Friday, 31 October 2025

Article : National Unity Day

आज राष्ट्रीय एकता दिवस है।

राष्ट्रीय एकता दिवस, यह किस उपलक्ष्य में आयोजित किया गया है?

2014 से government offices में तो लगभग सभी जानते हैं, किन्तु अभी भी बहुत से लोग नहीं जानते हैं।

राष्ट्रीय एकता दिवस पर विशेषतः सतर्कता पर ही कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। Slogan, essay, debate, drawing competition etc.

आज सरदार वल्लभ भाई पटेल जी का जन्मदिवस है और आज उनकी 150वीं जयंती है।

सरदार वल्लभ भाई पटेल जी से कौन नहीं परिचित होगा, लेकिन शायद पूरी तरह से नहीं, मतलब उनकी उपलब्धियों से या यूं कहें उनके द्वारा किए गए महान कार्यों से...

National Unity Day


सरदार वल्लभ भाई पटेल आजादी की लड़ाई से जुड़े एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी थे। 

पर जितने सक्रिय यह देश को आजादी दिलाने के लिए थे, उसके अधिक उनका विशेष योगदान, आज़ादी के बाद रहा।

देश के आजाद होने के बाद यह decide होना था कि देश का प्रधानमंत्री किसे बनाया जाए, तब सर्व सम्मति से सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम ही चुना गया था।

लेकिन नेहरू की महत्वाकांक्षा के कारण गांधी जी ने नहेरू जी को प्रधानमंत्री और पटेल जी को उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री बना दिया।

देशभक्त पटेल जी ने देशभक्ति और गांधी जी को सम्मान देते हुए इस पद को भी सहर्ष स्वीकार कर लिया।

अब शुरू होता है उनका विशेष योगदान...

अंग्रेजों ने भारत को आज़ाद करते हुए एक षड्यंत्र रचा, उन्होंने भारत को 562 रियासतों में बांट दिया, तथा भारत-पाकिस्तान का विभाजन इस तरह से किया कि भारत के बीच-बीच में पाकिस्तान का हिस्सा था। जिससे भारत और पाकिस्तान, दोनों में से कोई भी पनप न पाए, उनका विकास न हो पाए।

उस समय आज़ादी के मिलने से जितनी प्रसन्नता थी, विभाजन होने से उतना ही अवसाद...

पूरा भारत भूखमरी, गरीबी और असंतोष की भावना से जल रहा था। ऐसे में देश का नेतृत्व आसान नहीं था और 562 रियासतों को जोड़कर एक करना उससे भी कठिन।

ऐसे समय में बहुत ही सतर्क, सुदृढ़, दूरदर्शी और सशक्त व्यक्ति की आवश्यकता थी और उसी महती भूमिका को निभाया था, हमारे सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने।

पटेल जी की दूरदर्शिता, सुदृढ़ता, सतर्कता ने सशक्त रूप से निर्णय लेना आरंभ कर दिया।

उन्होंने न केवल सारी रियासतों को जोड़कर एक भारत किया, बल्कि पाकिस्तान के जो भाग भारत के बीच-बीच में थे, उन्हें सम्पूर्ण भारत बना दिया। 

उनकी ही कोशिश से कश्मीर भी भारत मे मिल पाया था।

तो अगर इसे संक्षेप में समझें तो खंड-खंड भारत का अखंड भारत बनना, सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के अथक प्रयासों के कारण ही संभव हुआ है। 

पर इसे त्रासदी ही कहेंगे कि उनके इतने बड़े योगदान को यूं ही धूमिल कर दिया गया, कि हमें अपने बचपन में कभी इससे अवगत ही नहीं कराया गया। जबकि सरदार वल्लभ भाई पटेल एक कांग्रेसी नेता ही थे। उसके पश्चात भी यह पक्षपात, केवल परिवार वाद को आगे बढ़ाने के लिए...

आप मानें या न मानें, पर धन्य है BJP government, जिसने 2014 में आकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के अमूल्य योगदान को धन्यवाद देने के लिए, उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाना प्रारंभ कर दिया। 

उन्होंने 2013 में गुजरात के केवड़िया में, महान भारतीय राजनेता सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा बनवाने का कार्य आरंभ किया, जो 2018 में पूरा हुआ। इसे statue of unity का नाम दिया, जो दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसकी ऊंचाई 182 मीटर है। इससे प्रतिवर्ष करोड़ों का revenue आता है।

आज जब उनकी 150वीं जयंती थी, तो केवड़िया में प्रधानमंत्री मोदी जी ने सरदार पटेल जी को श्रद्धांजलि प्रदान की।

उसमें आयोजित होने वाला programme इतना भव्य था, मानो 26 January में होने वाले आयोजन का छोटा-सा प्रतिरूप।

इस एकता parade में शौर्य शक्ति और अखंडता का संदेश दिया गया, जिसमें BSF, CRPF, CISF, ITBP, SSB, NSG, NDRS, विभिन्न राज्यों की पुलिस टुकड़ी आदि की parade शामिल थी।

विभिन्न राज्यों की झांकियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए, जिनसे प्रदर्शित हो रहा था, मैं शक्ति भी सुरक्षा भी।

शौर्य शक्ति, एकता, भारतीय संस्कृति, देशभक्ति, एकता में अनेकता, सामंजस्य शक्ति, दूरदर्शिता आदि का अनूठा संगम था।

अब से हम National Unity Day को सिर्फ government offices तक सीमित नहीं रहने देंगे, बल्कि हम सब भारतीय, उनके सामने नतमस्तक होकर उनके अमूल्य योगदान को धन्यवाद देंगे।

आइए, आज सरदार वल्लभ भाई पटेल जी के सपने को साकार करने का संकल्प लेते हैं।

एक भारत, श्रेष्ठ भारत 🇮🇳 

और साथ ही संकल्प लें, भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का।

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳 

Wednesday, 29 October 2025

Article : ढलते सूर्य को प्रणाम

कल लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा का सूर्य देव को अर्घ्य कर समापन हो गया।

छठ पूजा, मुख्यतः बिहारी लोग करते हैं, और 2014 से पहले यह लगभग बिहार तक ही सीमित था।

शायद कुछ लोगों को यह अच्छा न लगे, पर सच्चाई यही है कि 2014 के बाद से भारतीय संस्कृति, तीज-त्यौहार इत्यादि, किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रह गये हैं बल्कि हर राज्य में सभी भारतीय तीज-त्यौहार अपनी छटा बिखेर रहे हैं।

अभी हाल में छठ पूजा में वही माहौल दिल्ली व अन्य राज्यों में देखने को मिला। 

ढलते सूर्य को प्रणाम


ऐसा नहीं है कि इस साल जब दिल्ली में BJP government आई है, तब ही छठ पर्व धूमधाम से मनाया गया है। उससे पहले आप सरकार के समय भी धूमधाम थी, पर इस साल धूमधाम थोड़ी और बढ़ गई है।

और यदि BJP government centre में रही, और जिस तरह का जोश लोगों में देखने को मिल रहा है, सभी तरह के त्यौहारों को प्राथमिकता मिलती ही रहेगी। 

छठ पर्व बहुत सालों से मनाया जा रहा है‌ और इसमें सूर्यदेव की हर समय की पूजा की जाती है। 

लेकिन शायद ही किसी का ध्यान, इस ओर गया हो, जिस ओर मोदी जी का ध्यान गया और वो कि सिर्फ और सिर्फ छठ पर्व में ही ढलते सूर्य की भी पूजा की जाती है।

सूरज की दो अवस्थाएं होती हैं, उगता सूरज और ढलता सूरज।

उगते सूरज को भाग्योदय, सफलता और समृद्धि से संदर्भित किया जाता है, जबकि वहीं ढलते हुए सूरज को जीवन के ढलान‌ से, जीवन के आखिरी पड़ाव आदि से संदर्भित किया जाता है।

इस तरह से हमेशा उगते सूर्य को प्रणाम किया जाता है, उसे ही मान देते हैं।

तो जो अगर डूबते हुए सूरज को भी अर्घ्य दे रहा है, तो उसमें ऐसा क्या विशेष है?

वो विशेषता है, संस्कार की...

संस्कार की! इसमें संस्कार वाली बात कहां से आ गई?

