By Animika Sahai
The life is full of colours. So, keep exploring those different shades of life, here.
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Monday, 30 July 2018
Sunday, 29 July 2018
Article : अब ना वैसी बरखा
अब ना वैसी बरखा
आज जब सो के उठी, तो रोज़ की तरह कमरे का A.C.बंद कर के खिड़की खोल दी, अभी
खिड़की खोली ही थी, कि पानी
की बौछार ने गालों को सहला दिया। तपती गर्मी में वो ऐसी लगी मानो,
रेगिस्तान में झरना
फूट आया हो। उन बूंदों के स्पर्श से मन बचपन में लौट गया। जब बारिश का इंतज़ार किया
करते थे, और
मेघों के घिरने से वर्षा भी आ जाए, हम लोग इसके लिए सुरीले
गीत भी गाया करते थे। और बारिश शुरू हुई नहीं कि बारिश के होने से मिट्टी से उठने वाली सौंधी-2 खुशबू बरबस ही हमें बाहर खींच लेती और बस फिर क्या हम सब बच्चे घरों से बाहर छम छम नाचा करते, और कितने ही खेल शुरू हो जाते थे।
पैरों
से पानी उछालना, पानी पर कंकड़
चलाना और हाँ हम बड़े
अमीर भी हुआ करते थे, क्योंकि
पानी में हमारे जहाज़
जो चला करते थे, वो कागज़ की
कश्ती जिनका हमारी नज़रें दूर तक पीछा किया करती थीं।
बारिश हुई, तो पापा को पकौड़ियाँ बहुत भाती थीं। तो बस इधर बारिश हुई, और उधर माँ की कढ़ाई चढ़ जाती। पकौड़े-भजिए की सुगंध ही हमें वापस घर को खींच लाती थी। सच गरम गरम पकौड़े-भजिए खा के तो आत्मा ही तृप्त हो जाती थी।
गीत भी गाया करते थे। और बारिश शुरू हुई नहीं कि बारिश के होने से मिट्टी से उठने वाली सौंधी-2 खुशबू बरबस ही हमें बाहर खींच लेती और बस फिर क्या हम सब बच्चे घरों से बाहर छम छम नाचा करते, और कितने ही खेल शुरू हो जाते थे।
बारिश हुई, तो पापा को पकौड़ियाँ बहुत भाती थीं। तो बस इधर बारिश हुई, और उधर माँ की कढ़ाई चढ़ जाती। पकौड़े-भजिए की सुगंध ही हमें वापस घर को खींच लाती थी। सच गरम गरम पकौड़े-भजिए खा के तो आत्मा ही तृप्त हो जाती थी।
कभी जब पापा बाहर होते, तो वो लौटते
time नाथू हलवाई के समोसे
लाना नहीं भूलते। उन समोसों में जो स्वाद था, वो आज भी
याद है। कोई भी दो-चार से कम तो खाता ही नहीं था।
तभी छुटकू बोला, माँ क्या कर रही हैं? उसकी आवाज़ ने बचपन
के स्वर्णिम दिनों से वापस वर्तमान में ला दिया। उसको देख के लगा चलो, फिर से बचपन
में जिया जाए। पर इन apartment
में कहाँ वो आँगन, कहाँ वो बगीचा!
सोचा,
चलो नीचे parking area पर ही चलें। उसको
बोला तो, वो
बोला कपड़े गीले हो जाएंगे। मन में
आया- क्या बच्चा है! भीगने का सुख नहीं ले रहा है, क्योंकि कपड़े भीग
जाएंगे। अभी water park चलने की बात बोली होती, तो खुशी से झूमने लगता, तब कपड़े भीगने की परवाह नहीं होती।
मैं खुद ही नीचे भीगने चल दी, अभी parking
area के करीब भी नहीं पहुंची
थी कि गंदी बदबू का
भभका आया। guard से पूछा, तो बोला
madam आप नई आयीं हैं ना, यहाँ
हर बारिश में यही आलम
रहता है। ऐसा क्यूँ? अरे
madam दुनिया की polyethene
यहाँ इकठ्ठा रहती है।
वो ही सारी गंदगी रोक देती है, और बारिश
में सब मिलके बदबू फैलाते
हैं। भीगना तो छोड़िए, वहाँ रुक के बारिश देखने
का मज़ा भी नहीं ले
पायी।
लगा,
कोई नहीं, पकौड़े- भजिया बना के ही बारिश
का मज़ा लिया जाए। अभी कढ़ाई चढ़ाई ही थी, कि पतिदेव
की आवाज़ आ गयी, सुबह
सुबह क्या तला बनाने लगीं? कुछ
हल्का बना लाओ।
लो जी हो गयी बारिश, और हो गए उसके मज़े।
क्या जानेगी ये generation
, हमारे समय की बारिश और उसके
मज़े।
Polyethene का इस्तेमाल करना, हम
बंद करेंगे नहीं। दुनिया
के junk food खिला देंगे बच्चों को, पर Indian
snacks नहीं देंगे, क्योंकि वो बहुत oily हैं, health के लिए
ठीक नहीं होंगे। अब ना वैसी बरखा है ना वैसे
लोग।
Saturday, 28 July 2018
Story Of Life आखिर क्यों ? भाग -2
अब तक आपने पढ़ा बरसात में रैना की कार से आनंद टकरा जाता है, hospital में ले जाकर जब रैना उससे फिर मिलती है, तो उसे ये एहसास होता है कि वही उसका dream boy है, आनंद ने रैना को आखिर क्यों रंजना बोला.....
