Monday, 5 October 2020

Satire : हाय दईया छिपकली

आज कल रुका रुका सा कठिन समय गुजर रहा है, जिससे लोगों के जीवन में नीरसता आ गई है। तो सोचा कुछ ऐसा लिखा जाए, जो सबको थोड़ा गुदगुदा जाए।

हम सभी के घर में कभी न कभी पाई जाने वाली प्राणी, जिससे अधिकांश लोग डरते भी हैं, आज उसी पर लिखा जाए।

तो प्रस्तुत है, आज की रचना द्वारा एक प्रयास, जो आपको कुछ पलों के लिए गुदगुदा देगा। कैसा लगा आपको, अवश्य बताएँ🙏🏻


हाय दईया छिपकली


 

हमारे रहे, एक शूरवीर भइया, बहुते ही निडर, किसी से भी नहीं डरने वाले।

किसी को भी कोई भी परेशानी हो, सब को वही याद आते।

एक दिन की बात, हमारे शूरवीर भइया को कब्ज हो गया था, बहुत दिनों से पेट साफ नहीं हो रहा था, तो भइया रहे परेशान, बहुत सारे घरेलू नुस्खे अपनाए, फिर एक दिन लगा, आज मुक्ति मिल जाएगी कब्ज से।

भइया गए बाथरूम, और कुछ होता, उसके पहले, दिख गई, हाय दईया छिपकली ।

यही ससुरी छिपकली ही तो है, जो भइया की वीरता के सारे सुर बिगाड़ देती है।

भइया डर डरकर के छिपकली को देखें और छिपकली घूर घूर कर उन्हें देखे। 

बस फिर क्या था, सारे नुस्खे धरे के धरे रह गए, और बस, कुछ भी नहीं हो रहा था।

जैसे तैसे राम-राम करते इस सेवा से निवृत हुए, पर तब तक छिपकली दरवाजे के एकदम पास आ गई। अब बाहर कैसे निकलें?

आज कल तो attached bathroom का जमाना है तो सोचा चलो नहा भी लिया जाए। श्रीमती जी से नहाकर कपड़े मांग लेंगे।

शायद तब तक छिपकली देवी को कुछ दया आ जाए और वो प्रस्थान कर जाएँ।

बस झटपट भइया बैठ गये, बाल्टी लोटा लेकर।

पर डर इस कदर विद्यमान था, कि पूरी बाल्टी का पानी खत्म हो गया, पर भइया रहे सूखे के सूखे। काहे कि, एक लोटा पानी भी सही से ना डाल पाए कि स्नान हो पाता, सारा पानी, इधर उधर ही डालते रह गये।

इस बीच मजाल कि, छिपकली देवी एक इंच भी हिलीं हो।

सोचा चलो साबुन भी लगा लिया जाए, पर सूखे बदन पर साबुन भी घिसने से क्या होगा? 

तभी उन्हें, एक उपाय सूझा, शरीर तो नहीं भिगा पाए, चलो साबुन ही भिगा लेते हैं। बस फिर क्या था, साबुन को लोटे में जल निमग्न कर दिया।

अब इस भीगे साबुन को रगड़ा, तो कुछ झाग कन्धों पर, कुछ झाग माथे पर और कुछ बड़ी सी तोंद पर लग गया।

इधर श्रीमती जी, घबरा रहीं कि शूरवीर जी बाहर क्यों नहीं आ रहे हैं?  तो वो जोर जोर से आवाजें देने लगीं और दरवाजा भड़भड़ाने लगीं।

इससे हुआ यह कि छिपकली देवी, गिर कर जमीन में विराजमान हो गई।

अब तो भइया की घिग्घी बंध गई, वो पूरे जोर से चिल्लाए, कि हमें बचाय लो, पर आवाज़ बाहर ना जाए।

छिपकली देवी भी नहाने वाली जगह की तरफ़ बढ़ने लगीं।

बस फिर क्या था, भईया ने आव देखा न ताव, लटक गये नल और शावर  की पाइप लाइन पर।

श्रीमती जी ने दरवाज़ा, भड़भड़ा भड़भड़ा कर खोल दिया। शूरवीर जी को ऐसा देखकर वो हक्की-बक्की रह गईं और शूरवीर जी लपक कर श्रीमती जी से चिपक गये, हाय दईया, हमें इस छिपकली से बचाय लो। श्रीमती जी बोलीं, कहाँ है, छिपकली?

क्योंकि, इस आपाधापी में छिपकली देवी सरक गईं थीं।

छिपकली देवी को नदारद देखकर शूरवीर जी की वीरता वापस आ गई, वस्त्र आदि धारण कर, वो बहुत प्यार से श्रीमती जी को देखने लगे, आखिर, आज उन्हीं के कारण वो, पुनः शूरवीर बन सके थे।

12 comments:

  1. Ha ha ha...Jabardast☺️☺️

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    1. Thank you very much for your appreciation 🙏❤️

      Your words energized me

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  2. अनु,मजेदार लघु कथा,शायद अधिकतर लोगों जीवन में घटी होगी,बेचारी छिपकली को भी तो अपनी जान बचा के छुपने की जगह बाथरूम में ही मिलती है!!!
    रूबी वर्मा

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    1. आप के सराहनीय शब्दों के लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

      बिल्कुल, हम सब का यही हाल होता है, छिपकली देवी को देखकर, सब उसकी अनुपस्थिति तक ही शूरवीर होते हैं।

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  3. अनीमिका जी तुम्हरीं सों मजो आ गओ गुइयाँ।
    एसो ही हँसी मजाक को किस्सो आगे भी लिखत रइयो।

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    1. आप के सराहनीय शब्दों के लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

      सच लिखना सार्थक कर दिया, आप के इस जवाब ने 🙏🏻🙏🏻

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  4. Replies
    1. आप के सराहनीय शब्दों के लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

      आप से ही व्यंग्य लिखने की प्रेरणा मिली है, आप का अनेकानेक धन्यवाद 🙏🙏🏻

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  5. 😃😃 बहुत ख़ूब ...बढ़ियाँ हास्यव्यंग अनु...बधाई💐💐

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    1. आप के सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

      आप के शब्द मुझे लिखते रहने की प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं

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  6. वह अनामिका क्या खूबसूरत चित्रण है। मजा आ गया पढ़ कर।
    मोनिका सिंह

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    1. आप के सराहनीय शब्दों के लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️

      आप के सराहनीय शब्द मुझे प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं 🙏🏻

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