जी बिल्कुल, संस्कार ही होते हैं। उन मनुष्यों में, जो सामने वाले को उसका पद, समृद्धि और वैभव देखकर नहीं, अपितु उसको हर स्थिति में सम्मान देता है।

यहाँ यह सम्मान, किसी गरीब को देना, किसी retired बुजुर्ग को देना, जो महिलाएँ नौकरी पेशा नहीं हैं, उन्हें देना, इत्यादि। एक तरह से देखा जाए तो सबको हर स्थिति में सम्मान प्रदान करना।

और छठ पूजा, सूर्य देव की हर स्थिति में पूजा करना उसी सम्मान को दर्शाता है।

इसके साथ ही एक और बात है, जो बिहारियों को बाकी राज्यों के हिन्दूओं से श्रेष्ठ बनाता है और वो कि छठ पर्व का बहुत कठिन नियम होता है। पर आज भी वो सारे कठिन नियमों का विधिवत न केवल पालन कर रहे हैं, बल्कि पूरा परिवार एकजुट होकर कंधे से कंधा मिलाकर काम करने में एक दूसरे का साथ देते हैं।

मुस्लिमों में पांच वक्त के नमाज़ी को विशेष सम्मान दिया जाता है। उसी प्रकार हिन्दुओं को भी छठ पूजा करने वाले को विशेष सम्मान प्रदान करना चाहिए। 

बल्कि इसके इतर, बिहारियों को वो सम्मान नहीं मिलता है, जो उन्हें मिलना चाहिए।

एक कहावत है, एक बिहारी, सब पर भारी और देखा जाए तो यह कुछ हद तक सही भी है।

बिहारियों के सभी व्रत-त्यौहार सबसे कठिन होते हैं, फिर भी वो वैसे ही विधिवत पूजन करते आ रहे हैं, उनके अंदर आज भी ईश्वर के प्रति आस्था सबसे अधिक है।

अगर अपने से बड़ों को सम्मान देने की बात कहें तो वो भी सबसे अधिक इनमें मिलता है।

अगर संस्कार कहें तो वो भी बहुत कुछ पहले जैसा ही है, पहनने-ओढ़ने में, रखरखाव में, बातचीत में, खाना-पीना बनाने इत्यादि में।

और अगर शिक्षा की बात करें तो सबसे ज़्यादा IAS, PCS officer बिहार से ही select होते हैं। 

छठ व्रत रखने वाले सभी व्रतियों को सम्पूर्ण सम्मान के साथ प्रणाम।

हमें आधुनिकता के साथ-साथ अपने संस्कारों से भी सदैव जुड़े रहना चाहिए। जहां दोनों हैं, सही अर्थों में वही सफल से, समृद्ध है, भाग्यवान है।

जय छठी मैया, जय भारत 🙏🏻 

Tuesday, 28 October 2025

Song : पहिले पहिल छठी मइया

आधुनिकता के इस दौर के बावजूद भी लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर ना ही परंपराओं में कोई बदलाव हुआ, ना ही लोगों की आस्था कम हुई है। यही वजह है की सैकड़ों वर्षों से आस्था और विश्वास से लोग, लोक आस्था का महापर्व छठ मानते आए हैं।

इस पर्व में गाए जाने वाले गीतों की विशेषता यह होती है कि इसे भोजपुरी, मैथिली या मगही भाषा में गाया जाता है।

यह बहुत कर्णप्रिय होते हैं, और अपने तीज़-त्यौहार और संस्कृति से जुड़े हुए होते हैं।

पिछली छठ पर्व पर कांच ही बांस की बहंगिया गीत का हिंदी में भावार्थ किया था, जो लोगों द्वारा बहुत पसंद किया गया था, तथा हमारे पाठकों की यह मांग थी कि कुछ अन्य लोकप्रिय गीतों को भी हिंदी में भाव के साथ अनुवादित कर दें, जिससे आने वाली पीढ़ी इन गीतों के भावार्थ के साथ इनसे जुड़ सकें।

आज पहिले पहिल छठी मइया गीत का भावार्थ करने का प्रयास किया है, आशा है यह भी आप लोगों की कसौटी पर खरा उतरेगा।

पहिले पहिल छठी मइया


यह गीत, तब के संदर्भ में रचित किया गया है, जब कोई व्रती, पहली बार छठी मैया का व्रत आरंभ कर रही है, इस गीत के द्वारा छठी मैया को रिझाने, उन्हें अपने द्वारा किए गए पहले व्रत में हुई त्रुटि को माफ़ करने और व्रत से प्रसन्न होकर आशीष देने की कामना कर रही है।

जिसमें पति से स्नेह मिलने की कामना, पुत्र की मंगल कामना, कुल-परिवार की सुख-सम्पन्नता की कामना की गई है।

साथ ही वो घाट पर अति मनोहारी दृश्य को देखकर अति प्रसन्न होकर, छठी मैया से आए हुए उनके अनेकों भक्तों के भी सुख की कामना कर रही है। 

छठी मैया से मिलने वाली हजारों असीस की कामना कर रही है।

इस भजन के बोल इस प्रकार हैं, एक बार इन बोल को ऊपर दिए गए भावार्थ के साथ मिलाकर समझेंगे तो यह गीत आपके मन-मस्तिष्क पर छपता चला जाएगा, और आप स्वतः छठी मैया के असीम स्नेह और कृपादृष्टि से जुड़ते चले जाएंगे।


पहिले पहिल छठी मइया 

पहिले-पहिल हम कइनी

छठी मइया, बरत तोहार

छठी मइया, बरत तोहार

करीहा क्षमा, छठी मइया

भूल-चूक, गलती हमार

भूल-चूक, गलती हमार

गोदी के बालकवा के दीहऽ

छठी मइया, ममता, दुलार

छठी मइया, ममता, दुलार

पिया के सनेहिया बनइहा

मइया, दीहऽ सुख सार

मइया, दीहऽ सुख सार

नारियर, केरवा, गउदवा

साजल नदिया किनार

साजल नदिया किनार

सूनीहा अरज, छठी मइया

बढ़े कुल-परिवार

बढ़े कुल-परिवार

घाट सजवली मनोहर

मइया, तोर भगती अपार

मइया, तोर भगती अपार

लीही न अरगिया, हे मइया

दीहीं आसीस हजार

दीहीं आसीस हजार

पहिले-पहिल हम कइनी

छठी मइया, बरत तोहार

छठी मइया, बरत तोहार

करीहा क्षमा, छठी मइया

भूल-चूक, गलती हमार

भूल-चूक, गलती हमार

भूल-चूक, गलती हमार


बोलो छठी मैया की जय 🙏🏻 

छठी मैया, आप अपने भक्तों पर अपनी कृपादृष्टि, अनुकंपा और स्नेह सदैव बनाए रखियेगा 🙏🏻  

छठी पर्व से जुड़ी अन्य post, कृपया इन्हें भी देखें और छठी मैया से पूर्ण रूप से जुड़ जाएं और उनकी हजारों-हजार असीस पाएं।

Sunday, 26 October 2025

Bhajan (Devotional Song) : है चच्चा जी का साथ

आज चच्चा जी महाराज के पावन जन्मोत्सव, कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी पर यह भजन उनके श्री चरणों में समर्पित है।

चच्चा जी महाराज, हम सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें 🙏🏻 

है चच्चा जी का साथ


कितनी हो कठिन डगर,

मुझको लगता नहीं है डर।

है उनका आशीर्वाद तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो किस बात की फ़िक्र॥


वो हैं अपने रखवाले,

दुःख-दर्द मिटाने वाले।

है उनका सिर पर हाथ तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो किस बात की फ़िक्र॥


हों कितनी काली रातें,

कट जाएंगी मुस्काते।

है संतों का साथ तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो किस बात की फ़िक्र॥


सद्काम तू किए जा,

चच्चा का नाम लिए जा।

है उनसे ही हर बात तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो किस बात की फ़िक्र॥


कर्म सभी कट जाएंगे,

वो हमको लेने आएंगे।

है उन पर यह विश्वास तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो किस बात की फ़िक्र॥ 


कितनी हो कठिन डगर,

मुझको लगता नहीं है डर।

है उनका आशीर्वाद तो,

किस बात की फ़िक्र?

है उनका सिर पर हाथ तो,

किस बात की फ़िक्र?

है संतों का साथ तो,

किस बात की फ़िक्र?

है उनसे ही हर बात तो,

किस बात की फ़िक्र?

है उन पर यह विश्वास तो,

किस बात की फ़िक्र?

है चच्चा जी का साथ,

तो...

किस बात की फ़िक्र?



चच्चा जी महाराज व सभी संतों का हृदय से अनेकानेक आभार 🙏🏻🙏🏻

Friday, 24 October 2025

Poem : काला मच्छर मोटा

जब भी मौसम बदलता है, ठंड से गर्मी या गर्मी से ठंड, ऐसे समय के आते ही मच्छरों की भरमार हो जाती है, साथ ही उनका काटना और हमारा उन्हें मारना, रोज का काम हो जाता है।

ऐसे ही माहौल में, हमारे छुटकू महाराज, मतलब अद्वय ने एक कटाक्ष( हास्य व्यंग) लिखा है ,आज उसे ही share कर रहे हैं। 

पसंद आने पर उसकी प्रशंसा तो बनती है...

काला मच्छर मोटा


छत पर बैठा,

ताक रहा था,

काला मच्छर मोटा!

खून पीकर, 

हो गया तगड़ा,

पहले था, जो छोटा।


पहले था, जो छोटा,

उसने मुझको,

खूब भगाया!

थक कर जब मैं,

बैठ गया तो, 

उसने काट खाया।


उसने काट खाया,

तब मैं चिल्लाया,

"मम्मी!"

वो मोटा ताक कर मुझको

बोल रहा था

"Your blood is so yummy…"


"Your blood is so yummy…"

यह सुनकर आया,

मस्त विचार!

Mosquito bat को,

पकड़ा मैंने,

कर दिया प्रहार। 


कर दिया प्रहार,

पर मच्छर,

निकला ज़्यादा फुर्तीला!

यह देखकर,

गुस्से से मैं,

हो गया लाल-पीला।


हो गया लाल-पीला,

पर हाथ में, 

कुछ न आया! 

