरती बनती है, मतलब उरद दाल से। जैसा कि आप सभी को पता ही होगा कि इमरती, उरद‌ दाल को पीसकर बनाई जाती है।

उरद दाल का महत्व 

पितरों के भोग में उड़द दाल का विशेष महत्व है, खासकर श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष के दौरान...

यह दाल भारतीय परंपरा में श्राद्ध कर्म और तर्पण के लिए उपयोगी मानी जाती है, क्योंकि इसे पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति का प्रतीक माना जाता है।

उड़द दाल से बने पकवान, जैसे उड़द दाल की खिचड़ी या दाल-पूरी व इमरती, पितरों को अर्पित करनी चाहिए।

यह दाल पितरों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यधिक शुभ मानी जाती है, जिससे घर-परिवार में समृद्धि, सुख और शांति बनी रहती है।

श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्पित उड़द दाल का भोग पितरों को प्रसन्न करता है. 

धर्मग्रंथों के अनुसार, पितृ पक्ष के लिए तैयार किया जाने वाला भोजन सात्विक होना चाहिए; इसलिए यह शुद्ध, सरल और शाकाहारी होना चाहिए। 

सात्विक खाद्य पदार्थों में उड़द की दाल और चावल शामिल हैं; दोनों ही शुद्धता और सादगी को दर्शाते हैं, जो उन्हें दिवंगत आत्माओं को शांति प्रदान करने के लिए अनुष्ठानों के लिए आदर्श बनाता है। 

अब जानते हैं महत्व गाय के दूध से निर्मित घी का 

गाय के दूध व घी का महत्व 

किसी भी पूजा-पाठ में या पितृपक्ष में, पांच तत्वों की पूजा अर्चना की जाती है, जैसे अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी व आकाश की।

और कहा जाता है कि गाय के अंदर वो सभी तत्व मौजूद रहते हैं। यही कारण है कि हिन्दू धर्म में गाय को ईश्वर तुल्य माना जाता है। जब वो तत्व गाय मे मौजूद है तो उसके दूध में भी होगा ही...

यही कारण है कि पूजा-अर्चना में गाय के दूध से निर्मित खीर बनना, उसके निर्मित घी से दीया प्रज्वलित करना, मिष्ठान बनाना आदि किया जाता है। 

साथ ही यह मानते हैं कि कच्चा खाना, सकरा होता है और पक्का खाना, अर्थात घी से निर्मित पकवान जैसे पूड़ी-कचौड़ी, मिठाई इत्यादि शुद्ध खाना होता है।

शुद्ध होने के पीछे, गाय के घी का संयोजन ही है।

अब जानते हैं, क्यों भोग के लिए मीठा प्रसाद ही होता है।

मीठे का महत्व 

आपने हमेशा से देखा होगा कि, जब भी हम लोग‌‌‌ ईश्वर को भोग चढ़ाते हैं तो, वो मीठा ही होता है, फिर वो चाहे खीर हो, हलुआ हो या मिठाइयां हों...

पर मीठा ही क्यों?

जब हमें किसी को प्रसन्न करना होता है तो हम प्रयत्न करते हैं कि वो शीघ्र अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाए।

अब आप को बता हैं कि भोजन के विभिन्न स्वाद, जीभ के विभिन्न हिस्सों में स्थित होते हैं। 

तो पहले यह जान लेते हैं कि जीभ के किस हिस्से पर क्या स्वाद होता है।

जीभ का अग्र भाग मीठे स्वाद के प्रति संवेदनशील होता है , पिछला भाग​ कड़वा स्वाद के लिए और पक्षीय भाग नमकीन और खट्टे स्वाद के प्रति संवेदनशील होता है। 

तो अब समझे कि मीठा क्यों?

अरे भाई, आगे का भाग मीठे का स्वाद देता है तो बस जैसे ही प्रसाद को मुंह में रखा जाएगा तुरंत सबसे पहले मीठा मन‌ में प्रसन्नता के भाव जगा देगा और आपकी साधना सिद्ध हो जाएगी।

इसके साथ ही एक और वजह है, मीठा प्रसाद रखने की।

ईश्वर को सदैव सात्विक आहार का भोग लगाया जाता है और सभी भारतीय मीठे व्यंजन सात्विक ही होते हैं। यहां तक कि अगर भगवान को यदि cake का भी भोग लगाया जाता है तो वह भी सात्विक ही बनाया जाता है। ( आज कल भगवान जी को cake भी प्रसाद के रूप में चढ़ाने का प्रचलन आ गया है, वैसे भोग के रूप में विदेशी पकवान को भोग-प्रसाद न बनाएं,

 वही अच्छा है) 

आप कहेंगे कि श्री कृष्ण जी को तो 56 भोग लगाएं जाते हैं, उसमें खट्टा मीठा, सादा, कड़वा सब होता है। 

तो आपको बता दें, एक तो सब सात्विक होता है, प्याज-लहसुन रहित, दूसरा उन 56 भोग-प्रसाद में मीठे व्यंजन ही अधिक होते हैं। 

अब चलते हैं इमरती ही क्यों चढ़ती है?

इमरती का महत्व 

अब तक तो आप सबने भी  सब जोड़कर समझ लिया होगा कि इमरती ही क्यों?

दरअसल इमरती ऐसी मिठाई है, जो कि उरद दाल को पीसकर, फेंटकर, घी में तलकर, चाशनी में डुबोकर तैयार की जाती है। 

तो अगर इस तरह से देखें तो, इमरती ऐसी मिठाई है, जिसमें उरद की दाल, घी और मिठास तीनों एक में मिल जाता है। अर्थात एक perfect प्रसाद, अपने पितरों को अर्पित करने के लिए, उन्हें तृप्त और प्रसन्न करने के लिए...

तो बस यही कारण है, जिसके कारण पितृपक्ष में 16 दिन, सुबह-शाम हर समय इमरती मिठाइयों की दुकान पर मिलती है। 

एक कारण और भी है कि बरसात के मौसम में मिठाइयां जल्दी खराब हो जाती है, जबकि इमरती जल्दी खराब नहीं होती है, साथ ही यह गर्म हो या ठंडी, दोनों ही तरह से बहुत स्वादिष्ट लगती है। साथ ही इमरती बहुत मंहगी मिठाई भी नहीं होती है। Means कि उचित दाम में टिकाऊ मिठाई...

वैसे, एक और कारण भी है, इमरती सदियों से बन रही है, और गांव व शहर दोनों जगह easily मिल जाती है। या यूं कहें कि हमारे दादा परदादा के समय से इमरती को बहुत पसंद किया जाता रहा है। और पितृपक्ष में प्रसाद ऐसा चढ़ाया जाता है, जो कि हमारे परिजनों का प्रिय रहा हो, जो कि इमरती है।

आज पितृपक्ष  की चतुर्दशी तिथि है और कल सर्वपितृ अमावस्या या पितृपक्ष का आखिरी दिन...

तो अगर आपने अभी तक इमरती का भोग प्रसाद नहीं लगाया है तो कल अवश्य लगाएं,  कल का दिन, सभी पितरों को समर्पित होता है। 

और अगर आप, अपने पितरों को बहुत प्यार करते हैं, उन्हें सम्मान देते हैं और उन्हें पूर्ण रूप से प्रसन्न करना चाहते हैं, तो इमरती के साथ, रबड़ी का भोग भी अवश्य लगाएं, क्योंकि इमरती रबड़ी मिलकर पूर्ण होती है। 

सभी पितरों की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