आखिर क्यों ? भाग -2
तभी आनंद
भी बोल उठा, अगर
आपको office जाने की जल्दी ना हो, तो आप car आने तक रुक जाइए। शायद आनंद भी नहीं चाहते कि मैं जाऊँ, सोच
कर रैना रुक गयी।
दोनों में बातें शुरू हो गयी। जितनी उन लोगों में बातें हो रही थी, उतना
ही दोनों एक दूसरे
से प्रभावित हो रहे थे।
आनंद की कार आ गयी, दोनों अपने
अपने रास्ते चले गए।
एक दिन रैना गिफ्ट शॉप से कुछ समान ले रही थी। वहाँ गाना बज रहा था, अबके सजन सावन
में..... तभी तेज़
बारिश शुरू हो गयी, और
एक आदमी तेजी से
अन्दर आया, और
रैना से टकरा गया। रैना जब तक
चिल्लाती, उसने देखा कि वो तो आनंद था। आनंद को देखकर
वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी। आनंद सकपका गया, बोला रंजना!
वो बोली नहीं रैना। Sorry मैं आपका नाम भूल
जाता हूँ। Ok रैना जी, आप इतनी ज़ोर ज़ोर से क्यों हँस रही हैं?
क्योंकि हमारी मुलाक़ात हमेशा, टक्कर, बारिश और सावन के गीतों के साथ ही होती
है। सुन कर आनंद भी हँस दिया।
अब दोनों की मुलाकातें दोस्ती में बदलने लगीं, और
कब प्यार में, दोनों
को पता ही नहीं चला।
बस रैना को जब भी आनंद मिलता, तो उसे
उसकी एक आदत अच्छी नहीं लगती थी, कि वो उसे
हमेशा मिलते ही रंजना ही बोलता था। और कभी भी कुछ भी भूल जाता था, उन
लोगों को मिलना है ये भी। कभी
वो उसे किसी जगह ले के आता था, और
order दे
के आता हूँ, ये कह कर जाता और आता ही नहीं था। जब भी
रैना फोन कर के पूछती, कहाँ हो? वो हमेशा
यही कहता, अरे
यार भूल गया था, आता हूँ अभी, और फिर
आ भी जाता।
एक दिन आनंद ने विवाह का प्रस्ताव रखा।
रैना सोचने लगी, एक भूलने की आदत के
अलावा आनंद में वो सब है, जो उसे अपने जीवन
साथी में चाहिए। उसने हाँ कर दी।
आनंद बोला, मेरे घर चलो, मैंने शादी का जोड़ा
वहीं रखा है। दोनों आनंद के घर आ गए। बहुत ही आलीशान बंगला था। ऊपर कमरे
में आकर रैना ने देखा, बहुत ही सुंदर शादी
का जोड़ा रखा था। आनंद बोला तुम ready
हो, मैं
अभी आया।
आज रैना बहुत खुश थी, उसका सपना जो पूरा
होने वाला था। रैना
को तैयार हुए तीन घंटे हो गए थे, पर अभी तक
आनंद नहीं आया था। अब उसके सब्र का बांध टूट गया था, वो नीचे आई, तो
एक प्यारी सी 7 साल की बच्ची ने उससे पूछा- आप?... और मेरे घर में क्या कर रही हैं? रैना
बोली- तुम्हारा घर? ये
तो Mr. आनंद का घर है?
वो मेरे
पापा हैं। पापा..... रैना के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। तभी उसकी वहाँ लगी तस्वीर
पर निगाह गयी, उसमें हार चढ़ा था। बेटा ये कौन हैं? ये मेरी
माँ रंजना हैं। रंजना की शक्ल बहुत कुछ रैना जैसी थी। वो
बोली आज से 1 साल
पहले मेरे माँ पापा का accident
हो गया था, जिसमे माँ नहीं रहीं। पापा माँ को
बहुत प्यार करते थे। तब से
पापा ऐसे हो गए हैं। उन्हें कभी कभी ही याद आता है कि मैं उनकी बेटी हूँ। और वैसे
भी वो बातें भूल जाते हैं। आज रैना को समझ आ रहा था, आखिर क्यूँ आनंद
उसे रंजना बोलता था। उसने रैना को कभी चाहा ही नहीं था, वो तो
केवल अपनी रंजना को ही ढूंढा करता था। सब सुन कर रैना कभी ना वापस आने के लिए चली
गयी। आज भी बूंदें बरस रही थी, पर बादलों से नहीं, उसकी आँखों से, और चाय की
दुकान पर गाना बज रहा था। नैना बरसे रिमझिम रिमझिम......
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