Tuesday, 9 January 2024

Memories : अंगीठी - एक मीठी याद

इस बार ठंडक कुछ ज्यादा ही पड़ रही है या यूं कहें कि हर साल ही ऐसा लगता है, जैसे इस साल सबसे ज़्यादा ठंड पड़ रही है।

खैर बरहाल, सोचने वाली बात यह रहती है कि ठंड दूर कैसे की जाए। 

वैसे आज कल तो घर-घर में heater, room blower है... वही हमारे यहां भी...

आज ऐसे ही कुछ देखने के लिए Google बाबा की याद आई, और बस उस देखा-देखी में एक के बाद एक चीजों की लड़ी सी बनती गई।

और देखते-देखते, नज़र पड़ गई अंगीठी पर...

अंगीठी बिक रही हैं और वो भी online???

सच ऐसे ही विस्मित हो गये थे हम भी, पर खैर क्या नहीं है, जो आपको online में नहीं मिल रहा।

पर उन अंगीठियों को देखकर मन पंख लगाकर बचपन की ओर उड़ चला। एक मीठी सी याद बन कर...

अंगीठी - एक मीठी याद

हमारे बचपन में तो कोई घर ऐसा नहीं होगा, जिनके पास अंगीठी ना हो। 

बहुत से लोगों के घर में तो अंगीठी पर खाना भी बनता होगा शायद, पर हमारे यहां तो हमने अपनी मम्मी, दादी, चाची, नानी, मौसी, मामी... किसी को भी चूल्हे, स्टोव, अंगीठी, heater, किसी पर खाना बनाते नहीं देखा, सभी gas use कर के ही खाना बनाते थे।

पर एक अंगीठी थी, हमारे यहां, जो पूरे साल बड़े एतिहाद से रखी जाती थी और उसका उपयोग ठंड की शामों में ठिठुरन मिटाने के लिए किया जाता है।

एक सच बात बताएं, आप लोगों को, जब वो जलती थी तो feeling बिल्कुल bonfire वाली ही आती थी।

आज कल जैसे हम अपने मां-पापा की एकलौती या दो संतानों जैसे नहीं थे। हम चार भाई-बहन थे। दो भाई और दो बहन... और एक बात, हम चार से, हम लोगों को जितना आंनद आता था, और लोगों को हमें देखकर उतनी ही ईर्ष्या होती थी। 

कारण पता है क्या था? हम दोनों भाई-बहन जोड़े से थे, इसलिए हम लोगों घर पर हों या बाहर हमें किसी और की कभी आवश्यकता ही नहीं महसूस होती है। ऐसा लगता था, ईश्वर ने हमें complete बना कर भेजा है। 

उस पर सोने पर सुहागा यह कि शौक-पसंद भी हम लोगों के मिलते-जुलते थे...

खैर फिलहाल अभी अंगीठी पर ही लौटते हैं। हां तो बस शाम होती और कोई ना कोई भाई-बहन बैठ जाता, शाम की गर्माहट बढ़ाने की तैयारी में...

पापा जी ने तो खूब सारे, लकड़ी के, पत्थर के कोयले खरीद कर रख दिए थे। 

घर में एक बड़ा सा खुला आंगन था, बस वहीं बैठ कर अंगीठी जलाया करते थे।

और हम लोगों में से जो कोई उसे जलाने बैठता था तो बड़ी तेजी से उसे जलाने के जतन करता था और जब वो अपनी आंच पर आ जाती थी तो ऐसी अनुभूति होती थी, मानों किसी अड़ियल घोड़े को काबू में कर लिया हो। अंगीठी जलाना कोई हंसी-खेल नहीं होता है...

