Saturday, 5 July 2025

Article : सकारात्मक ऊर्जा

अभी कुछ दिन पहले यह एहसास हुआ कि जिंदगी के अनवरत चलते रहने में सब कुछ आपका सोचा हुआ नहीं होता है। 

बहुत कुछ वो भी होता है, जो कोई और सोच रहा होता है। जो उसकी इच्छा होती है। यहां "उसकी" का तात्पर्य ईश्वर से नहीं है, बल्कि उनसे है, जो आप से जुड़े हुए हों या शायद वो जिन्हें आप पहचानते भी नहीं हैं।

पर एक बात समझ नहीं आई कि जब हमें हमारे कर्मों के अनुसार फल मिलना होता है, तो दूसरे की सोची हुई इच्छा का प्रभाव हम पर क्यों पड़ता है?

हम अपने कर्मों, अपनी सोच को तो सकारात्मक रख सकते हैं, पर दूसरों की नहीं…
सकारात्मक ऊर्जा

फिर किस तरह से यह करें कि फल हमें हमारे कर्मों और हमारी सोच का मिले?

या किस प्रकार से अपने सजाए हुए सपनों को बिखरते देखकर दुखी न हों?

आखिर हम कौन से सपने संजोएं और कौन से नहीं...

या सपने संजोना ही छोड़ दें?

पर अगर सपने ही नहीं संजोएंगे, तो आगे बढ़ने की, कठिन परिश्रम करने की इच्छा भी बलवती नहीं होगी।

और न ही जिंदगी में कोई उत्साह और उमंग होगी।

मन नीरसता के गहरे अंधकार में जाता चला जाएगा...

पर क्या यह सही है?

और क्या यह सही है कि कर्म करो, फल की इच्छा न करो... वाली बात, क्योंकि कर्म तो हम कर रहे हैं और फल दूसरों के कर्म और इच्छा से भी मिल रहे हैं...

अब से एक नया अभियान शुरू किया है, सकारात्मक ऊर्जा को प्रज्वलित करने का, स्वयं की भी और अपने आस-पास मौजूद सब लोगों में भी...

एक नया प्रयोग कि क्या, जब सब लोग मिलकर एक ही विषय में सोचें तो क्या असंभव कार्य भी संभव हो सकता है...

क्योंकि जब किसी की आपके प्रति विपरीत सोच काम कर सकती हैं, तो आपके पक्ष वाली सोच भी काम करनी चाहिए…

ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि हे ईश्वर, आप मनोकामना सिद्ध करने वाले हैं, इस मनोकामना को भी पूर्ण कीजिए और हमारी भक्ति स्वीकार कीजिये। अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाए रखियेगा 🙏🏻

Saturday, 28 June 2025

India's Heritage : जगन्नाथ रथयात्रा - एक विरासत

आज India's heritage segment में विश्व की सबसे बड़ी रथ यात्रा के विषय में वर्णन कर रहे हैं।

ओडिशा के पुरी शहर में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा को दुनिया भर के लोग बहुत श्रद्धा और उत्साह से देखते हैं।

जगन्नाथ, अर्थात् सम्पूर्ण जगत के नाथ, भगवान श्री हरि के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा व मान्यता है। 

आइए जानते हैं कि रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई…

जगन्नाथ रथयात्रा - एक विरासत


रथयात्रा की शुरुआत :

स्कंद पुराण के अनुसार, एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जताई।

तब जगन्नाथ और बलभद्र ने उन्हें रथ पर बिठाकर नगर भ्रमण करवाया। इस दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर भी गए और वहां सात दिन ठहरे, तभी से इस यात्रा की परंपरा शुरू हुई। आज भी यही यात्रा रथों के माध्यम से मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक होती है।


27 जून से 8 जुलाई :

इस साल यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 8 जुलाई तक चलेगी। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विशाल रथों पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाएंगे। 

यह यात्रा 12 दिन तक चलती है और इसके हर दिन का एक खास महत्व होता है।


विशेष दिवस :

कुछ विशेष दिन जैसे रथ यात्रा के पहले दिन पुरी के राजा खुद ‘छेरा पन्हारा’ रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ के नीचे का हिस्सा साफ करते हैं। यह विनम्रता और सेवा भाव का प्रतीक माना जाता है।

‘हेरा पंचमी’ के दिन देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर जाकर नाराज़गी जताती हैं कि भगवान उन्हें छोड़कर क्यों चले आए? 