फिर सोचा, है तो अब

वो भी अपना ही,

उसमें मेरा ही खून समाया।


उसमें मेरा ही खून समाया,

आज बन गई है,

 लोगों की यही पहचान!

खून चूसकर आपका,

वो दिखलाते हैं,

कुटिल मुस्कान।।

Thursday, 23 October 2025

Article : यम द्वितीया - शुरुआत भाई दूज की

आज भाई दूज, यम द्वितीया और चित्रगुप्त पूजन का दिन है।

भाई-बहन के प्यार पर बहुत कुछ लिखा है। पर आज सोचा, उस पर लिखें, जिस प्रसंग के होने के बाद से दीपावली के पंचदिवसीय पर्व में भाई-दूज भी शामिल हो गया। 

तो उस प्रसंग को प्रारम्भ करने से पहले आपको बता दें कि भाई-दूज को यम द्वितीया भी कहकर पुकारा जाता है, बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित है कि यम द्वितीया को ही कालांतर में भाई-दूज कहा जाने लगा है।

यम द्वितीया - शुरुआत भाई दूज की


यह त्यौहार यमराज जी और उनकी बहन यमुना जी से जुड़ा हुआ है। इस त्यौहार को संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है, जिनके अलग-अलग नाम है।

भाई दूज को संस्कृत में “भगिनी हस्ता भोजना” कहते हैं। कर्नाटक में इसे “सौदरा बिदिगे” के नाम से जानते हैं, तो वहीं बंगाल में भाई दूज को “भाई फोटा” के नाम से जाना जाता है। गुजरात में “भौ” या “भै-बीज”, महाराष्ट्र में “भाऊ बीज” कहते हैं, तो अधिकतर प्रांतों में भाई दूज। भारत के बाहर नेपाल में इसे “भाई टीका” कहते हैं। मिथिला में इसे यम द्वितीया के नाम से ही मनाया जाता है। 

यमराज जी और उनकी बहन यमुना जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जो यह दर्शाती है कि कैसे यह प्रसंग ही भाई-दूज के पवित्र पर्व में बदल गया।


यम द्वितीया की पौराणिक कथा :

सूर्यदेव की पत्नी छाया के गर्भ से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ। यमुना अपने भाई यमराज से स्नेह वश निवेदन करती थी कि वे उसके घर आकर भोजन करें। लेकिन यमराज व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे।

कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना अपने द्वार पर अचानक यमराज को खड़ा देखकर हर्ष-विभोर हो गई। प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार किया तथा भोजन करवाया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा।

तब बहन यमुना ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहाँ भोजन करने आया करेंगे, तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे। यमराज 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए। 

इसीलिए ऐसी मान्यता प्रचलित हुई कि जो भाई आज के दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं, उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता। 

कहते हैं कि इस दिन जो भाई-बहन इस रस्म को निभाकर यमुनाजी में स्नान करते हैं, उनको यमराजजी यमलोक की यातना नहीं देते हैं। 

इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना का पूजन किया जाता है। भाई दूज पर भाई को भोजन के बाद भाई को पान खिलाने का ज्यादा महत्व माना जाता है। मान्यता है कि पान भेंट करने से बहनों का सौभाग्य अखण्ड रहता है।

भाई-दूज के साथ ही इस दिन चित्रगुप्त पूजन भी होता है, जिसके विषय में अगले चित्रगुप्त पूजन वाले दिन बताएंगे…

Wednesday, 22 October 2025

Article : गिरिराज परिक्रमा

दीपावली पर्व हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। यह त्यौहार पंच-दिवसीय होता है।

धनतेरस पर्व से लेकर भाईदूज या चित्रगुप्त पूजन तक।

इस पांच-दिवसीय उत्सव की एक विशेषता और है, कि प्रत्येक दिन अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा का प्रावधान है।

धनतेरस पर्व पर धनवंतरी जी व कुबेर जी का पूजन, छोटी दीपावली/नरक चौदस/रूप चतुर्दशी पर हनुमानजी का पूजन, दीपावली पर्व पर लक्ष्मी जी व गणेश जी का पूजन, गोवर्धन पूजा में भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत का पूजन, व पांचवें दिन यमद्वितीया/भाई-दूज/चित्रगुप्त पूजन वाले दिन यमराज व चित्रगुप्त महाराज का पूजन किया जाता है।

इस तरह से पांच दिनों तक लगातार, विभिन्न पूजा अर्चना की जाती है।

गिरिराज परिक्रमा


• Areas of celebration :

आज गोवर्धन पूजा का दिन है। इस दिन की विशेषता संपूर्ण भारत में नहीं है। गोवर्धन पूजा का महत्व मुख्य रूप से ब्रज क्षेत्र (मथुरा, वृंदावन, बरसाना, नंदगांव), आगरा, दिल्ली, मेरठ, हापुड़, मुरादाबाद आदि सभी उत्तर-प्रदेश के शहरों में, साथ ही गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी इसका भव्य आयोजन होता है। 

इन क्षेत्रों में इसका इतना अधिक महत्व है कि एक बार को दीपावली पर घर न पहुंचे, पर गोवर्धन पूजा में घर अवश्य पहुंचेंगे।


• Mt. Govardhan location :

गोवर्धन पर्वत, मथुरा जिले में स्थित है, जो कि वृन्दावन से 21 km दूर स्थित है। यह गिरिराज पर्वत के नाम से भी प्रसिद्ध है।

जिस तरह से वैष्णो देवी, बाला जी, खाटूश्यामजी, शिर्डी जाने के लिए लोग लालयित रहते हैं, वैसे ही गिरिराज जी की परिक्रमा का भी विशेष महत्व है। 

ब्रज क्षेत्रों के आसपास के लोग का तो साल में एक से दो बार परिक्रमा लगाने का नियम ही रहता है। 

आज गोवर्धन पूजा है, तो आपको गिरिराज पर्वत की परिक्रमा के विषय में ही बताते हैं।


• Parikrama (clockwise rotation) :

गिरिराज जी की परिक्रमा लगाने के लिए, आपको गोवर्धन पर्वत को दाईं ओर रखते हुए पैदल चलना होगा, जिसमें नंगे पैर रहना एक आम नियम है, हालांकि कमजोर लोगों के लिए चप्पल या जूते की अनुमति है। परिक्रमा मानसी गंगा से शुरू होकर वहीं समाप्त होनी चाहिए, जहाँ आप इसे शुरू करते हैं, और इसे अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए। परिक्रमा के दौरान मानसिक पवित्रता, शांत मन और भगवान के नाम का जाप करना महत्वपूर्ण है।


• How to do Parikrama :

Initiation Rites - परिक्रमा शुरू करने से पहले, मानसी गंगा में स्नान करें, फिर गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें।

Path & Direction - परिक्रमा गोवर्धन पर्वत के चारों ओर दक्षिणावर्त (दाईं ओर) लगाएं, जैसे घड़ी की सुई घूमती है। 

Rules for Footwear - अधिकांश भक्त नंगे पैर परिक्रमा करते हैं। यदि आप कमजोर हैं या बच्चे साथ हैं, तो रबड़ की चप्पल या कपड़े के जूते पहन सकते हैं। 

Physical & Mental State - परिक्रमा के दौरान शांत रहें, सांसारिक बातों से बचें और हरिनाम या भजन-कीर्तन करें। क्रोध या अपशब्द बोलने से बचें। 

Closing Rites - परिक्रमा समाप्त करने के बाद, गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें और वहीं समाप्त करें जहाँ से आपने शुरू किया था।


• Types of Parikrama :

Whole Parikrama (21 km) - यह सबसे लोकप्रिय परिक्रमा है और इसे एक ही दिन में पूरा किया जाता है।

Small Parikrama (9 km) - इसमें गोवर्धन से उद्धव कुंड, राधाकुंड, कुसुम सरोवर होते हुए वापस गोवर्धन आना शामिल है। 

Big Parikrama (12 km) - इसमें गोवर्धन से आन्यौर, पुछरी, जतीपुरा होते हुए वापस गोवर्धन आना शामिल है। 

Obeisance (Dandvat) Parikrama - यह बहुत कठिन है और इसमें भक्त शरीर के आठों अंगों (दोनों भुजाएँ, दोनों पैर, दोनों घुटने, सीना, मस्तक) को जमीन पर छूते हुए आगे बढ़ते हैं।


• Govardhan Puja at home :

यदि आप घर पर रहकर गोवर्धन पूजा कर रहे हैं, तो गोबर से या ऐपन से चौक बनाई जाती है। भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाए जातें हैं।

यदि छप्पन भोग न बना पाएँ तो विभिन्न फल, मेवा, मिठाई व खाने में कढ़ी, चावल, रोटी, अन्नकूट सब्जी (mix veg, बिना प्याज़-लहसुन की) का भोग लगाकर भी छप्पन भोग का प्रावधान मान लिया जाता है।

दरअसल, अन्नकूट सब्जी का विशेष महत्व है। अगर आप को इसकी विधि चाहिए, तो आप इस link पर click कर सकते हैं -

https://shadesoflife18.blogspot.com/2020/11/recipe.html?m=1


जय प्रभु श्रीकृष्ण की, जय गोवर्धन पर्वत की, जय गिरिराज महाराज की 🙏🏻

आपकी कृपा सभी भक्तों पर अवश्य बनी रहे 🙏🏻 

Tuesday, 21 October 2025

Article : दिल्ली में लौटा हिन्दुत्व

हिन्दूओं के सबसे बड़े पर्व, दीपावली पर कल की छटा अनुपम थी, अद्भुत थी। 

India Gate के सामने कर्तव्य पथ पर अलग ही मनोहारी दृश्य था। ऐसा लग रहा था मानो साक्षात् त्रेतायुग में विचरण कर रहे हैं।