पर हम सब भाई-बहन में सबसे अच्छी अंगीठी, छोटा भाई जलाता था। जब वो अंगीठी सुलगा कर कमरे में लाता था, बहुत तेज आंच और धुआं एक रत्ती का नहीं। बहुत ज्यादा आनंद आ जाता था। उसके छोटे-छोटे हाथ कमाल का काम करते थे। 

बहुत ही सुहाने दिन थे, उस ज़माने में लोगों के पास व्यस्तता उतनी ही थी, जितनी होनी चाहिए थी और अपनों के लिए समय भी उतना ही जितना आवश्यक होता है।

पूरा परिवार उस अंगीठी के ताप से जगमगा उठता था, और, उसी दौरान, गर दौर मूंगफली का चल जाता था तो कहना ही क्या, मूंगफली के छिलके कमाल ही कर देते थे।

रिश्तेदारों का भी आना-जाना लगा ही रहता था, जो सुख में चार-चांद लगा दिया करता था..

उस ज़माने में जिंदगी, जिंदगी थी, आज जैसी नहीं जिसमें सिर्फ भाग-दौड़ और झूठा छलावा है, busy रहने और busy दिखाने का... 

बहुत याद आता है, अंगीठी का ताप और अपनों का साथ... पापा जी के चले जाने से, वो साथ, अब वैसे भी कभी संभव नहीं है!...

और ना संभव है अंगीठी का ताप...

अब आप कहेंगे कि वो क्यों? पूरा लेख लिख डाला अंगीठी पर, और ताप संभव नहीं...

वो क्या है ना हमारे घर में राज्य पति-महाराज का ही है, और पतिदेव एक धूपबत्ती, अगरबत्ती तक तो जलाने नहीं देते हैं, वो अंगीठी तो क्या ही जलाने देंगे.... 

हम नहीं अंगीठी का मज़ा ले सकते हैं तो क्या? उसकी याद और उसके सुख का उल्लेख तो कर ही सकते हैं और उसकी स्वतंत्रता उनकी तरफ से भी है... तो क्यों ना खुशी ले लें...

जो नहीं मिला रहा, उसके लिए दुःखी होने से अच्छा है जो मिल रहा है, उसके लिए प्रसन्न रहें, खुश रहें, जिंदगी जीना आसान होता है...

वरना ग़म तो ज़माने में ग़ालिब किस को नहीं है?....

खैर छोड़िए वो सब, वापस अंगीठी पर आते हैं..

आज जब अंगीठी देखी, और उसके भाव देखे तो लगा कि ऐसा भी क्या है, जो अंगीठी के भाव इतने बढ़े हुए है?.. तो देखा कि एक से एक ख़ूबसूरत design थी, कल की जरूरत आज के antique items में से एक है। बहुत से घरों में उसे antique and elegant का मान भी मिला हुआ था, लोगों के drawing room की शोभा है, अंगीठी। आज उसे बेहद उम्दा ashtray के रूप में present किया जा रहा है।

वैसे आज भी किसी को अगर अंगीठी में interest हो तो एक से एक अंगीठी हैं, multipurpose हैं, आपकी आंखों को धुआं ना लगे, ऐसी भी हैं। हां उनके दाम जरूर ज्यादा हैं। पर शौक तो शौक है, वो दाम कब देखता है... 

हम तो कहेंगे कि आज भी जिनके घर में अंगीठी है, वो सौगात है, खुशियों के दिनों की... आनंद ले, उसके साथ बस ठंड का, अंगीठी के ताप का और उसके multipurpose use का...

पर हां, एक बात का ध्यान हमेशा रखिएगा कि जली हुई अंगीठी, या जिस किसी भी चीज़ में आप आग जला रहे हैं, वो जितना सुख गर्माहट देकर देती है, जब वो बुझने लगती है तो उतनी ही खतरनाक हो जाती है, क्योंकि तब वो carbon monoxide, produce करने लगती है, जो कि जानलेवा होती है इसलिए अंगीठी बुझने लगे तो उसे खुली जगह में रख देना चाहिए। 

सुखी रहिए, पर सावधानी के साथ...

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