Sunday, 12 May 2024

Story of Life: आज मैं माँ

मेरे बेटे अद्वय ने आज, बहुत ही मार्मिक कहानी हमें Mother's day के उपलक्ष्य में तोहफ़े के रूप में दी। जब उसे पढ़ा, तो उसने मेरे दिल को छू लिया।

एक ऐसी कहानी, जो हर मां से जुड़ी हुई है‌ और अगर सभी बच्चे इसे समझ सकें तो हर मां को गर्व होगा।

आज उसे ही साझा कर रहे हैं, शायद आपके दिल को भी छू ले...

Happy Mother's Day 

आज मैं माँ



एक दिन मैं अपनी माँ से बोला, “आपका जीवन कितना सरल और आनंददायक है। घर में ही तो रहना है, जब चाहो तब टेलीविज़न देख लो, जब चाहो तब सो जाओ, जो मन में आए वह कर लो। आपको न पढ़ाई-लिखाई करनी होती है, न ही आपको परीक्षा का डर है। आपके जीवन में तो आनंद ही आनंद है।”

यह सुनकर माँ बोलीं, “बेटा, मैं इस पड़ाव से गुज़र चुकी हूँ। फिर भी तुम्हें ऐसा महसूस होता है, तो चलो, एक दिन के लिए तुम माँ और मैं बेटा बन जाती हूँ। कल मैं विद्यालय जाऊँगी, और तुम गृह के सभी कार्य करना।”

मैं मन ही मन आनंदित हो उठा। मुझे लगा कि एक दिवस के लिए ही सही, परंतु मौज-मस्ती करने को तो मिलेगी।

मैं अलार्म से सुबह पाँच बजे उठा। इतनी जल्दी उठने का मन तो नहीं कर रहा था, परंतु जानता था, कि माँ के विद्यालय जाने के बाद खूब विश्राम कर लूँगा। 

फिर मैं चला माँ को उठाने, परंतु “पाँच मिनट बाद, दस मिनट बाद” कह-कह के पूरे बीस मिनट उन्होनें ऐसे ही काट दिए। मैं क्रोधित हो गया, और मैंने पानी के तीन-चार छींटे उनके चेहरे पर मारे, और वे झल्लाते हुए उठ गईं।

तभी मुझे नाश्ते की चिंता हुई। मुझे कुछ भी बनाना नहीं आता था, मैंने सोचा कि इन्हें आज दूध-ब्रेड दे देता हूँ। जैसे ही मैंने नाश्ता परोसा, वे चिल्लाने लगीं, “यह कैसा नाश्ता है? छिः! मैं इसे बिलकुल भी नहीं खाऊँगी।”

मुझे कुछ भी बनाना नहीं आता था, इसलिए मैंने उन्हें डाँटते हुए कहा, “चुपचाप इस नाश्ते को खा लो, वरना बहुत मारूँगा।” यह सुनकर रोते हुए उन्होनें सारा नाश्ता अपने मुँह में जल्दी-जल्दी ठूस लिया।

मैंने उनके टिफ़िन में चिप्स और बिस्कुट रख दिए, परंतु देखकर वे ज़िद पर अड़ गईं, “यह क्या है! मुझे पोहा चाहिए, केवल पोहा, और कुछ नहीं।” मैंने गुस्साते हुए कहा, “जो दिया है, वह ले जाओ।”

हम नीचे उतरे, परंतु तब तक बस निकल चुकी थी। उसके पश्चात मैंने उन्हें कैसे विद्यालय पहुंचाया, यह केवल मैं ही जानता हूँ।

घर पहुँच कर ए.सी. चला कर मैं अपने बिस्तर पर लेट गया, पर तभी आँधी आ गई और बिजली चली गई। चंद मिनटों में पूरा घर धूल-धूसरित हो गया। मुझे ध्यान आया कि मैंने खिड़की तो बंद ही नहीं की थी। लो जी, हो गया आराम, अब करो सफाई। बहुत मेहनत लगी, पर आखिरकार पूरा घर साफ हो गया।

मैं थक कर चूर हो चुका था, और मुझे बहुत नींद आ रही थी। मैं लेटा ही था, कि तभी कामवाली आ गई। मुझे लगा सारे कार्य स्वयं करके चले जाएगी, परंतु उससे भी काम कराना किसी सिर-दर्द से कम नहीं था। हर पाँच मिनट में तो वह मुझे बुला रही थी।

तभी चाची का फोन आ गया। फोन पर बात करते-करते मुझे सामने दूध के पैकेट दिखे, तभी लगा कि दूध भी तो उबालना है, इसलिए बात करते-करते मैंने दूध चढ़ा दिया।

बिस्तर पर लेट के बातों में मगन हो गया। तभी कुछ जलने की महक आने लगी, मैं रसोईघर की ओर दौड़ा, मैंने देखा दूध उफन के फैल चुका था। मैंने तुरंत गैस बंद की।

आह! माँ का जीवन कितना कठिन होता है। तभी मुझे माँ कि आवाज़ आई, “उठो बेटा, विद्यालय नहीं जाना।”

मैं भड़भड़ाकर उठा और माँ से कस के चिपक गया।

माँ ने पूछा, “क्या हुआ? कोई डरावना सपना देखा?”

मैंने ना में सिर हिलाते हुए कहा, “माँ, आप बहुत अच्छी हैं।”

माँ ने मेरा सिर सहलाते हुए मुझसे पूछा,"क्यों रे?”

मैंने मुसकुराते हुए कहा, “क्योंकि आप माँ हो....


मातृत्व दिवस पर विशेष....

10 comments:

  1. अहा! शानदार कहानी...जीते रहो advay 😘

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻😊

      Delete
  2. Very nice ,good thought

    ReplyDelete
  3. बहुत प्यारी कहनी है , पढ़ कर मज़ा भी आ रहा है और हंसी है। Very good Advày .

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻😊

      Delete
    2. बहुत बढ़िया कहानी।
      खुश रही।

      Delete
    3. बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻

      Delete
  4. Very nice expression

    ReplyDelete

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.