कर्तव्य पथ पर दो लाख दीये जगमगा उठे और रामायण theme पर lazer व drone show आयोजित किया गया। यह उत्सव दीपावली मनाने के लिए आयोजित किया जा रहा था, और आज  भी इतने ही दीये जलाए जाएंगे। कर्तव्य पथ का कल का वर्णन इस प्रकार है…

दिल्ली में लौटा हिन्दुत्व


• Main Attraction :

कर्तव्य पथ को दो लाख दीयों से रोशन किया गया, जो एक भव्य दृश्य प्रस्तुत कर रहा था।


• Cultural Programme :

इस अवसर पर रामायण की thems पर आधारित एक विशेष lazer और drone show आयोजित किया गया।


• Opportunity :

यह उत्सव दीपावली के उत्सव का हिस्सा है, जिसे कर्तव्य पथ पर भव्य तरीके से मनाया जा रहा था।


• Cultural Importance :

कर्तव्य पथ, जो भारत की विरासत और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक है, कल भव्य प्रकाश और drone show के साथ सांस्कृतिक उत्सवों का केंद्र बना।


• Extension :

कर्तव्य पथ की सजावट के लिए केवल एक दिन नहीं, बल्कि अगले दिन भी दो लाख दीये जलाए जाएंगे, जिससे उत्सव की भव्यता बनी रहेगी। 

खाली कर्तव्य पथ में ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण दिल्ली में कल अलग ही स्वर्णिम दीपावली प्रतीत हुई।

स्वर्णिम मतलब? 

मतलब बचपन वाली...

जब सुबह के पांच बजे तक पटाखों की आवाज सुनाई देती थी। ऐसा नहीं है कि जब AAP की सरकार थी, और उसने दीपावली पर पटाखों पर ban लगा दिया, तब दिल्ली में पटाखे नहीं फोड़े जाते हों, पर तब लुकेछिपे पटाखे खरीदे जाते थे। 

कोई क्यों कर अपने धर्म में किसी की तानाशाही दख़ल अंदाजी सहन करेगा।

पर अब जब दिल्ली में BJP सरकार आ गई है, तो उन्होंने दिल्ली में green पटाखे allow करा दिए हैं, तो इस साल पटाखों की धूम ही अलग रही।

So called sophisticated लोग, जिनके घरों में 2-2, 4-4 AC लगें हैं, जितने घर में प्राणी हैं, उससे ज्यादा कारें घर में मौजूद हैं। सब अकेले-अकेले कार लेकर निकलते हैं। उन्हें उससे बढ़ता pollution level नहीं दिखेगा, लेकिन कल दीपावली पर्व पर पटाखे फोड़े गए हैं, इससे भयंकर pollution level बढ़ गया है - इसका बेहद हंगामा मचा देंगे। अगर pollution level की इतनी ही चिंता है तो क्यों नहीं केवल cooler और पंखा use करते हैं, cars की जगह cycles क्यों नहीं use करते हैं। वो नहीं करेंगे, क्योंकि उससे उनके आराम में खलल पड़ेगा। 

पर पटाखों को, और वो सिर्फ और सिर्फ दीपावली पर्व पर फोड़े जाने पर हंगामा मचाया जाएगा, क्यों? आखिर क्यों?

क्योंकि, सिर्फ हिन्दूओं के ही पर्व पर कुठाराघात करना है। पर अब से ऐसा नहीं होगा, इस दीपावली पर्व से यह समझ में आ चुका है।

दूसरी बात, यकीन मानिए, pollution level सिर्फ उतना ही बढ़ा है, जितना हमारे, आपके बचपन में बढ़ता था। मतलब नाममात्र का, और एक-दो दिन में उसका असर ख़त्म भी हो जाएगा।

पर एक चीज़ पर अच्छा असर पड़ा है, और वो हैं - मच्छर, मक्खी, कीड़े-मकोड़े का। उनकी संख्या कम होने में गज़ब का अंतर आया है। 

अगर आप ढंग से समझेंगे तो हिन्दू त्यौहारों में होने वाले रीति-रिवाज बहुत सोच समझ कर बनाए गए हैं, जिनमें जनमानस का हित शामिल है। 

कैसे, देखिए।

होली में होलिका दहन, केवल लकड़ियां इकट्ठी करके जलाना नहीं होता है, बल्कि उसमें अक्षत (चावल), ताजे फूल, गुलाल, हल्दी, गुड़, बताशे, सूखा नारियल, उपले, और गाय के गोबर से बनी माला जैसी चीजें डाली जाती है। इनके अतिरिक्त, अच्छे स्वास्थ्य के लिए नीम के पत्ते और कपूर डालना भी शुभ माना जाते हैं।

और ऐसा इसलिए किया जाता है, क्योंकि जब होली आती है, तब मौसम बदल रहा होता है, मतलब ठंड से गर्मी आ रही होती है। उस समय में मच्छर-मक्खी, कीड़े-मकौड़े सबसे अधिक बढ़ जाते हैं, लेकिन होलिका दहन से उठने वाला धुआं कीटनाशक का काम करता है, जिससे कुछ दिनों तक मच्छर, मक्खी, कीड़े-मकौड़े से राहत मिल जाती है।

वही दीपावली पर्व के समय होता है, गर्मी जाकर ठंड आ रही होती है, तो जो काम होलिका दहन से होता है, वही इस समय, पटाखे फोड़ने से होता, पटाखों के धुंए से मच्छर, मक्खी, कीड़े-मकौड़े कम हो जाते हैं। साथ ही पटाखे फोड़ने से दीपावली के उत्सव पर चार चांद लग जाते हैं। विशेषकर बच्चों और युवाओं के लिए..

हां, पटाखे फोड़ते समय, किसी भी तरह की कोई दुर्घटना न हो, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।

तो आज सुबह तक आती हुई पटाखों की आवाज यह सिद्ध कर रही है कि दिल्ली में हिंदुत्व बढ़ रहा है, लोग BJP government के आने से खुश हैं। उन्हें लग रहा है कि कोई तो ऐसा आया, जिसे एहसास है कि हिन्दू त्यौहारों के रीति-रिवाज पर तानाशाही दख़ल नहीं देना चाहिए।

उन्हें अपने त्यौहार को वैसे ही मनाने का पूरा हक़ है, जैसा स्वरूप उसका सदियों से चला आ रहा है और दिल्ली छोड़कर, बाकी प्रदेश में आज भी चल रहा है। 

जय श्रीराम 🚩 

शुभ दीपावली 🪔🎉

Monday, 20 October 2025

Poem : नन्हा-सा दीपक

क्यों कहते हैं दीपोत्सव को दीपावली, कभी सोचा है आपने?

दीपावली का संधि विच्छेद करेंगे, तो आएगा, दीप + आवली, जिसमें दीप का अर्थ है, दीपक और आवली का अर्थ है एक पंक्ति में, अर्थात् दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। 

भगवान श्रीराम के अयोध्या वापस आने पर लोगों ने दीपों की पंक्तियां सजाकर उनका स्वागत किया था।

बस तब से दीपावली पर्व आरंभ हुआ और सतत् चलता जा रहा है।

आज दीपोत्सव में टिमटिमाते, जगमगाते दीपक को यह कविता समर्पित है, उसके द्वारा दिए गए संदेश के साथ…

नन्हा-सा दीपक


अमावस्या के घने तिमिर को,

जब नन्हा-सा दीपक हरता है।

सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ में वो,

दीपावली का संदेशा धरता है।। 


तनिक न ठहर जाना जीवन में, 

देखकर किसी कठिनाई को। 

हार न मानना कभी भी तुम,

जीवन की छोटी-बड़ी लड़ाई को।। 


कहता है वो उम्र और कद,

तनिक नहीं अड़ता है। 

सफलता के कठिन मार्ग पर, 

धैर्य से चलना पड़ता है।। 


जिसने है यह ठान लिया कि,

वो कुछ कर जाएगा।

कर्म के प्रति अडिगता,

सफल उसे बनाएगा।। 


मंजिल पाने तक, तुमको, 

अनवरत चलना होगा। 

कर्म रूपी तेल की तपिश से,

घंटों-घंटों जलना होगा।।


घना तिमिर हो कितना भी, 

सुख का आलोक छाएगा।

अथक परिश्रम तेरा, तुझको,

सफल अवश्य बनाएगा।। 


अमावस्या के घने तिमिर को,

जब नन्हा-सा दीपक हरता है।

सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ में वो, 

दीपावली का संदेशा धरता है।। 


आप सभी को पंचवर्षीय दीपोत्सव पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ। लक्ष्मी माता व गणेश जी हम सब पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखें 🙏🏻

शुभ दीपावली! 

