आज आपको भारतीय धरोहर segment में एक बहुत ही interesting बात बताएंगे। वैसे आप सबको यह पता है, फिर भी शायद, कभी ऐसे सोचा नहीं होगा।
तो चलिए देखते हैं, कि क्या है वो बात…
बदलते युग में देवता-राक्षस
वो बात है, देवताओं और राक्षसों की उपस्थिति की।
सतयुग था, जब देवता और राक्षस अलग-अलग लोक में रहते थे। त्रेतायुग आया तो दोनों ही एक लोक में आ गए, द्वापरयुग आया तो देवता और राक्षस, एक ही परिवार मे होने लगे।
और अब जब कलयुग है, तब देवता और राक्षस दोनों एक ही शरीर में रहने लगे हैं।
सतयुग, वो युग है, जब सब ओर सत्य, प्रेम, भक्ति और विश्वास था। इस युग में देवता स्वर्ग-लोक में थे और इंसान और राक्षस, भू-लोक और पाताल-लोक या नर्क-लोक में रहते थे।
हाँ, जब कभी कोई राक्षस त्रिदेवों में से किसी का अनन्य भक्त होता था, तो वो अपने तप से उन्हें प्रसन्न कर अत्यंत बलशाली हो जाता था।
तब वो देवाताओं से युद्ध कर उन्हें पराजित कर स्वर्ग लोक पर अपना आधिपत्य जमा लेता था। पर कुछ समय के लिए ही, क्योंकि त्रिदेवों में से कोई एक या आदिशक्ति मां जगदम्बा उस राक्षस का वध करके स्वर्ग लोक पुनः देवताओं को दे देते थे।
फिर आया त्रेतायुग, भगवान श्रीराम और रावण का युग, देवता और राक्षस, दोनों ही भू-लोक में थे, अपने-अपने सद्कर्म और दुष्कर्म के साथ। इसमें प्रभू श्रीराम ने रावण का वध करके सत्य की असत्य पर जीत दिलाई।
उसके बाद आया द्वापरयुग, भगवान् श्रीकृष्ण और कंस का युग, जिसमें देवता और राक्षस दोनों एक ही परिवार के सदस्य थे। वो भी ऐसे पवित्र रिश्ते में, जिसकी कल्पना भी कर पाना असम्भव था। बल्कि एक तरह से देखा जाए तो द्वापरयुग में आते-आते यह हो गया कि अपने रिश्तेदारों में भी कोई भी आपका दुश्मन हो सकता है। पर तब भी सगे रिश्ते, इस तपिश से दूर थे।
उसके बाद आया कलयुग, अर्थात् आजकल का युग। इसमें सगे रिश्तों में भी देवता और राक्षस मिलने लगे, पर अब तो इंतहा हो गई है कि एक ही शरीर में देवता और राक्षस मौजूद हैं।
पर इस युग में भी अगर कोई चाहे तो अपने अंदर के देव रूपी कृत्य को जागृत करके, और राक्षस-रूपी कृत्य को सुप्त अवस्था में ले जा सकता है।
इस का सिर्फ एक कारण है और वो है कि देव भी आप ही हो, बस उसकी ही सुनते चलिए, राक्षस अपने आप शांत हो जाएगा।
जय श्री हरि 🚩🙏🏻