अभी तक आपने तृप्ति (भाग-1) में पढ़ा और सुगंधा बहुत पक्की सहेली थी, जो ३० साल बाद मिलती हैं, आस्था ने अपने जीवन में क्या चुना। अब आगे .....
तृप्ति भाग-२
अभी उन लोगों ने प्रवेश किया ही था, कि अंदर से नीलेश
निकला। बोला- माँ आप आ गईं। मुझे office निकलना है, मेरी file निकाल दीजिये, मैं बहुत देर से ढूंढ रहा हूँ।
ठीक है तुम बैठो, अपनी सुगंधा मौसी के पास, ये मेरी कॉलेज की दोस्त हैं, आज ३० साल बाद मिली हैं। ये सुनते ही नीलेश ने सुगंधा के बड़ी श्रद्धा के साथ पैर छूए, और उससे अपनी माँ के कॉलेज के दिनों की बात बड़ी curiosity से सुनने लगा। आस्था अंदर file ढूंढने चली गयी।
ठीक है तुम बैठो, अपनी सुगंधा मौसी के पास, ये मेरी कॉलेज की दोस्त हैं, आज ३० साल बाद मिली हैं। ये सुनते ही नीलेश ने सुगंधा के बड़ी श्रद्धा के साथ पैर छूए, और उससे अपनी माँ के कॉलेज के दिनों की बात बड़ी curiosity से सुनने लगा। आस्था अंदर file ढूंढने चली गयी।
10 मिनट में आस्था वापस आ गयी थी, उसके हाथ में नीलेश की file, कॉफी और पकौड़े थे। File देखते ही नीलेश बोल उठा, माँ आप कमाल हैं, हम सब की खुशियों की चाभी। आपको file कितनी जल्दी मिल गयी, और साथ में गरमा गरम पकौड़े, coffee के साथ, वाह मज़ा आ गया।
अंदर से नरेंद्र भी आ गए, आते ही बोले, आस्था तुम्हारी पकौड़े की खुशबू सूंघ कर कोई बिरला ही रुक सकता है, लाओ, जरा हमें भी खिलाओ।
नरेंद्र गोरे ऊंचे लंबे कद के थे। उनसे सुगंधा की नज़र हट ही नहीं रही थी। आस्था ने नरेंद्र को बताया, ये मेरी दोस्त सुगंधा है। सुगंधा ये मेरे पति नरेंद्र हैं, ये MNC में CEO हैं। आस्था की आवाज़ से सुगंधा की तंद्रा टूटी।
Hello नरेंद्र, कह कर सुगंधा ने अपना हाथ बढ़ा दिया। नमस्कार सुगंधा जी।
Coffee और पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट थे, पेट भर गया, पर मन नहीं भरा, नरेंद्र और नीलेश निकल गए। जाते समय नीलेश ने फिर से सुगंधा के पैर छूए, और बोल के गया। मौसी आप जाइएगा नहीं, आपसे बात कर के बहुत मज़ा आया, शाम को आ कर माँ के बारे में और बहुत सी बात करूंगा।
उन लोगों के जाने के बाद सुगंधा ने पूछा, ये नीलेश क्या करता है, आस्था ने बताया, ये IAS Officer है। सुन कर सुगंधा चौंक गयी, कितनी सादगी है, तुम्हारे परिवार में।
अब सुगंधा और आस्था बैठ कर बातें करने लगीं। सुगंधा बोली नरेंद्र जी तो बड़े ही सुलझे हुए लग रहे थे, तब तुमने job क्यूँ नहीं की?
की थी job मैंने। एक PSU में HR Manager थी। पर जब नीलेश हुआ तब सब manage करना बहुत ही मुश्किल हो रहा था, नरेंद्र अच्छी job में थे ही, पैसे की कोई crisis नहीं थी, तो अपने बच्चे के लिए मैंने job छोड़ दी। और ये मेरा खुद का निर्णय था। उसके लिए job छोड़ने की क्या जरूरत थी, अपनी सास को बुला लेती। वो तो हमारे साथ ही रहती थीं, पर वो बुजुर्ग थीं। नीलेश हमारी ज़िम्मेदारी था, उनकी नहीं। अच्छा मेरी माँ, एक Neni रख लेती, मैंने भी ऐसे ही manage किया था, बच्चों की चों-पों सुसू-पोटी सब से छुट्टी।
सही कहा तुमने सुगंधा, पर साथ में बच्चों में आने वाले संस्कारों की भी छुट्टी।
अच्छा अगर तुझे यही करना था, तो इतना पढ़ने की क्या जरूरत थी?
मैं इतनी पढ़ी हुई हूँ, तभी...
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.