Sunday, 19 October 2025

Recipe : Gold Coins

हिन्दू का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली है , जिसमें पांच दिनों तक दीपोत्सव का हर्षोल्लास रहता है। मेहमानों का आना-जाना, इस त्यौहार में सर्वाधिक होता है। 

ऐसे में स्वादिष्ट व्यंजन के साथ दीपावली का स्वागत करना, उसकी रौनक में चार चांद लगा देगा।

अब दीपावली के लिए recipe share कर रहे हैं, तो कुछ ऐसा होना चाहिए, जो कि दीपावली को complement करे। इसलिए Gold Coins की recipe share कर रहे हैं। माँ लक्ष्मी की कृपा सब पर सदैव बनी रहे, सबका घर धन-धान्य बरकत से भरपूर रहे।

Gold Coins


(I) Ingredients :

  • Bread Slices - 6
  • Boiled Potatoes - 2 (medium) 
  • Green Peas - ¼ cup
  • Sweet Corn (American) - ¼ cup 
  • Paneer - ¼ cup 
  • Cheese Slices - 3
  • Coriander leaves - handful 
  • Green chilli - as per taste 
  • Ginger - ½ inch (optional) 
  • Salt - as per taste 
  • Amchur powder - ½ tsp.
  • Cornflour - 1 tbsp.
  • All purpose flour - 1 tbsp.
  • Clarified butter (Ghee) - for frying 


(II) Method : 

  1. मैदा और cornflour में पानी डालकर slurry (घोल) बना लीजिए।
  2. Bread slices की glass या bowl की help से गोल ring काट लें।
  3. गोल काटने से जो sides बचें, उन्हें mixer grinder में डालकर महीन पीसकर powder बना लें। 
  4. मटर के दाने और frozen American sweet corn को पानी में भिगा दीजिए। 
  5. Paneer के छोटे-छोटे cubes cut कर लीजिए।
  6. Boiled potatoes को mash कर लें।
  7. मटर के दाने और sweet corn को छान लीजिए।
  8. आलू में मटर के दाने, sweet corn, green chilli, paneer cubes, छोटे-छोटे ginger juliens, salt, and amchur powder को डालकर अच्छे से mix कर लीजिए।  
  9. अब इस आलू मसाले की, bread की rings के बराबर की गोल टिक्कियां बना लीजिए।
  10. Bread की एक ring पर एक आलू मसाले की टिक्की लगा दीजिए। साथ ही हर bread slics की ring ऐसी तैयार कर लीजिए।
  11. अब उस पर slurry डाल दीजिए।
  12. उसके बाद उस पर bread का चूरा लगाकर हल्का-सा press कर दीजिए, जिससे bread की ring पर मसाला और bread का चूरा अच्छे से चिपक जाए।
  13. सारे coins तैयार करके रख लीजिए।
  14. Serve करने से पहले 1 wok लें।
  15. उसमें घी डालकर तेज़ गर्म कर लें।
  16. अब एक बार में एक या दो coin डालकर कर दोनों तरफ़ से golden fry कर लीजिए।

Scrumptious & tempting Gold Coins are ready to serve. Relish them with your favourite dip or sauce.


(III) Tips & Tricks :

  • Bread slices की rings काटकर बनाने से एक तो bread का चूरा भी prepare हो जाता है, साथ ही gold coin ज्यादा presentable भी लगता है।
  • अगर आप के पास cookie-cutter है, तो आप different shapes भी बना सकते हैं। वैसे frying के point of view से circle से square and triangle ज्यादा easy पड़ता है।
  • हमने white bread slices ली थीं, अगर आप को healthy version चाहिए तो आप brown bread भी ले सकते हैं।
  • हमने filling में आलू लिया है, इससे मसाले की binding अच्छी हो जाती है। अगर आप weight conscious हैं तो आलू को avoid कर सकते हैं। बस problem यह है, कि इससे filling की binding difficult हो जाएगी।
  • हमने बच्चों के taste के according आलू, मटर, sweet corn, cheese slice को लिया है। आप अपने taste के according filling change कर सकते हैं। 
  • Slurry बनाने में मैदा और cornflour दोनों को ही mix कीजिए, इससे bread पर आलू की filling और bread crumbs अच्छे से चिपक जाता है।
  • हमने filling को भूनकर नहीं तैयार की है, क्योंकि उससे filling ज्यादा juicy बनती है। आप चाहें तो भूनकर भी बना सकते हैं।
  • Fry करते समय घी तेज़ गर्म होने से gold coin ज्यादा crispy बनता है, और वो fry होने में कम घी soak करता है।
  • Fry करते समय कड़ाही में gold coin ऐसे डालें कि bread वाला portion पहले fry हो। फिर पलटकर fry करें, इससे filling में डला हुआ cheese melt होता है, पर melt होकर बाहर नहीं निकलेगा। पर अगर आप cheese add नहीं कर रहे हैं, तो आप किसी भी तरफ से पहले fry कर सकते हैं।
  • अगर आप gold coin को prepare करके ½ hour के लिए freezer में रख देंगे, तो ज्यादा perfect gold coin बनेंगे। Filling बिखरने के chance कम हो जाएंगे।
  • जब आप fry करें तो filling की तरफ पलटते समय ध्यान से कीजिएगा, अन्यथा filling बिखर सकती है।


बस थोड़ा-सा effort, और tasty and healthy snack तैयार।

तो बस, कल आने वाले मेहमानों का स्वागत Gold Coins से करें और माता लक्ष्मी की कृपा पाएं।

Saturday, 18 October 2025

Article : धनतेरस - क्या खरीदें और कब खरीदें?

आज से हिन्दुओं के सबसे बड़े त्यौहार, दीपावली के पांच-दिवसीय उत्सव का आरंभ हो गया है।

धनतेरस के उत्सव से आरंभ होकर यह भाई दूज के पर्व पर पूर्ण होता है।

धनतेरस, धन प्रदान करने वाली माँ लक्ष्मी व धन के देवता कुबेर जी, व धनवंतरी जी की विशेष पूजा का दिन है।

अतः यह दिन मुख्यतः marketing का दिन है, जिसमें लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार - gold, silver, utensils, white goods और vehicles  खरीदते हैं।

इस महंगाई में हर कोई कुछ खरीद सकें, इसके लिए ही एक list बता रहे हैं।

इसमें से कुछ तो ऐसी वस्तुएँ हैं, जो हर कोई खरीद सकता है, बल्कि खरीदना ही चाहिए।

धनतेरस - क्या खरीदें और कब खरीदें?


1) What to Buy -

• Gold & Silver :

सोना-चांदी की खरीदारी तो सबसे प्रमुख है, पर अपने सामर्थ्य के अनुसार ही लें। ध्यान रखिएगा कि अगर सोना-चांदी ले रहे हैं, तो असली ही लें। इस दिन imitation वाली jewelry न लें।


• White-goods & vehicles :

आज कल इन्हें भी दीपावली में लेने का प्रचलन बहुत अधिक चल गया है। इसलिए दीपावली पर बहुत अच्छी deals भी आती हैं। पर कहा जाता है कि लोहा धनतेरस पर नहीं लेना चाहिए। लोहा नहीं लेने की सलाह शनिवार के लिए भी कही जाती है।

इस वर्ष धनतेरस का पर्व शनिवार को ही पड़ रहा है, और इन सबमें विशेष रूप से लोहे का उपयोग होता है।

तब क्या करें? क्या न लें? 

आप ले सकते हैं। न ही अच्छी deals खाली जाने दें, न ही अपने मन को मारें, क्योंकि बड़ी चीज़ को खरीदने की इच्छा बहुत दिनों में बनती है।

तो आपको करना यह है कि billing धनतेरस के दिन कर लें और घर में delivery छोटी दीपावली या दीपावली वाले दिन में लें। 

मतलब अच्छी deal भी ले लें और धनतेरस और शनिवार को लोहा घर पर भी न लाएँ।


• Idol of Maa Lakshmi & Shri Ganesh :

इसके बिना तो दीपावली की पूजा भी संभव नहीं है, पर ध्यान रखें कि मूर्ति मिट्टी की या धातु की ही लें। Plastic, plaster of paris और bone china जैसे materials की न लें। और विशेष रूप से वो ही मूर्ति लें, जिसको भारत में बनाया गया हो। Fashion में आकर अपनी पूजा-अर्चना भंग मत करिएगा।


• 5 Paan (Betel) Leaves :

हिन्दू धर्म में सभी धार्मिक कार्यों में पान व आम के पत्तों का विशेष महत्व है। प्रधानता पान के पत्तों को दीजिए। पान के पत्ते न मिलने पर आम के पत्तों को ले सकते हैं। पर ध्यान दीजिएगा कि पूजा के लिए पांच पत्ते ही लीजिएगा।

हाँ, तोरणद्वार के लिए आप आम, अशोक या केले के पत्तों का उपयोग भी कर सकते हैं।


• Impression of Maa Lakshmi's foot : 

बाजार में माता रानी के पैर की छवि बहुत आराम से मिल जाती है, उन्हें अवश्य लें। या फिर आप एक काम और कर सकते हैं, कि ऐपन (चावल के आटे में पानी डालकर तैयार किया गया घोल) में अपनी मुट्ठी को (छोटी उंगली की तरफ वाली जगह से) dip करें। फिर जमीन पर लगाएँ, एक छवि बनेगी, जिस के ऊपर आप पांच बिंदिया बना दें। आप देखेंगे कि छोटे-छोटे पैर जैसी छवि उभर आएगी। इसे बाहर के दरवाजे से पूजा के स्थान तक बना दें। इससे ऐसा प्रतीत होगा, मानो माता रानी छोटे छोटे पैरों से आपके घर आ गई हों।

