Friday, 12 April 2024

India's Heritage : माँ कूष्मांडा

आज विरासत के segment में एक ऐसी कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, जो कि भारत की केवल विरासत के अंतर्गत नहीं आती है, बल्कि वो हमारे भारत की शक्ति हैं, प्रेरणा हैं, आस्था हैं, आत्मा हैं, प्रार्थना हैं, पूजा हैं।

विरासत अंक में इसे शामिल करने का कारण यह है कि आने वाली पीढ़ियों को सभी माता रानी के नाम और उनकी विशेषता पता चले...

आज नवरात्र का चौथा दिन है और हमारी कहानी की मुख्य नायिका भी हमारी कूष्मांडा मातारानी ही हैं।

आप कहेंगे, सीधे चौथी माता रानी के विषय में लिख रहे हैं, उससे पहले की क्यों नहीं? और क्या अब हर माता रानी के विषय में लिखेंगे?

बिल्कुल लिखेंगे... 

पर शुरुआत कूष्मांडा माता से ही क्यों, यह पहले बताते हैं आपको, क्योंकि प्रारंभ हम वहां से भी कर सकते हैं, जहां से सृष्टि की उत्पत्ति हुई थी।

सृष्टि की उत्पत्ति या सृजन से कूष्मांडा माता रानी का क्या संबंध है? और क्यों माता रानी के इस स्वरूप को कूष्मांडा माता कहते हैं...

क्या संबंध है, यही आज की कहानी का सार है...

Maa Kushmanda

आज यानि 12 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां कूष्मांडा का पूजन किया जाता है। 

सनातन शास्त्रों में निहित है और सदियों से सबको यही विदित है कि त्रिदेव ने सृष्टि की रचना करने की। 

पर क्या यही सत्य है? क्या सृष्टि के निर्माण में किसी देवी का कोई हाथ नहीं? 

जबकि स्त्री को तो सृजनकर्ता, सृष्टि कर्ता भी कहा गया है हैं। 

आइए जान लेते हैं…

बात उस समय की है, जब समस्त ब्रह्मांड में अंधेरा छाया हुआ था, पूरा ब्रह्मांड स्तब्ध था। इसमें न कोई राग, न कोई ध्वनि थी। हर ओर केवल सन्नाटा छाया हुआ था। 

उस समय त्रिदेव ने, सृष्टि निर्माण की कल्पना की। परन्तु सृजन की कल्पना जननी के बिना... यह असंभव था।

अतः जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा से सृष्टि के सृजन के लिए सहायता मांगी।

जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा ने तत्क्षण ब्रह्मांड की रचना में सहायता प्रदान की। 

कहते हैं कि ब्रह्मांड की रचना मां कूष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से की। 

मां के मुख मंडल पर फैली मंद मुस्कान से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान हो उठा। 

ब्रह्मांड की रचना अपनी मुस्कान से करने के कारण या दूसरे शब्दों में कहें कि अंड अर्थात् ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण ही जगत जननी आदिशक्ति को मां कूष्मांडा कहा गया है। 

मां का चौथा रूप 'कूष्मांडा' नाम का शाब्दिक अर्थ है ‘कू’ का अर्थ छोटा, ‘ऊष्म’ का अर्थ ऊर्जा (heat energy)है, अंडा आकृति है। अर्थात् कूष्मांडा का शाब्दिक अर्थ हुआ- ‘छोटा और अंडाकार ऊर्जा पिंड’।

मां की महिमा निराली है। मां का निवास स्थान सूर्य लोक है। शास्त्रों में कहा जाता है कि मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं। ब्रह्मांड की रचना करने वाली मां कूष्मांडा के मुखमंडल पर उपस्थित तेज से सूर्य प्रकाशवान है। मां सूर्य लोक के अंदर और बाहर सभी जगहों पर निवास कर सकती हैं। 

वैसे तो मुख्यतः लोग, पहले और आखिरी दिन का व्रत रखते हैं, पर बहुत से लोग पूरे 9 दिन का व्रत भी रखते हैं। तो जो नौ दिन का व्रत रखते हैं, वो तो नौ दिन तक माता रानी के हर रुप की पूजा अर्चना करते हैं। लेकिन जिन्हें नहीं पता, उनके लिए बता देते हैं कि कूष्मांडा माता रानी की कैसे पूजा अर्चना की जाती है।

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन कूष्मांडा माता की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मत है कि मां कूष्मांडा की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी प्रकार के शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। 

इसलिए मां के उपासक, श्रद्धा भाव से कूष्मांडा माता की पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी मां कूष्मांडा की कृपा के भागी बनना चाहते हैं तो विधि पूर्वक मां कूष्मांडा की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्रत, कथा अवश्य पढ़ें। इस व्रत कथा को सुनने मात्र से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। मां कूष्मांडा माता की पूजन विधि और व्रत कथा। 

कूष्मांडा माँ की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना :

देवी कूष्मांडा की पूजन के लिए उनकी तस्‍वीर को चौकी पर विराजमान करें।

फिर मां को रोली, अक्षत, पीले फूल, पीले वस्‍त्र अर्पित करें। 

कुछ लोगों का कहना है कि देवी को बलि प्रिय होती है, देवी कूष्मांडा को भी है। लेकिन जो सृजनकर्ता हो, माँ हो, वो अपनी ही सृष्टि का हनन कैसे कर सकती है। अतः कूष्मांडा माता रानी को बलि में किसी जीव को नहीं, बल्कि कुम्‍हड़ा यानि कद्दू जरूर अर्पित किया जाता है। देवी मां को कुम्‍हड़े की बलि प्रिय है। 

इसके अलावा मां कूष्मांडा की पूजा में 'ॐ बुं बुधाय नमः' मंत्र का जाप करते हुए हरी इलायची के साथ सौंफ चढ़ाएं।

बेहतर होगा कि जितनी आपकी उम्र हो माता को उतनी ही इलायची अर्पित करें।

पूजा के बाद माता को समर्पित की गई इलायची को साफ हरे वस्त्र में बांधकर, पूरे नवरात्रि तक अपने पास रखें। ऐसा करने से जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है।


जय माता दी 🚩🙏🏻 बोलो सांचे दरबार की जय 🙏🏻

माता रानी की कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻😊

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