Thursday, 21 November 2019

Article : सोच को सलाम


सोच को सलाम


आज का मेरा article एक सच्चे महान इंसान के ऊपर है, जिन्हे दिल्ली में तो बहुत लोग जानते हैं, और अब तो इनकी ख्याति दिल्ली से बाहर भी पहुँचने लगी है।

आज मैं दिल्ली के अनूप खन्ना जी की बात कर रही हूँ, इनकी माँ जब वृद्ध हो गयी, और उनके बहुत से दाँत टूट गए। तो वह कहने लगीं, मैं तो अब भोजन खा नहीं पाती हूँ, तो मेरे हिस्से का खाना किसी जरूरतमन्द को दे दो। तो अनूप जी बोले, आप कितना खाती हैं, जो किसी का भला हो जाएगा।

पर माँ की बात मन में रह गयी, अपने दोस्तों को बात बताई। सब को बात जंच गयी, और शुरू हो गयी, “दादी की रसोई” जहां मात्र 5 रुपए में देसी घी से निर्मित उच्च गुणवत्ता का भोजन दिया जाता है।

ये भोजन इतना स्वादिष्ट होता है, कि गरीब, अमीर सब खाना खाने आने लगे। अनूप जी की सेवा भाव को देख कर लोगों ने धन राशि का दान देना प्रारम्भ कर दिया।

जहां से वो राशन लेते हैं, वो उन्हें सस्ते दाम में राशन देने लगा, सब्जी वाला थोक के भाव में सब्जी दे देता, जिस ऑटो से वो खाना लाते थे, वो इन्हें कम पैसे में पहुंचा देता।

अनूप जी ने कभी इसके लिए सरकार से मदद नहीं मांगी, ना सरकार को कोसा, कि वो कुछ नहीं करती। वे कहते हैं, सरकार को कोसने वालों, तुमने क्या किया है? हर बात का जिम्मा सरकार को क्यों देना? कुछ काम हम भी तो कर सकते हैं।

आप अपना कर्म करें, ये मत सोचिए, कौन क्या कर रहा है? आप कैसे करेंगे? स्वयं ईश्वर इस तरह से आपके पास लोगों की सहायता भेजेंगे, कि आप का काम रुकेगा नहीं। आप बस अच्छा करने की सोच और जज्बा रखिए, अपना  काम पूर्ण ईमानदारी से करिए, फिर कारवाँ तो अपने आप बनता ही जाता है।

रोज 2 घंटे में ये करीब 450-500 तक के लोगों को भोजन करा देते हैं। उसमें भी हर रोज का menu change होता है।

दादी की रसोई के अलावा, बिहार के बाढ़ग्रस्त होने पर 2017 में इन्होंने मदद पहुँचाने की बात की, लोगों ने धन राशि दान की। 5 लाख रुपए एकत्र हुए, भारी मात्रा में राशन इकठ्ठा हुआ। ट्रक द्वारा सहायता पहुंचाई जा रही थी, लोगों को शक था, ना जाने राशन वहाँ पहुंचेगा कि नहीं।

अनूप जी ने ट्रक driver से उसका phone number लिया, पूछा कितने दिन में पहुँचोगे? और उसके पहुँचने के पहले flight से खुद बिहार पहुँच गए। सारे अन्न का वितरण खुद भी किया, उसका video बनाया। फिर सभी दान कर्ताओं को भेज दिया। सबको विश्वास हो गया, दान उचित हाथों तक गया है।

सलाम है, उनकी समाज सेवा के जज्बे और लगन को। जब भी दिल्ली आयें, दादी की रसोई से एक बार खाना जरूर खाएं, और उन्हे दान की राशि देकर समाज सेवा का अभिन्न अंग बने।

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