यह आयोजन पूरी यात्रा को और भी रोचक बना देता है।


रथ की रस्सियों के नाम :

बहुत कम लोगों को यह पता होता है कि भगवान के इन तीनों रथों को खींचने वाली रस्सियों के भी अपने नाम होते हैं। भगवान जगन्नाथ के 16 पहियों वाले रथ को “नंदीघोष” कहा जाता है। इस रथ की रस्सी का नाम है शंखाचुड़ा नाड़ी है।

बलभद्र जी का रथ, जिसमें 14 पहिए होते हैं, उसे “तालध्वज” कहा जाता है और उसकी रस्सी को बासुकी नाम से जाना जाता है। 

देवी सुभद्रा का रथ, जिसमें 12 पहिए होते हैं और जिसे “दर्पदलन” कहा जाता है, उसकी रस्सी का नाम है स्वर्णचूड़ा नाड़ी। 

ये रस्सियां न सिर्फ रथ को खींचने का माध्यम होती हैं, बल्कि इन्हें छूना भी बहुत बड़ा सौभाग्य माना जाता है।


कौन खींच सकता है रथ :

पुरी की रथ यात्रा की एक सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी तरह का भेदभाव नहीं होता। कोई भी व्यक्ति, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या देश का हो, रथ खींच सकता है।

शर्त बस इतनी है कि उसका मन सच्चे भाव से भरा हो। 

मान्यता है कि रथ की रस्सी खींचने वाला व्यक्ति जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाकर मोक्ष की ओर बढ़ता है।

हालांकि, कोई भी एक व्यक्ति ज्यादा देर तक रथ नहीं खींच सकता।

ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि हर आने वाले श्रद्धालु को यह अवसर मिल सके, और अगर कोई रथ न भी खींच पाए तो भी चिंता की बात नहीं, क्योंकि इस यात्रा में सच्चे मन से शामिल होना भी हजारों यज्ञों के बराबर पुण्य माना जाता है।


जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी अन्य रोचक जानकारियों के लिए नीचे दिए गए link पर click करें -

https://shadesoflife18.blogspot.com/2023/06/article_20.html?m=1


जय जगन्नाथ 🙏🏻 

श्रीहरि विष्णु, सबकी मनोकामनाओं को पूर्ण करें।

Friday, 27 June 2025

Story of Life : प्यार पर घात (अंतिम भाग)

श्लोक ने श्वेता को बाहों में भर लिया, आहा! क्या बात है madam, बिजली गिरने के mood में हैं। Coffee पीने चलें?

ओह! क्यूं आज आपकी स्नेहा ने coffee पीने से मना कर दिया था, जो जल्दी चले आए और coffee पीने चलने की बात कर रहे हो... श्वेता ने श्लोक की बाहों से छिटक कर बोला...


प्यार पर घात (भाग-1),

प्यार पर घात (भाग-2),

प्यार पर घात (भाग-3) और 

प्यार पर घात (भाग-4) के आगे…

प्यार पर घात (अंतिम भाग)


स्नेहा... श्लोक बहुत जोर-जोर से हंसने लगा...

स्नेहा नहीं, महेश... हंसते-हंसते श्लोक ने कहा।

महेश!! क्या मतलब? श्वेता ने पूछा 

अरे, मैं तो bore हो गया एक महीने तक रोज़-रोज़ एक घंटा महेश के साथ बैठकर...

तुम क्या बोल रहे हो, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है।

आओ, पहले मेरे नजदीक तो आओ...