पर यह आपको दीपावली के मुख्य दिन ऐपन से पैर की छवि बनानी है।


• Kheel & Batashe - 

पहले दीपावली में खील-बताशे, उसके मुख्य पकवान और पहचान होते थे। पर आज यह लोगों को कम पसंद आते हैं, और बाजार में मिलने भी कम लगे हैं। 

पर यह शुभता के प्रतीक होते हैं, अतः थोड़ी मात्रा में अवश्य लें।

पूजा के बाद बताशे आप जब कुछ भी मीठा बना रहे हों, तो उसे उपयोग में ले लें।

और खील को आप जैसा link में दिया है, ऐसे बना लें - https://shadesoflife18.blogspot.com/2019/10/recipe-crispy-butter-kheel.html?m=1

खील हाथों-हाथ उठ जाएगी, बल्कि और खानी है, इसकी demand होगी। क्योंकि यह स्वाद में popcorn से ज्यादा tasty लगेगी।


• Common Salt (NaCl) : 

कहा जाता है कि नमक negativity को absorb करता है, साथ ही बुरी नज़र को दूर करता है और दरिद्रता को हटाता है।

फिर नमक के बिना तो भोजन में भी स्वाद नहीं आता है। 

धनतेरस के दिन नमक खरीदें और दीपावली की पूजा के बाद, अगले दिन कुछ नमक, पोछे के पानी में डालकर पोंछा लगवाएं और शेष नमक खाना बनाने में use कर लें।


• Broomstick : 

झाड़ू को माता लक्ष्मी से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि धनतेरस के दिन ली गईं झाड़ू की दीपावली में पूजा करें और अगले दिन उससे पूरे घर में झाडू लगवा दें तो पूरे साल भर घर धन-धान्य और ऐश्वर्य से परिपूर्ण रहता है।

ऐसा नहीं है कि यह करने से आप रातोंरात मालामाल हो जाएंगे, पर आप की परिस्थिति सुदृढ़ रहेगी। व्यर्थ का धन व्यय नहीं होगा।


• Dried Coriander Seeds :

सूखा धनिया रखना भी धन-धान्य का प्रतीक है। धनतेरस के दिन सूखे धनिया के दाने लें। दीपावली वाले दिन, उन दानों से पूजा करें।

अगले दिन कुछ दानों की पोटली बनाकर, उसे अपनी तिजोरी में या जहाँ धन रखते हैं, वहाँ रखें। शेष दानों को पीसकर भोजन बनाने में use करें।


इस पूरी list में बहुत कुछ ऐसा है, जो हर कोई खरीद सकता है। अपने सामर्थ्य व अपनी जरूरत के अनुसार सामान खरीदें और पांच-दिवसीय उत्सव दीपावली को मनाएँ।

दीपावली में सभी कार्य शुभ हों, सभी परिणाम शुभ हों, सबका सब शुभ-शुभ हो।

जय माता लक्ष्मी, जय श्री गणेश, जय धनवंतरी, जय कुबेर 🙏🏻

Friday, 17 October 2025

Article : जन्मदिवस विशेष

जन्मदिवस विशेष



मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद, जिंदगी बहुत से उतार-चढ़ाव के साथ आगे बढ़ती जाती है।

कुछ दिन सुख, कुछ दुःख, कुछ हंसी के तो कुछ खुशी के, कुछ नोंक-झोंक तकरार के, तो कुछ बहुत ज्यादा प्यार के।

रिश्तों के, सपनों के, अपनों के.... अंतहीन, जब तक सांसों की डोर है...

पर कुछ पल बहुत खास होते हैं। जो दिल के सबसे पास होते हैं।

और एक स्त्री के लिए वो दिन होता है, उसकी पूर्णता का, उसके इंसान से सृष्टि बनने का, उसके सम्पूर्ण विश्व में, सबसे बड़े पद पर पहुंचने का, क्योंकि स्वयं ईश्वर ने उस पल में, उसे अपने समतुल्य आने का गर्व प्रदान किया है। 

जब एक युवती, माँ बनती है, उस पल से ही उसकी पूरी दुनिया, पूरी धुरी ही बदल जाती है, वो अपने से पहले अपने बच्चों की हो जाती है।

बस यही पल मेरी जिंदगी में आज के दिन आया था, जब मेरी प्यारी सी बिटिया, मेरी नन्ही परी, मेरी राजकुमारी ने जन्म लिया था।

उसके नन्हें कोमल हाथों का स्पर्श, मातृत्व की अनोखी दुनिया में ले गया। जहां उससे पहले कोई नहीं था, बस वो ही वो थी।

उसके नन्हें क़दमों के स्पर्श से, ऐसा लगा, मानो फिर से बचपन लौट आया हो, जिंदगी का सबसे बहुमूल्य पल...

जब उसके नन्हें कोमल चेहरे को अपने चेहरे से लगाया, तो गर्व की अनुभूति हुई कि ईश्वर ने इस महान कार्य के लिए स्त्री को चुना, उसकी कोख को सृष्टि बनने की क्षमता प्रदान की।

उसका आना हमारी जिंदगी में सुख, संपन्नता और संपूर्णता ले आया। 

हाँ यह बात है कि उसके आने के बाद बेटा भी हुआ, पर बेटे को इस दुनिया में लाना,  बेटी की इच्छा थी, उसको ही साथ चाहिए था, और प्रसन्नता सबको थी। 

बेटी के रूप में ऐसी बच्ची मिली, जो एकदम अलग, एकदम अनोखी, अपने नाम अद्विका को सार्थक करती हुई।

कभी कोई ज़िद्द नहीं, कोई तोड़-फोड़ नहीं, कोई demand नहीं, prudent nature वाली। समझदारी ऐसी कि, किसी कठिन परिस्थिति को समझाना ही नहीं पड़ा, हम लोगों से ज्यादा वो सुदृढ़ हो जाती, परिस्थितियों को समझने के लिए...

समाज की चिंता, पर किसी के कहे कि कोई परवाह नहीं,  अडिग इतनी, कि जो सोच लिया, वो करना है।

Multiple talents लिए, न जाने कितने लोगों को साथ लेकर आगे बढ़ने वाली, अपने लक्ष्य, अपनी मंजिल को पाने के लिए तत्पर... 

आज अपनी प्यारी बेटी के 21वें जन्मदिन पर वो लम्हा, वो पल, फिर मन मस्तिष्क पर घूम गया। 

दुनिया भर की reels, videos, hi-fi cameras, सब fail हैं, भगवान के बनाए दिल-दिमाग के आगे। 

यह दिल और दिमाग ऐसे होते हैं कि मन के घोड़े को एक पल में अतीत और भविष्य में ले जाते हैं।

और एक माँ तो अपने बच्चे के हर जन्मदिन पर उस पल में लौटती ही है, जब उसने पहली बार अपने बच्चे को गोद में लिया हो।

आज उसके इस विशेष जन्मदिवस पर उसको विशेष शुभकामनाएं। आरोग्य, सौभाग्य एवं चिरायु के साथ वो जिंदगी में सफलताओं को प्राप्त करें, सबके बहुत सारे, आशीर्वाद, स्नेह और सम्मान के साथ...

Friday, 10 October 2025

Poem : कैसे मनाऊँ करवाचौथ?

भारतीय संस्कृति में सुहागिनों के बहुत से व्रत हैं। लेकिन करवाचौथ व्रत एक ऐसा व्रत होता है, जिसे रखने की कामना हर विवाहित स्त्री की होती है।

इसका एक बड़ा कारण - films और serials में इसको‌ बहुत ही romantic तरीके से दिखाया जाता है।

आज इस विशेष त्यौहार में एक ऐसे युगल की मनोदशा को संवाद के रूप में कावयबध किया है, जिनमें बहुत अधिक प्यार है, पर जीवन की परिस्थितियों के कारण एक-दूसरे से दूर रह रहे हैं।

आइए, इस अमर प्रेम को समझने की कोशिश करें।

कैसे मनाऊँ करवाचौथ?


 कंगना, पायल, हार

सब गहनों से बढ़कर,

सजना तुम्हारा प्यार।

 कैसे मनाऊँ करवाचौथ?

तुम बैठे उस पार।। 


सज-धज कर मैं,

किसे रिझाऊँ? 

सभी तो बेकार।

 कैसे मनाऊँ करवाचौथ?

तुम बैठे उस पार।।  


पूजा कर लूँ, 

अर्ध्य मैं दे दूँ,

वो तो सब स्वीकार।

 कैसे मनाऊँ करवाचौथ,

तुम बैठे उस पार।।  


छोड़ नहीं सकती, 

इसको मैं यूँ ही, 

यह प्रेम-प्रीत का त्यौहार। 

 कैसे मनाऊँ करवाचौथ? 

तुम बैठे उस पार।। 


तड़प रहा हूँ मैं भी, 

जाने सारा संसार। 

मुझको तुमसे दूर रहना, 

यह कब स्वीकार?


