Wednesday, 27 August 2025

India's Heritage : महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की प्रधानता क्यों?

गणपति महाराज जी की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे, उनकी अनुकंपा से सम्पूर्ण जगत में शुभ हो।

प्रथम-पूज्य देव गणपति बप्पा जी के शुभागमन से सम्पूर्ण भारत में आज से गणेशोत्सव का शुभारंभ हो रहा है।

हालांकि उत्साह, भक्ति और उमंग की लहर सम्पूर्ण भारत में छाई हुई है, पर महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की उमंग चरम सीमा पर विद्यमान रहती है।

पर ऐसा क्या कारण है कि महाराष्ट्र में सर्वोपरि उत्सव गणेशोत्सव है?

आज अपने India's Heritage में इसी विषय में विचार करेंगे।

महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की प्रधानता क्यों?


छत्रपति शिवाजी महाराज और मराठा पेशवाओं के समय से गणेश पूजा का सांस्कृतिक महत्व रहा है।

पर महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप से प्रसिद्धि दिलाने का सारा श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है।

विस्तृत रूप से भी देख लेते हैं।


ऐतिहासिक कारण :

• छत्रपति शिवाजी महाराज -

भारत में समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न साम्राज्यों की स्थापना हुई थी।

सन् 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। 

शिवाजी महाराज अपनी मां जीजाबाई के सशक्त, सक्षम और आज्ञाकारी पुत्र थे। छत्रपति शिवाजी महाराज के समय मुगलों का लगभग पूरे भारत पर आधिपत्य था। पर छत्रपति शिवाजी महाराज की कोशिश रहती थी कि मुगलों को महाराष्ट्र से उखाड़ फेंकें। बस उसी कड़ी में शामिल हैं, महाराष्ट्र में गणेशोत्सव का आरंभ...

मान्यता है कि शिवाजी महाराज ने अपनी मां जीजाबाई के साथ मिलकर गणेश चतुर्थी यानी गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी, जो मुगल शासन के दौरान अपनी सनातन संस्कृति को बचाने का एक तरीका था। इसके बाद मराठा पेशवाओं के युग में भी गणेश पूजा का बड़े भव्य रूप से उत्सव मनाया जाने लगा।


• बाल गंगाधर तिलक -

बात भारत की पराधीनता के समय की है। अंग्रेजों ने सार्वजनिक रूप से लोगों के एकजुट होने पर पाबंदी लगा दी थी। पर उत्सव, विवाह और तीज-त्योहार पर एकत्रित होने पर कोई पाबंदी नहीं थी।

बस इसी बात का लाभ बाल गंगाधर तिलक जी ने उठाया और उन्होंने British शासन के खिलाफ राष्ट्रीय एकता और विद्रोह को बढ़ावा देने के लिए 1893 में गणेश उत्सव को पुणे में सार्वजनिक उत्सव के रूप में पुनर्जीवित कर दिया।

यह अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने का एक विशिष्ट तरीका था, क्योंकि तिलक जानते थे कि भारतीय आस्था के नाम पर एक हो सकते हैं। इस उत्सव के माध्यम से उन्होंने हिंदू राष्ट्रवादी एकता को बढ़ावा दिया।


सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व :

• सामाजिक समरसता -

धीरे-धीरे इस उत्सव की प्रसिद्धि बढ़ती गई, जिससे वह धार्मिक होने के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता का भी प्रतीक बन गया था, जिससे विभिन्न वर्गों के लोग एक साथ आने लगे थे।


• आस्था का केंद्र -

ऐसा क्या था कि गणेशोत्सव की प्रसिद्धि, दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही गई। दरअसल, गणपतिजी को बुद्धि, समृद्धि और भाग्य का देवता माना जाता है, जिसकी कामना हर प्राणी को रहती है। साथ ही नई शुरुआत के लिए भी उनकी पूजा करते हैं। यह आस्था ही महाराष्ट्र में गणेश जी की लोकप्रियता का मुख्य कारण है।


• गणेश मंडल -

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के दौरान बड़े सार्वजनिक मंडल बनाए जाते हैं, जहाँ गणेश जी की मूर्तियों को स्थापित किया जाता है और उत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव बहुत ही बड़े scale पर आयोजित किया जाता है। अतः इस उत्सव में दिव्यता और भव्यता दोनों शामिल है। और जहां दोनों शामिल हो, वहां प्रसिद्धि तो अवश्यंभावी है।


गणपति बप्पा मोरया....

