बदलती ज़िंदगी (भाग-2) के आगे…
बदलती ज़िंदगी (भाग-3)
सब सुधा की दलील के आगे चुप हो गए, पर फिर उन्होंने रितेश से भी मुखातिब होना बंद कर दिया।
रितेश को इससे अच्छा नहीं लगा, पर फिर भी उसने सुधा का साथ देना ही उचित समझा।
आगे से रितेश को party के invitation मिलना लगभग बंद हो गये। लोगों ने उससे मिलना-जुलना कम कर दिया।
रितेश एक तरह के boycott से tension में रहने लगा।
उसे भी लगने लगा कि उसके पिता ने सुधा से उसकी शादी करके उसका जीवन बर्बाद कर दिया।
दिन-रात की tension और उलझनों के कारण उसका बहुत बड़ा accident हो गया।
नतीजतन रितेश की नौकरी छूट गई और अन्य नौकरी मिलने में काफ़ी दिक्कत होने लगी।
अब तो रितेश depression में जाने लगा। वह इधर-उधर रहकर समय काटने लगा, न कोई ढंग का काम करता, न घर पर ज्यादा रुकता।
हालांकि, सुधा के मितव्ययी और संतोषी होने के कारण, कुछ महीनों के बाद भी savings कुछ ज्यादा खर्च नहीं हुईं।
और इस बीच, सुधा ने अपनी बस्ती में घूम-घूमकर अपने द्वारा बनाई गई paintings, embroidered suits, साड़ी और चादर बेचने शुरू कर दिए।
सुधा के हाथ में बहुत सफाई थी और वो सबको customised काम करके देती थी, जिसके कारण उसने जल्दी ही घर-घर जाकर सामान बेचना बंद कर दिया, बल्कि अपना boutique खोल लिया।
कुछ और महीनों बाद उसने रितेश को कहा कि उसे एक company का call आया कि उसे एक manager की आवश्यकता है, क्या वो उसके लिए वहां चला जाएगा।
हालांकि रितेश का बिल्कुल मन नहीं था, पर सुधा का मन होने के कारण वो चल दिया। सुधा ने एक cab book कर दी थी।
रितेश आज बहुत दिनों बाद घर से कहीं दूर निकला था तो सब कुछ अलग और नया-सा लग रहा था…
आगे पढ़ें, बदलती ज़िंदगी (भाग-4) में।

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