Friday, 24 October 2025

Poem : काला मच्छर मोटा

जब भी मौसम बदलता है, ठंड से गर्मी या गर्मी से ठंड, ऐसे समय के आते ही मच्छरों की भरमार हो जाती है, साथ ही उनका काटना और हमारा उन्हें मारना, रोज का काम हो जाता है।

ऐसे ही माहौल में, हमारे छुटकू महाराज, मतलब अद्वय ने एक कटाक्ष लिखा है, तो आज उसे ही share कर रहे हैं। 

पसंद आने पर उसकी प्रशंसा तो बनती है...

काला मच्छर मोटा


छत पर बैठा,

ताक रहा था,

काला मच्छर मोटा!

खून पीकर, 

हो गया तगड़ा,

पहले था, जो छोटा।


पहले था, जो छोटा,

उसने मुझको,

खूब भगाया!

थक कर जब मैं,

बैठ गया तो, 

उसने काट खाया।


उसने काट खाया,

तब मैं चिल्लाया,

"मम्मी!"

वो मोटा ताक कर मुझको

बोल रहा था

"Your blood is so yummy…"


"Your blood is so yummy…"

यह सुनकर आया,

मस्त विचार!

Mosquito bat को,

पकड़ा मैंने,

कर दिया प्रहार। 


कर दिया प्रहार,

पर मच्छर,

निकला ज़्यादा फुर्तीला!

यह देखकर,

गुस्से से मैं,

हो गया लाल-पीला।


हो गया लाल-पीला,

पर हाथ में, 

कुछ न आया! 

फिर सोचा, है तो अब

वो भी अपना ही,

उसमें मेरा ही खून समाया।


उसमें मेरा ही खून समाया,

आज बन गई है,

 लोगों की यही पहचान!

खून चूसकर आपका,

वो दिखलाते हैं,

कुटिल मुस्कान।।

4 comments:

  1. Nice one, baccha. Keep it up ♥️

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  2. मच्छर पर बड़ा प्यार भी आया । बी ए

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  3. Very very nice n funny 🤣😂

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  4. Well written ! I enjoyed it thoroughly 💕 Keep rocking ! Very well concluded with the truth of life.

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