Friday, 14 September 2018

Article : हिन्दी बोलने में कैसी शर्म?

हिन्दी बोलने में कैसी शर्म?




आज भारत के विभिन्न सरकारी कार्यालयों व स्कूलों में हिन्दी दिवस मनाया जा रहा है। अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया जाता है। आज़ादी मिलने के दो साल बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था और इसके बाद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

हिंदी की खास बात यह है कि इसमें जिस शब्द को जिस प्रकार से उच्चारित किया जाता है, उसे लिपि में लिखा भी उसी प्रकार जाता है।  देश के 77% लोग हिंदी लिखते, पढ़ते, बोलते और समझते हैं। हिंदी उनके कामकाज का भी हिस्सा है।

पर हम सब में से कितने लोग ऐसे हैं। जो हिन्दी बोलने में गर्व महसूस करते हैं। या अपने बच्चों को इंग्लिश बोलने की तरफ बढ़ावा नहीं देते हों। और शायद हम में से कुछ या कोई भी नहीं होंगे, जिनके बच्चे हिन्दी मीडियम स्कूल में पढ़ रहे होंगे।


जबकि हम में से बहुत से ऐसे लोग होंगे, जो हिन्दी मीडियम से पढ़ कर भी उच्च पदों पर आसीन हैं।  

ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमने इंग्लिश भाषा को सिर्फ भाषा नहीं बल्कि एक ‘स्टेटस सिंबल’ बना लिया। और हम खुश भी तब ही होते हैं, जब हमारा बच्चा धारा प्रवाह इंग्लिश बोले। पर अगर बच्चा हिन्दी में महारत हासिल करता है, तो उसकी कोई भी तारीफ नहीं करता है।

हम भारतीय हैं, और हमारी मातृभाषा हिन्दी है, जब हम ही हिन्दी का, अपनी मातृभाषा का सम्मान नहीं करेंगे, तो दूसरे देशों से क्या उम्मीद कर सकते हैं, हमें हिंदुस्तानी होने पर गर्व होना चाहिए, और हिन्दी बोलने में शर्म नहीं आनी चाहिए।
यूरोपिय देशों में इंग्लिश बोली जाती है, चीन में चीनी बोली जाती है, उन्हें अपनी भाषा बोलने में कोई शर्म नहीं आती है और किसी विदेशी भाषा को वहाँ प्राथमिकता भी नहीं दी जाती है।तो हमें भी अपनी मातृभाषा को बोलने में कैसी शर्म?

देश तो हमारा 1947 में ही आज़ाद हो गया था। पर देश आज़ाद करते करते अंग्रेज़ो ने ये कूटनीति अपनाई कि उन्होंने हमारे देश के पाठ्यक्रम में इंग्लिश को डाल दिया। और उनकी इस रणनीति को हम पूर्णत: सही भी साबित कर दे रहे हैं। बल्कि शायद उन्होंने तो केवल यही योजना बनाई होगी कि इंग्लिश भी भारत में अभिन्न अंग बनी रहेगी, पर हमने तो अपनी मातृभाषा का बहिष्कार करके इंग्लिश को ही मुख्य भाषा बना दिया है।
और ये जुमला कि ‘अँग्रेज तो चले गए, पर अँग्रेजी छोड़ गए’, ये सिद्ध करती है कि हमारी गुलामी अभी भी बनी रह गयी। मानसिक तौर पर गुलाम।

तो चलिये कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं, कि जब हम आपस में बात कर रहे हों, तब तो हिन्दी ही बोलें व लिखें और अपने बच्चों को भी हिन्दी बोलने के लिए प्रेरित करें। अपनी मातृभाषा का सम्मान करना भी सिखाएँ।
हिन्दी बोलने से शरमाये नहीं, अपनी मातृभाषा का सम्मान ही देश का सम्मान है।


जय हिन्दी  जय भारत 

2 comments:

  1. जिसको न निज भाषा निज देश पर अभिमान है ..वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है ...जय हिंदी 🙋

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद
      जय हिन्दी जय भारत

      Delete

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.