नववर्ष बेला
इस वर्ष की नववर्ष बेला
क्या मेरे सपनों सी हो जाएगी
राम के त्रेता जैसी ही क्या
सुख से दुनिया भर जाएगी
मात-पिता को जहाँ
मिलता था सम्मान
भ्रातप्रेम में एक दूजे के लिए
दे देते थे बलिदान
क्या वही सुखद स्वप्न सी
भारत की भूमि कहलाएगी
इस वर्ष की नववर्ष बेला
क्या मेरे सपनों सी हो जाएगी
कृष्णा के द्वापर सी क्या
पावन धरती बन जाएगी
जहाँ ना छोटा, बड़ा कोई
सब पाते थे सम्मान
स्त्री की अस्मिता बचाने
आ जाते थे खुद भगवान
क्या उन्हीं मधुर तानों में
भारत की भूमि खो जाएगी
इस वर्ष की नववर्ष बेला
क्या मेरे सपनों सी हो जाएगी
जहाँ प्रेम ही प्रेम रहेगा
ना होगा नारी का अपमान
मिलजुल कर रहेंगे सब
बड़े-बुजुर्गों को मिलेगा सम्मान
जहाँ ना आरक्षण का टंटा होगा
मेहनत का ही डंका होगा
ऊंच-नीच की बात ना होगी
बस अपनत्व की बरसात होगी
जहाँ ना कोई भूखा होगा
बिन छत ना कोई सोता होगा
जो बात ये, सच्ची हो जाएगी
धरती स्वर्ग सी बन जाएगी
इस वर्ष की नववर्ष बेला
क्या मेरे सपनों सी हो जाएगी
आओ इस नववर्ष हम प्रण करें
भारत को धरती का स्वर्ग करें
राम, कृष्ण की पावन
भूमि को
मिलजुल कर सुयश करें
Happy new year

Nice poem
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation
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