नहीं, दूर ही रहकर बताओ, गुस्से से भरी श्वेता बोली...

अरे, तुम्हें याद है वो दिन, जिस दिन मैंने तुम्हारे बेडोल शरीर के विषय में comment किया था? 

कैसे भूलूंगी, तुम्हारा वो दंश...

हाँ, उस दिन मैं आवेश में बोल गया था, उसका मुझे अफसोस भी हुआ, कि मैं यह क्या बोल गया?

अच्छा, अफसोस हुआ था, ऐसा लगा तो नहीं था उस दिन..

हुआ था, मैं तुम्हारे पास तुम से माफी मांगने भी आने वाला था कि तभी एक विचार ने मुझे रोक लिया?

अच्छा वो क्या? श्वेता का ग़ुस्सा, कौतूहल में बदल रहा था। 

वही जो मैंने किया...

और क्या किया तुमने?

मैंने एक गुलाबी खूशबूदार काग़ज़ अपनी जींस में रखा, स्नेहा के नाम प्रेम अनुरोध लिखकर, जो तुम देख सको...

और तुम्हें कैसे पता, मैंने देख लिया है?

क्योंकि अगले दिन जेब में दस का सिक्का नहीं था।

बस उसी दिन से मैंने रोज़ महेश के साथ एक घंटा गुजराना या यूं कहूं, झेलना शुरू कर दिया...

पर क्यों किया, यह सब?

श्लोक, श्वेता का हाथ पकड़कर आईने के सामने ले गया और बोला, देखो, अपनी प्यारी sweetheart श्वेता को वापस पाने के लिए...

पिछले एक महीने अपना पूरा ध्यान रखने के कारण, श्वेता पहली-सी निखर गई थी।

अच्छा, तो तुमने मेरे प्यार पर घात नहीं किया?

सोच भी नहीं सकता, श्लोक की आंखों में प्यार और सच्चाई थी।

तो फिर वो गुलाबी खूशबूदार काग़ज़, आज भी तुम्हारे पास होगा...

बिल्कुल है, कहकर उसने वो कागज श्वेता के हाथ में थमा दिया।

साथ ही कहा, मुझे माफ़ कर देना श्वेता, उस रात के लिए और पूरे महीने के लिए भी... क्योंकि तुम्हें तुम से वापिस मिलाने के लिए, मेरे पास कोई और उपाय नहीं था।

मुझे फ़र्क नहीं पड़ता, तुम जैसी भी हो, मेरी हो, और मुझे बहुत खूबसूरत ही लगती रहोगी।

पर तुम्हारे अंदर की वो कुंठा, जो तुमने शौर्य के होने के बाद कही थी, उसे ठीक करना था।

जिसके लिए तुमने दो-चार बार प्रयास भी किया, पर पूरी लगन से नहीं और अंत में छोड़ भी दिया.. 

मुझे लगा कि अगर तुम्हारे प्यार पर घात लगा, तो शायद तुम अपना ध्यान रखना शुरू कर दो, और वही हुआ...

पुरानी श्वेता वाला, सुडौल, छरहरा शरीर, बहुत नाज़ुक और खूबसूरत, glow करने वाला confident चेहरा वापिस आ गया था।

आईना देखते हुए श्वेता अपने आप को देखकर अपने प्यारे श्लोक पर निहाल हो गई, जिसे वो प्यार पर घात समझ रही थी, वो तो उसे उससे मिलाने की कोशिश थी।

श्वेता, आगे कभी मत समझना कि मैं हमारे प्यार पर घात कर सकता हूं, मेरी श्वेता के आगे, सारे पानी भरते हैं। श्लोक ने श्वेता का मुंह अपने हाथों में लेकर कहा...

नहीं, कभी नहीं‌ मुझे मुझसे मिलाने के लिए, बहुत सारा धन्यवाद...

बस धन्यवाद?

श्वेता प्रेम से अभिभूत श्लोक की बाहों में समा गयी।