गणपति महाराज जी की जय🙏🏻🎉💐

Tuesday, 26 August 2025

Poem: हरतालिका तीज निराली

शिव शम्भू और मां पार्वती की कृपा सदैव बनी रहे 🙏🏻 🙏🏻 

सभी को हरतालिका तीज की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐


हरतालिका तीज निराली

 



आई हरतालिका तीज निराली 

सुहागिनों का शुभ करने वाली 

हरा श्रृंगार, हर ओर हरियाली 

मन-मस्तिष्क में सुख भरने वाली 


कठिन तप, अटूट विश्वास 

शिव पार्वती की कृपा अपार 

सभी सुहागन व्रतों में इसको

सबसे अधिक बनाए खास 


प्रेम, भक्ति और तपस्या का

सजनी करती इसमें श्रृंगार 

अलौकिक प्रदीप्ति से 

दमके उसका घर संसार 


काले मेघ, घनघोर घटाएं 

मन में प्रेम प्रीत जगाएं 

साजन के संग मिलकर 

आओ यह शुभ पर्व मनाएं 

Wednesday, 20 August 2025

Short Story : इंसान की कीमत

इंसान की कीमत

एक लड़का था रजत, जो कि रोज एक आश्रम में जाता था, वहां के गुरु जी लोगों को बहुत-सी गूढ़ बातें बताते थे।

एक दिन रजत ने गुरु जी से पूछा, “एक बात बताइए कि कुछ मनुष्य महलों में रहते हैं तो कुछ झोंपड़ी में, कुछ के पास खाने को इतना है कि वो खाकर फेंक देते हैं तो कुछ के पास दोनों समय खाने के लिए भी नहीं है। ऐसा क्यों है? और दुनिया में इंसान की क्या कीमत है? साथ ही ज्यादा कीमती क्या है पैसा या काम?”

गुरु जी ने कहा, “बेटा, पैसा सबके पास होता है, कम या ज्यादा और काम भी सब के पास होता है, छोटा या बड़ा। पर कीमत सबसे ज्यादा होती है, स्थान की…”

“स्थान की? मतलब?”

वो बोले, “एक काम करो कि तुम मेरा यह कड़ा ले जाओ और इसकी कीमत पता करके आओ, पर इसे बेच कर मत आना, सिर्फ कीमत पूछकर आना और हां, कोई जब इसकी कीमत पूछे तो तुम्हें कुछ बोलना नहीं है, केवल दो उंगली दिखा देना।”

“इससे क्या होगा?”

“वो तुम्हें खुद पता चलेगा…”

कड़ा इतना सुन्दर था कि कोई भी उसे आसानी से खरीदने को तैयार हो जाता।
रजत कड़ा लेकर एक bus stand में गया।

उसने कड़ा बेचने के लिए एक आदमी को कड़ा दिया, कड़े की सुंदरता देखकर आदमी कड़ा खरीदने को तैयार हो गया, उसने रजत से कड़े की कीमत पूछी। उसने बिना कुछ कहे, दो उंगलियाँ दिखा दीं।

आदमी बोला, “₹200?”