सज-धज कर,

हो जाना तैयार। 

गर तुमको, 

मुझसे है प्यार।


करना मन से, 

इस व्रत को। 

यह प्रेम-प्रीत का, 

त्यौहार।

Tuesday, 7 October 2025

India's Heritage : महर्षि वाल्मीकि की सफल कहानी

भारत वर्ष की अनमोल धरोहर में अनगिनत उत्कृष्ट कोटि के रत्न हैं, जिनसे हमारी सनातन संस्कृति सर्वश्रेष्ठ कहलाती है।

आज महर्षि वाल्मीकि जी के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में India's Heritage segment की ये post उन्हीं को समर्पित है।

महर्षि वाल्मीकि जी की कहानी अत्यधिक उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण अति-प्रेरणादायक कहानी है।

हम सभी उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं को जानते हैं, किन्तु सब नहीं।

उसके कारण उनसे जुड़े हुए कुछ विवाद भी हैं, जैसे कि वो बाह्मण हैं या निम्न जाति के?

तो चलिए, उन सभी पहलुओं पर विचार करते हैं।

महर्षि वाल्मीकि की सफल कहानी


(I) हिन्दू संस्कृति में महत्व :

भगवान राम का जीवन चरित्र हमारे देश की “संस्कृति का प्राण” है। और जहांँ प्रभू श्रीराम का उल्लेख सर्वोपरि है, वहाँ महर्षि वाल्मीकि जी का नाम तो अपने आप ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

महर्षि वाल्मीकि, प्रभू श्रीराम के लोक कल्याणकारी चरित्र को काव्य रूप में लिखने वाले संस्कृत भाषा के पहले कवि थे। अतः उन्हें आदि-कवि भी कहा गया है।

“त्रिकालदर्शी” भगवान वाल्मीकि ज्योतिष-विद्या और खगोल-विद्या के प्रकांड विद्वान थे। साथ ही केवल वह ही हैं जिनका सतयुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग - तीनों कालों में उल्लेख मिलता है।


(II) विवरण :

नागा-प्रजाति में जन्मे वाल्मीकि ‘प्रचेता’ (वरुण देव) के पुत्र माने जाते हैं। इनके बचपन का नाम “रत्नाकर” था। मनुस्मृति (manuscript) के अनुसार वे प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलत्स्य आदि के भाई थे। एक महान ऋषि बनने से पहले वाल्मीकि को एक विख्यात डाकू के रूप में जाना जाता था।

अब विगत-वार सब समझ लेते हैं।


(III) जन्म व बाल्यकाल :

महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। स्कंद पुराण और अध्यात्म रामायण के अनुसार  वाल्मीकि ब्राह्मण जाति के थे और इनका नाम “अग्निशर्मा” था।

माना जाता है कि वाल्मीकि महर्षि कश्यप और अदिति के दसवें पुत्र ‘प्रचेता’ की संतान हैं। इनकी माता का नाम ‘चतुर्ष्णि’ और भाई का नाम ‘भृगु’ था।


(IV) अपहरण :

एक किवंदती के अनुसार, जब वाल्मीकि जी का जन्म हुआ, उसी समय वहाँ से विचरण करती हुई एक निःसंतान भीलनी निकली।

वाल्मीकि को देखते ही उसके अंदर वात्सल्य-भाव जागृत हो गए, और वो उनका अपहरण करने से अपने को रोक नहीं पाई।

वह वाल्मीकि को अपने साथ वन‌ में ले गई। उनको पाकर, उस पर से निःसंतान होने का अभिशाप हट गया, अतः उसके लिए, वो किसी रत्न से कम न थे। यही कारण था कि उसने उनका नाम प्यार से “रत्नाकर” रखा। भीलनी ने बड़े प्रेम से रत्नाकर का लालन-पालन किया। रत्नाकर के लालन-पालन के लिए भीलनी बुरे काम (दस्यु कर्म) किया करती थी जिसका प्रभाव व्यापक रूप से रत्नाकर के जीवन पर पड़ा।


(V) युवावस्था :

जब रत्नाकर बड़े हुए तो उनका विवाह भी भील समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए रत्नाकर भी दस्यु कर्म ही किया करते थे। वह लोगों का धन लूटा करते थे। वन के मध्य में पथिकों का धन लूटना उनकी जीविका का साधन था। यदि धन लूटने के काम में संदेह हो तो वे हत्या करने में भी संकोच नहीं करते थे। इस तरह से अग्निशर्मा जो कि आगे चलकर वाल्मिकी कहलाए, अपनी युवावस्था में डाकू रत्नाकर के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 


(VI) व्यक्तित्व में परिवर्तन :

इस समय का घटनाक्रम ध्यानपूर्वक पढ़िएगा, क्योंकि जो अनुभूति रत्नाकर को इस समय हुई थी, वो ही थी, जिसने क्रूर और दुष्कर्म में लिप्त डाकू रत्नाकर को प्रभू श्रीराम का परमभक्त और महर्षि वाल्मीकि बना दिया।

कहा जाता है कि एक बार वे वन में बैठे राहगीर का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे और उन्होंने एक मुनिवर को आते हुए देखा, देखते ही वे फूले न समाये।

अपने लाल-लाल नेत्रों को घुमाते हुए रत्नाकर ने भयंकर स्वर में कहा - “तुम्हारे पास जो कुछ भी है, सब मुझे दे दो। नहीं तो तुम्हारे प्राणों का संकट होगा।”

मुनिवर ने उत्तर दिया - “लुटेरे, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। लेकिन तुम इस लूटे हुए धन का क्या करते हो? दूसरों को लूटना पाप कर्म है। क्या तुम यह नहीं जानते?”

रत्नाकर ने जवाब दिया - “लूटे हुए धन से मैं अपने परिवार का पालन-पोषण करता हूँ जो एक महान कार्य है।”

मुनिवर ने कहा - “पाप द्वारा कमाए गए धन से पाले हुए तुम्हारे परिवार के सदस्य क्या तुम्हारे इस पाप के भागीदार होंगे?”

रत्नाकर बोले - “नहीं जानता, लेकिन उनसे पूछ कर बताऊँगा।”

रत्नाकर ऋषि को पेड़ पर रस्सी से बांधकर कुटुंबियों से पूछने चले गये। 

जब उसने यह प्रश्न अपने कुटुंबियों से किया, तो वे क्रुद्ध होकर बोले - “तुम्हारे पाप का भागीदार हम क्यों बनेगें? 

हमें क्या पता तुम यह धन कैसे कमाते हो? हमने तो नहीं कहा था कि तुम दुष्कर्म करो।”

यह सुनकर रत्नाकर अत्यंत दुखी हुआ। शीघ्र जाकर उसने मुनिवर को खोलकर सारी बात बताई।


(VII) भक्ति की ओर अग्रसर :

अपने कुटुंबियों की बात सुनकर रत्नाकर को बेहद दुख हुआ। मुनिवर ने उसके शोक को शांत करने के लिए “राम” नाम जपने का उपदेश दिया। यह मुनिवर कोई और नहीं, स्वयं नारद मुनि जी ही थे।

अब रत्नाकर ठहरे डाकू, तो राम शब्द के उच्चारण में उन्हें बहुत कठिनाई हो रही थी। अतः असमर्थ रत्नाकर ने राम शब्द को उल्टा “मरा-मरा” जपना प्रारंभ किया। 

बहुत वर्षों तक साधना में लीन होकर उन्होंने कठोर तप किया और “मरा-मरा” जपते-जपते वे इतने लीन हो गए, कि वह शब्द “राम-राम” में परिवर्तित हो गया।

रत्नाकर राम नाम के तप में इतने लीन हो गए कि उन्हें अपनी सुध-बुध ही नहीं रही, उनके पूरे शरीर में दीमकों ने अपना घर बना लिया और वो मिट्टी से पूरी तरह ढक गए।

लंबे समय बाद वरुण देव के लगातार जल की धारा से उनके शरीर से दीमकों की मिट्टी धुल गयी। उनका शरीर पुनः प्रकट हुआ, तब मुनियों ने उनकी स्तुति और पूजा की।

वे आंखें खोलकर उठ बैठे। दीमकों की मिट्टी से निकलने के कारण वाल्मीकि "प्रचेता" (वरुण) के द्वारा मिट्टी के धुल जाने के कारण "प्रचेतस" कहलाए। इसका वर्णन रामायण के उत्तरकांड में वाल्मीकि द्वारा किया गया है, जिसमें लिखा गया है - “हे राघव पुत्र! मैं प्रचेता का दसवां पुत्र हूँ।”


(VIII) रामायण की रचना :

वाल्मीकि ने मुनि नारद से भगवान राम का लोक कल्याणकारी चरित्र सुना।

जब उन्होंने रामचरित्र को सुना, तब से उनके मन में राम के चरित्र को काव्यबद्ध करने की इच्छा जाग उठी। 

पर उनके मन में यह इच्छा रामचरित्र सुनकर जाग्रत हुई, या इसलिए जाग्रत हुई, क्योंकि नियति ने आगे चलकर उन्हें ही यह यश प्रदान करना था, आइए देखते हैं। 

एक बार की बात है कि वाल्मीकि दोपहर के स्नान के लिए प्रयाग मंडल के अंतर्गत तमसा नदी पर गए हुए थे। वन की शोभा को देखते हुए महामुनि ने स्वच्छंद घूमते हुए एक क्रौंच पक्षी के युगल को देखा। वह रतिक्रीड़ा कर रही थी।

