Thursday, 30 May 2024

Satire : हाय हाय गर्मी

कुछ दिनों पहले ठंड पड़ रही थी, नहीं-नहीं हद की ठंड पड़ रही थी। इतनी की दांतों के साथ-साथ हड्डियां भी कीर्तन कर रही थी, और हवन भी चल रहा था शरीर में।‌ 

हवन! पर वो कैसे?

बताते हैं, हर बार मुंह खोलने के साथ ही धुआं जो निकलता था। 

सोचा चलो, किसी बाबा जी या किसी ओझा से बात की जाए तो शायद कुछ अच्छा हो जाए।

बारी बारी से दोनों के पास गए...

दोनों ने आश्वासन दिया, "बच्चा! परेशान मत हो, चंद दिनों की बात है, फिर सब अच्छा ही अच्छा..."

अपन भी लौट आए, पर अपने को कंपकंपाने से ना बचा पाए।

पर बात सही थी, ठंडक गुज़री, गर्मी आई...

हाय हाय गर्मी


पर यह क्या, अपने संग मच्छरों की बारात ले आई।

जहां देखो, मच्छरों की गुनगुनाहट, उनके ही प्रेम की गर्माहट...

चाहे जितने भी मार लो, उनकी बढ़ती जनसंख्या रोक ना पाएँ।

कछुआ छाप, mortein, all-out, fast card सब के सब fail... मच्छर हद के, कि जीवन हो जाए अझेल...

फिर अपन दोबारा भागे, अब कुछ करो उपाय, मच्छर से कैसे जान बचाएं...

दोनों ने आश्वासन दिया, "बच्चा! परेशान मत हो, चंद दिनों की बात है, फिर सब अच्छा ही अच्छा..."

सचमुच ऐसा ही हुआ, चंद दिनों के बाद, मच्छर रहे ना छिपकली, जाने कहां नदारद हो गए, पर हमें सुख चैन दे गए...

आह हा हा! पर यह क्या अपन भी अंडे की तरह उबलने लगे, सिर से लेकर पांव तक जलने लगे।

हर जगह, अब तवा-सी नज़र आती है, बैठते ही तशरीफ़ जल जाती है...

टस-टस पसीने की धार, गर्मी अपरम्पार!

इधर-उधर सब जगह हर कोई चिल्लाए, गर्मी-गर्मी, हाय-हाय, चैन कहीं मिल ना पाए।

ना पंखा ना कूलर भाए, दिन रात AC चलाए, फिर बिजली का बिल सरपट दौड़ लगाए...

घड़े, सुराही का पानी रास ना आए, उससे अब कहाँ प्यास बुझ पाए...

हाय-हाय गर्मी, तू जल्द चली जा, फिर लौट के ना आ, कुछ दिन तो सुख के बिताएँ, कोई तो हो ऐसा मौसम, कि चैन आ जाए।

इस पर बाबा जी और ओझा एक स्वर में बोले, "चैन इंसान को कहीं नहीं आता है, चंद दिनों का सुख, फिर दुःख ही दुःख नजर आता‌ है..."

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