“हाँ जी, धन्यवाद। माफ़ कीजियेगा, दरअसल मुझे केवल इसकी कीमत पता करनी थी, इसे बेचना नहीं है।” कहकर रजत ने कड़ा लिया और बहुत तेज़ी से आश्रम की ओर बढ़ गया।

“गुरू जी! गुरु जी! मुझे कीमत पता चल गई, इसकी कीमत ₹200 है।”

“अच्छा! बढ़िया, अब तुम एक बार फिर से किसी और जगह जाओ और फिर वही प्रकिया दोहराओ।”

रजत अबकी बार एक बड़े से mall में गया, उसने कड़ा बेचने के लिए एक आदमी को कड़ा दिखाया। वह खरीदने के लिए तैयार होकर उसने रजत से उस की कीमत पूछी। रजत ने बिना कुछ कहे, फिर से दो उंगलियाँ दिखा दीं।

आदमी ने पूछा, “₹2000?”

अपनी स्थिति को समझाकर और उस आदमी को धन्यवाद देकर रजत कड़ा वापस ले लेता है। वह खुशी से भर कर आश्रम की ओर चलने लगा।

“गुरु जी! इसकी कीमत तो बढ़ गई, इसकी कीमत दो हज़ार रुपए है।”

गुरु जी एक बार पुनः उसे किसी दूसरी जगह पर जाने को और वही प्रक्रिया वापस दोहराने को बोलते हैं।

इस बार रजत एक jeweller के showroom में जाता है। जब रजत उसे कड़ा दिखाता है, तो jeweller की आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। Jeweller सोचता है, ‘वाह! यह कड़ा तो खरे सोने से बना हुआ है। कितने नग और हीरे भी तो जड़े हुए हैं इसमें। लड़के से कीमत पूछी जाए।’

कीमत पूछी जाने पर रजत एक बार फिर दो उंगलियां दिखा देता है। Jeweller पूछता है, “₹200000?”

2 लाख की कीमत सुनकर तो रजत को भी भरोसा नहीं होता। Jeweller से रजत कहता है कि वो कड़ा उसके गुरु की आखिरी निशानी है और वो उसे बेचना नहीं चाहता। Jeweller और महंगे भाव पर भी उसे खरीदने को तैयार हो जाता है, पर रजत नहीं मानता है।

चमकती आँखों के साथ वह आश्रम में वापस लौटता है। हैरानी और खुशी के मिले हुए भावों के साथ वह गुरु जी से बोलता है, “कितना कीमती है यह कड़ा! जोहरी तो ढाई (2.5) लाख रुपए में भी उसे खरीदने को तैयार हो गया था।”

“महंगा तो होगा ही। शुद्ध सोने से बना और इतने हीरे-जवाहरात से जो जड़ा हुआ है। वैसे तुमने एक बात देखी क्या?”

“कौन-सी बात?”

“Bus stand पर उस कड़े की कीमत दो सौ रुपए थी। लोग वहाँ से अक्सर इसी मूल्य के सामान लेते हैं। आदमी को कड़ा सुन्दर लगा, इसलिए अपने हिसाब से कीमत बता दी।

फिर जब तुम mall में गए, तो उसकी कीमत बढ़ के दो हज़ार रुपए हो गई। वहां से लोग दस-बीस हज़ार के सामान ले लेते हैं, और उस आदमी को नग कीमती लगे होंगे। इससे कड़े की कीमत बढ़ गई।

आखिर में तुम गए जोहरी के पास। वो जानता था कि कड़े की असली कीमत क्या है। इसलिए उसने उसकी कीमत ढाई लाख रुपए बताई, जो वास्तव में इस कड़े की कीमत है।

जिस प्रकार इस कड़े की कीमत बिकने वाली जगह पर आधारित थी, उसी प्रकार से मनुष्य की असली कीमत भी तब ही होती है, जब वह अपने उचित स्थान पर हो। अतः, मनुष्य को सदैव अच्छी संगत में रहना चाहिए और ऐसी जगहों पर ही रहना चाहिए जहाँ उसका आदर हो।”

“समझ गया गुरु जी। आप सच में महान हैं, एक कड़े के माध्यम से आप ने जीवन की अनमोल सीख दे दी मुझे।” रजत मुस्कुराते हुए आश्रम से बाहर निकलता है।