Friday 4 October 2024

India's Heritage : दुर्गा माँ (त्र्यंबके)

कल से शारदीय नवरात्र आरंभ हो चुके हैं, तो आज India's Heritage segment में मांँ दुर्गा से जुड़ी हुई बात ही share कर रहे हैं।


सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।। 


इस पवित्र और मंगल मंत्र के साथ आगे बढ़ते हैं। यहां त्र्यंबके कहकर, किस ईश्वर को संबोधित किया गया है और क्यों?

कभी सोचा है आपने?

माँ दुर्गा को संबोधित किया है और उन्हें त्र्यंबके भी कहा है..

क्या है इसकी वजह? माँ दुर्गा को क्यों कहा जाता है त्रयंबके? 

दुर्गा माँ (त्र्यंबके)

ईश्वरीय रुप में भगवान शिव जी के अलावा माँ दुर्गा को भी त्र्यंबके कहा जाता है।

त्र्यंबके का अर्थ होता है, तीन अंबक, अर्थात् तीन नेत्रों वाला...

जिस तरह से भगवान शिव के तीन नेत्र हैं, उसी तरह माँ दुर्गा की भी तीन आंखें हैं। 

माँ दुर्गा के यह तीन नेत्र सूर्य, अग्नि और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं। तीन नेत्र होने के कारण ही, माँ दुर्गा को त्र्यंबके कहा जाता है।

किसी देवी माँ का स्वरूप हैं, दुर्गा मांँ?


क) दुर्गा माँ का स्वरूप :

देवी दुर्गा आद्याशक्ति महामाया का पार्वती या अम्बिका रूप हैं। शक्तिरूपिणी दुर्गा मांँ, इस संसार की सभी ऊर्जाओं के केंद्र में स्थित हैं। 

वह स्वयं महादेव का अंश हैं। देवी माँ, बुरी ताकतों को हराने के लिए मनुष्यों के पास आती हैं। माँ दुर्गा के आगमन की कथा मार्कंड पुराण के भाग स्कंद पुराण में मिलती है।

देवों के देव महादेव की तरह, माँ दुर्गा के भी त्रिनेत्र हैं। जहाँ भी दुर्गा माँ की तीन आंखों का उल्लेख किया है, वहां उन्हें 'त्र्यम्बके' कहा गया है।

पुराणों के अनुसार, महादेव की तीसरी आँख, ज्ञान का प्रतीक है। 

मां दुर्गा की बाईं आंख में चंद्रमा है, जो मन की इच्छा का प्रतीक है, उनकी दाहिनी आंख में सूर्य है, जो क्रिया का प्रतीक है, और उनकी तीसरी आंख में अग्नि है, जो ज्ञान का प्रतीक है।


ख) क्यों रखते हैं नारियल, पूजा के कलश‌ में?

हिंदू धर्म में नारियल को बहुत पवित्र माना जाता है, इसलिए इसे श्रीफल कहा जाता है। क्योंकि नारियल में भी शिव-पार्वती के समान तीन नेत्र अंकित होते हैं।

नारियल पर तीन काले गोल निशान होते हैं, इसे नारियल की तीन आंखें भी कहा जाता है। नारियल की तीसरी आंख अहंकार को दूर करने का प्रतीक मानी गई है‌। तीसरी आंख मन की उच्च चेतना का प्रतिनिधित्व करती है।

शिव सिद्धांत के अनुसार तीसरी आंख मन की उच्चता और पवित्रता का स्वरूप व्यक्त करती है, यह तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित करता है।


ग) त्रिनेत्र का महत्व :

एक बार महादेव जी अपनी समाधि में लीन थे। माँ पार्वती, शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, अतः देवों ने कामदेव से शिव जी की तपस्या भंग करने को कहा।

तपस्या में विघ्न डालने पर महादेव ने अपना तीसरा नेत्र प्रकट कर कामदेव को भस्म कर दिया। अर्थात् तीसरी आँख मन की इच्छाओं को भस्म करने की शक्ति रखती है। 

अर्थात् तीसरी आँख, ज्ञान और पवित्रता की प्रतीक होती है और हम साधारण मनुष्य भी यत्न करें और अपने व्यवहार में पवित्रता और परहित ज्ञान को विकसित कर लें तो महादेव जी की असीम कृपा हम पर भी बन जाएगी। इससे हमारा भी त्रिनेत्र जाग्रत हो जाएगा, जिससे हम अपना जीवन यापन कर ईश्वर में लीन होकर मुक्ति को प्राप्त कर सकेंगे 🙏🏻 

जयकारा शेरावाली दा 🙏🏻

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.