Thursday, 5 March 2020

Stories of Life : स्नेह भवन (भाग -4)

स्नेह भवन (भाग -1) ...
स्नेह भवन (भाग -2) और

स्नेह भवन (भाग -3) के  आगे ...

स्नेह भवन (भाग -4)

सुनिए, मुझे एक बड़ा अच्छा idea आया है, जिससे हमारी life  भी  सुधर जाएगी और इनके टूटे दिल को भी आराम मिल जाएगा।

क्यों न हम इन्हें यहीं रख लें? अकेली हैं, बेसहारा हैं और इस घर में इनकी जान बसी है।यहां से कहीं जाएंगी भी नहीं और हम यहां वृद्धाश्रम से अच्छा ही खाने-पहनने को देंगे उन्हें।”

“तुम्हारा मतलब है, नौकर की तरह?”

“नहीं, नहीं. नौकर की तरह नहीं। हम इन्हें कोई तनख़्वाह नहीं देंगे। काम के लिए तो maid भी है. बस, ये घर पर रहेंगी, तो घर के सदस्य  की तरह।  Maid  पर, आने-जानेवालों पर नज़र रख सकेंगी, बच्चों को देख-संभाल सकेंगी।

ये घर पर रहेंगी, तो मैं भी आराम से नौकरी पर जा सकूंगी।  मुझे भी पीछे से घर की, बच्चों के खाने-पीने की टेंशन नहीं रहेगी”।

“Idea  तो अच्छा है, पर क्या ये मान जाएंगी?”

“क्यों नहीं ! हम इन्हें उस घर में रहने का मौक़ा दे रहे हैं, जिसमें उनके प्राण बसे हैं, जिसे ये छुप-छुपकर देखा करती हैं”।

“और अगर कहीं मालकिन बन घर पर अपना हक़ जमाने लगीं तो?”

“तो क्या, निकाल बाहर करेंगे. घर तो हमारे नाम ही है। ये बुढ़िया क्या कर सकती है”?

“ठीक है, तुम बात करके देखो.” ऋषि  ने सहमति जताई। ऋषि को वैसे भी नीरजा की job छूटने का अफसोस  था। 

नीरजा ने संभलकर बोलना शुरू किया, “देखिए, अगर आप चाहें, तो यहां रह सकती हैं”।

स्नेहा जी की आंखें इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से चमक उठीं।  क्या वाक़ई वो इस घर में रह सकती हैं, लेकिन फिर बुझ गईं।

आज के ज़माने में जहां सगे बेटे ने ही उन्हें घर से यह कहते हुए बेदख़ल कर दिया कि अकेले बड़े घर में रहने से अच्छा उनके लिए वृद्धाश्रम में रहना होगा। वहां ये पराये लोग उसे बिना किसी स्वार्थ के क्यों रखेंगे?

“नहीं, नहीं. आपको नाहक ही परेशानी होगी”।

“परेशानी कैसी, इतना बड़ा घर है और आपके रहने से हमें भी आराम हो जाएगा”।

हालांकि दुनियादारी के कटु अनुभवों से गुज़र चुकी स्नेहा जी नीरजा के आंखों में छिपी मंशा समझ गईं, मगर उस घर में रहने के मोह में वो मना न कर सकीं।

स्नेहा जी उनके साथ रहने आ गईं और आते ही.....

आगे पढ़े स्नेह भवन (भाग - 5) में.....


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