Friday, 14 December 2018

Story Of Life : बाबू जी का फैसला (भाग- ३)


अभी तक आपने पढ़ा, संजना nuclear family से है, उसका विवाह संजीव से होता है, जो कि joint family से है. संजना के adjust ना कर पाने के कारण दोनों को बाबू जी, अपने दूसरे घर भेज देते हैं. जहाँ वो दोनों, अकेले रहते हैं। पर वो वहाँ भी खुश नहीं रह पाती है.....
अब आगे। ......


बाबू जी का फैसला (भाग- ३)

  
अभी चार दिन ही बीते थे कि संजीव ने new bike ले ली। और आकर संजना से बोला, चलो आज तुम्हें bike राइड पर ले चलता हूँ। संजना bike देखकर बोली मैं कभी bike में नहीं बैठी हूँ। गिर तो नहीं जाऊँगी?
अरे यार bike में ही सबसे ज्यादा romance का मज़ा है। तुम मुझे कस के पकड़ लेना।
संजना संजीव के कहने से बैठ तो गयी, पर वो comfortable feel नहीं कर रही थी। और फिर वही हुआ, जिसका संजना को डर था, कुछ दूर चल कर ही संजना bike से गिर गयी। उसके हाथ, घुटने छिल गये। संजीव उसे तुरंत Dr. के पास ले गया। dressing हो गयी। संजीव ने कहा, माँ-पापा को बता देते हैं। वो आकर तुम्हें देख लेंगे। मेरा चार दिन का tour है। पर संजना ने मना कर दिया। वो वापस से उन सबके बीच नहीं जाना चाहती थी।
संजीव अगले दिन चला गया। संजना अकेले घर में थी। उसके बहुत दर्द था, पर उसे अपनी dressing भी खुद करनी पड़ रही थी। अपने लिए बेस्वाद खाना भी बनाना पड़ा। क्योंकि घर में कोई भी नहीं था, जो उसे एक ग्लास पानी भी उठा के देता। उसे याद आने लगा, वो दिन जब मामूली से fever होने पर भी कैसे पूरा घर उसे ठीक करने में लग गया था। यहाँ तक कि संजीव को भी उसके लिए कुछ नहीं करना पड़ता था। घर में इतने सारे लोग थे, कि किसी भी काम का कुछ पता नहीं चलता था, और सारे काम भी हो जाते थे।
अब उसे अपने अकेले घर में मज़ा नहीं आ रहा था। उसे सबकी बहुत याद आ रही थी। और सबसे ज्यादा तो छुटकू की। जो चाची के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था।
संजीव के आते ही वो घर चलने की जिद करने लगी। वो लोग वापस घर आ गए। उनके घर आते ही सबको सबसे पहले संजना की चोट दिखी, और जब चोट लगने का कारण पता चला, तो सबने संजीव की बहुत डांट लगाई। सब संजना को ठीक करने में लग गए।
चार दिन के आराम से ही वो ठीक गयी। छुटकू अंदर आते आते ठिठक गया। अरे आ जा छुटकू अपनी चाची के पास नही आएगा। छुटकू दौड़ के आया, और अपनी चाची से चिपक गया। उस एहसास ने संजना को सुख के मायने बता दिये थे। अब से सब उसके कमरे में और वो सबके कमरे में जाने लगी थी। एक दिन उसकी माँ का फोन आया, क्या हुआ बेटा वापस आ गयी? हाँ माँ अकेले अकेले मज़ा नहीं आता है। माँ जी बाहर खड़ी सुन रही थीं, आज उन्हें समझ आया, क्यों बाबू जी ने संजना-संजीव को कुछ दिन अकेले रहने को बोला था,
कुछ दिनों की दूरी ने संजना को सबके दिलों के नजदीक ला दिया था, अब ही वास्तव में संजना ने अपनी ससुराल को दिल से अपना लिया था। हर बार की तरह बाबू जी का ये फैसला सही था।

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