अचानक किसी शिकारी ने उस युगल पक्षी के जोड़े पर बाण मार दिया। भूमि पर गिरे हुए खून से लथपथ नर क्रोंच को देखकर क्रोंची करुण-विलाप करने लगी। इस करुण विलाप को सुनकर मुनि के हृदय में छिपी शोकाग्नि से पिघला हुआ करुण रस श्लोक के बहाने इस प्रकार निकल पड़ा :

    “मा निषाद प्रतिष्ठां त्वगमः शाश्वती समः।

    यत्क्रोंचमिथुना देवकम अवधिः काम मोहितम्।।”

इसका अर्थ है कि “हे शिकारी! तू चिरकाल तक रहने वाले सुख को कभी प्राप्त नहीं कर पाएगा, क्योंकि तूने काम में मुग्ध अर्थात् काम-क्रीडा में रत क्रोंच के जोड़े में से नर क्रौंच को मार डाला।

यह श्लोक वेद से पृथक लोक में छंद का नया जन्म था।

शिकारी को श्राप देने के बाद वाल्मीकि के हृदय में महान चिंता जाग गई। उन्होंने महसूस किया कि पक्षी के शोक से पीड़ित मैंने यह क्या कर दिया।

इसी बीच ब्रह्मा ने वाल्मीकि के पास जाकर मुस्कुराते हुए कहा - “हे मुनि! पीड़ित पर दया करना महापुरुषों का स्वाभाविक धर्म है। श्लोक बोलते हुए तुमने उसी धर्म का पालन किया है। तुम्हें इस विषय में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।”

ब्रह्मा जी ने कहा - “सरस्वती मेरी इच्छा से ही तुम्हारी जिह्वा में विराजती हुई थी। अब तुम्हें वह काम करना है जो तुमने नारद मुनि से सुना है। तुम भगवान रामचंद्र जी के संपूर्ण चरित्र का ऐसा वर्णन करो कि जब तक पृथ्वी, पर्वत, नदी और समुद्र रहेंगे, तब तक संसार में रामकथा चलती रहेगी। मेरी कृपा से तुम्हें संपूर्ण राम चरित्र ज्ञात हो जाएगा।”

ऐसा आदेश देकर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए।

इसके बाद वाल्मीकि ने योगबल से नारद जी के द्वारा बताये गए संपूर्ण रामचरित को जानकर गंगा और तमसा के मध्य स्थित तट पर “सात कांडों” वाले “रामायण” नाम के इस महाकाव्य की रचना की। इस प्रकार महामुनि महर्षि वाल्मीकि संसार में “आदिकवि” के यश से प्रसिद्ध हो गए।


(IX) संक्षिप्त में जानकारी :

तो यह थी बाह्मण परिवार मे जन्म लेने वाले एक छोटे से बच्चे की कहानी, जिसका बचपन में ही अपहरण हो गया, और वो भील के रूप में बड़ा होकर डाकू बना, मतलब जन्म से ब्राह्मण और कर्म से दुष्कर्म करने वाला डाकू। आगे पुनः एक और मोड़, जो ले गया सर्वश्रेष्ठ महर्षि और परम भक्त बनाने की ओर, जिससे अग्नि शर्मा, रत्नाकर और अंत में महर्षि वाल्मीकि कहलाए।

जब तक पूरी सृष्टि में प्रभू श्रीराम का नाम है, रामायण का शुभ काम है, तब तक महर्षि वाल्मीकि जी भी अपने काव्य के रूप में इस संसार में विद्यमान हैं।

वैसे एक और interesting fact है, कि महर्षि वाल्मीकि जी ही अगले जन्म में तुलसीदास के रूप में धरती पर आए थे, और उन्होंने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की। इससे जन-जन तक प्रभू श्रीराम का लोक कल्याणकारी चरित्र पहुंच गया और सबको मौका दिया कि वो प्रभू श्रीराम से जुड़ सकें और उनकी कृपा को पा सकें। 

मतलब महर्षि वाल्मीकि जी एक जन्म में ही नहीं, अपितु दोनों जन्म में भगवान श्री राम के भक्त रहे और उनके दोनों जन्म में ही उन पर प्रभू श्रीराम की कृपा रही कि उन्होंने दो बार प्रभू श्रीराम के जीवन का चित्रण किया।


जय श्रीराम 🚩🙏🏻


Disclaimer:

The information mentioned above (about Maharishi Valmiki & his life) has been gathered from reliable websites and/or open source.

Monday, 6 October 2025

Poem : मिलन चांद चकोरी का

आज शरद पूर्णिमा है। एक विशेष पूर्णिमा, जिसकी सब पूर्णिमा में मुख्य भूमिका है।

कारण, इस पूर्णिमा में चांद अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है। अर्थात् सबसे खूबसूरत, सबसे अधिक फलदाई होता है, अमृत-वर्षा करने वाला।

इस पूर्णिमा की एक विशेषता और है, कि द्वापरयुग में श्रीकृष्ण भगवान ने गोपियों के साथ इसी पूर्णिमा में रासलीला रचाई थी।

पर जो प्रियसी अपने साजन से दूर हो, उसे तो चांद तभी रास आएगा, जब वो अपने प्रियतम के साथ हो।

एक विरह वेदना में एक प्रियसी की चांद से कामना को काव्य बध किया है।

मिलन चांद चकोरी का


चांद है सुहाना, 

देखे है ज़माना, 

मिलन चांद चकोरी का।


पर तुम बिन सजना, 

मन नहीं लगना, 

क्या देखें मिलन चकोरी का।


तुम जो न साथ हो,

हाथ में न हाथ हो, 

क्या देखें मिलन चकोरी का।


तुम उस छोर पर, 

हम इस छोर पर, 

क्या देखें मिलन चकोरी का।


चंदा, कुछ कर दो ऐसा,

फिर से साथ मिले हमेशा। 

हाथ में हाथ हो,

एक-दूजे का साथ हो। 

फिर हम भी देखेंगे, 

मिलन चांद चकोरी का।।


शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻 

Saturday, 4 October 2025

India's Heritage : बदलते युग में देवता-राक्षस

आज आपको भारतीय धरोहर segment में एक बहुत ही interesting बात बताएंगे। वैसे आप सबको यह पता है, फिर भी शायद, कभी ऐसे सोचा नहीं होगा।

तो चलिए देखते हैं, कि क्या है वो बात…

बदलते युग में देवता-राक्षस


वो बात है, देवताओं और राक्षसों की उपस्थिति की।

सतयुग था, जब देवता और राक्षस अलग-अलग लोक में रहते थे। त्रेतायुग आया तो दोनों ही एक लोक में आ गए,  द्वापरयुग आया तो देवता और राक्षस, एक ही परिवार मे होने लगे।

और अब जब कलयुग है, तब देवता और राक्षस दोनों एक ही शरीर में रहने लगे हैं।

सतयुग, वो युग है, जब सब ओर सत्य, प्रेम, भक्ति और विश्वास था। इस युग में देवता स्वर्ग-लोक में थे और इंसान और राक्षस, भू-लोक और पाताल-लोक या नर्क-लोक में रहते थे।

हाँ, जब कभी कोई राक्षस त्रिदेवों में से किसी का अनन्य भक्त होता था, तो वो अपने तप से उन्हें प्रसन्न कर अत्यंत बलशाली हो जाता था।

तब वो देवाताओं से युद्ध कर उन्हें पराजित कर स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य जमा लेता था। पर कुछ समय के लिए ही, क्योंकि त्रिदेवों में से कोई एक या आदिशक्ति मां जगदम्बा उस राक्षस का वध करके स्वर्ग लोक पुनः देवताओं को दे देते थे।

फिर आया त्रेतायुग, भगवान श्रीराम और रावण का युग, देवता और राक्षस, दोनों ही भू-लोक में थे, अपने-अपने सद्कर्म और दुष्कर्म के साथ। इसमें प्रभू श्रीराम ने रावण का वध करके सत्य की असत्य पर जीत दिलाई।

उसके बाद आया द्वापरयुग, भगवान् श्रीकृष्ण और कंस का युग, जिसमें देवता और राक्षस दोनों एक ही परिवार के सदस्य थे। वो भी ऐसे पवित्र रिश्ते में, जिसकी कल्पना भी कर पाना असम्भव था। बल्कि एक तरह से देखा जाए तो द्वापरयुग में आते-आते यह हो गया कि अपने रिश्तेदारों में भी कोई भी आपका दुश्मन हो सकता है। पर तब भी सगे रिश्ते, इस तपिश से दूर थे।

उसके बाद आया कलयुग, अर्थात् आजकल का युग। इसमें सगे रिश्तों में भी देवता और राक्षस मिलने लगे, पर अब तो इंतहा हो गई है कि एक ही शरीर में देवता और राक्षस मौजूद हैं।

पर इस युग में भी अगर कोई चाहे तो अपने अंदर के देव रूपी कृत्य को जागृत करके, और राक्षस-रूपी कृत्य को सुप्त अवस्था में ले जा सकता है। 

इस का सिर्फ एक कारण है और वो है कि देव भी आप ही हो, बस उसकी ही सुनते चलिए, राक्षस अपने आप शांत हो जाएगा। 

जय श्री हरि 🚩🙏🏻