Tuesday, 1 May 2018

Story of life : विडम्बना

विडम्बना


आज उसकी ज़िंदगी में एक बार फिर बहुत बड़ा दिन आया। उसकी कोख में एक नन्हें शिशु ने पनाह ली थी। अंकित ने lab से आकर positive report दी थी। सुधा, अंकित और उनकी बेटी, तीनों मिलकर खूब झूमे। अंकित  आते समय मिठाई भी ले आए थे। दोनों पति-पत्नी ने बड़े मन से यह खुशखबरी अपने घर के और सदस्यों को भी सुनाई। सभी लोग खुशखबरी सुनकर खुश तो हुए पर साथ ही बोलने से भी नहीं चूक रहे थे कि अबकी बार बेटा होना चाहिए।
यह सब सुन, सुधा सहम सी गयी, कि अगर फिर बेटी हो गयी तो?
    
अंकित का भरपूर सहयोग था सुधा को। उन्होंने कभी उससे बेटा-बेटी के लिए कुछ नहीं कहा। बल्कि हमेशा यही कहते, कि जो भी हो स्वस्थ होना चाहिए।
उसके बाद भी सुधा को सभी की कही बेटे वाली बात कानो में गूँजती रहती। यह सुखद पल, उसके लिए चिंता का विषय बन गया। खुशी में खिलने के बजाए वो चिंता से सूखती जा रही थी।
आखिरकार, वो क्षण भी आ गया जब उस नन्हे मेहमान का आगमन होना था।
डॉक्टर को दिखाने के वक़्त जब सुधा और अंकित ने ऑपरेशन के साथ ही family planning के operation की भी बात करी, तो डॉक्टर के प्रश्न से वो हतप्रभ रह गए। डॉक्टर ने उनसे पूछा कि पहला बच्चा क्या है? और बेटी है यह जानने के बाद ये पूछना कि family planning के operation के लिए आप sure हैं? ये आप दोनों का निर्णय है? ये प्रश्न उस डॉक्टर ने किसी medical की पढ़ाई में नहीं सीखे, बल्कि इस समाज से सीखे थे, जिसमें हम सांस लेते हैं। घुटन भरी सांस...
डॉक्टर को, सुधा और अंकित ने कई बार समझाया, कि अब जो भी हो हमें और बच्चे नहीं चाहिए।
सुधा के बगल के कमरे में भी एक अन्य महिला admit हुई थी। और उसके भी पहली बेटी ही थी।
Operation के बाद डॉक्टर ने सबको खुशखबरी दी। बधाई हो! बेटा हुआ है। सुधा के कमरे में हर्षोल्लास मनाया जा रहा था। किन्तु बगल वाले कमरे में अंधेरा फैला हुआ था। पता चला, कि उसके फिर से बेटी हुई है। तभी सन्नाटे को चीरती हुई, उस अभागी बेटी की रोने की आवाज़ आई। लग रहा था, कि उसे चुप कराने को वहाँ कोई भी नहीं था, यहाँ तक कि उसकी माँ भी उसे अपनी गोदी में उठा कर, चुप कराना नहीं चाह रही थी।

सुधा सोच रही थी, कि मेरे बेटे ने पैदा होकर मुझे बचा लिया, नहीं तो अकेले मेरे और मेरे पति के सोचने से क्या होता? शायद मेरे कमरे का माहौल भी कुछ बगल के कमरे सा ही होता। ये कैसी विडम्बना है, कि एक बेटी भी नहीं चाहती कि उसके सिर्फ बेटियाँ हों। क्या ऐसा माहौल जो कि बच्चे-बच्चे में पक्षपात करता हो वो स्वस्थ समाज का गठन कर सकता है

9 comments:


  1. Dono hi badhate maan..
    Beti beta ek samaan..

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    1. यही सोच तो,जागृत करनी है,तभी तो स्वस्थ समाज का गठन हो सकता है👏👏👏

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    2. विडम्बना ःःकहानी से लेखिका ने ,समाज के सत्य को उजागर करने का ,सफल प्रयास किया है ।👍👍👍

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    3. सादर धन्यवाद
      आप जैसे पाठकों का पाठन,मेरे ब्लॉग को सार्थकता प्रदान करता है

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  2. Nice story ma'am..Your story reminded me the real life incident of mine..I am sharing the same with you..
    छोटी बेटी के लिए स्कूल से मैसेज आया... your ward has been selected as the best all rounder student of the class..
    अगले दिन हमें बच्चों के स्कूल बुलाया गया । स्कूल के ऑडिटोरियम में बैठे हुए मेरा मन 4 वर्ष पूर्व की अतीत की स्मृतियों में खो गया...
    आपकी पहली भी बेटी है न ...यह नंबर लीजिए ..अपने 3 माह के गर्भ की नियमित जांच करवा कर डॉक्टर के क्लीनिक से निकलते समय किसी महिला की आवाज ने हमें टोका... पीछे मुड़कर देखा डॉक्टर साहिबा की नर्स ने धीरे से हाथ में एक पर्ची दबा दी....अब की बार जांच करा लेना... फिर से लड़की हो तो.. वह कहते कहते रुक गई हमने एक दूसरे की ओर देखा और पर्ची उसके हाथ में वापस थमाते हुए कहा ..जो भी हो हम उसे हटाएंगे नहीं...
    घर की ओर लौटते समय हम विस्मित थे!!लिंग निर्धारण पर इतने सख्त कानून की व्यवस्था होने के बाद भी ये ग़ैर क़ानूनी धंधे ....तभी तालियों की गड़गड़ाहट मुझे वर्तमान समय में खींच लायी..बेटी के साथ हमें भी स्टेज पर आमन्त्रित किया जा रहा था..स्टेज की सीढियाँ चढ़ते समय ये पंक्तियां मुझे सटीक प्रतीत हो रहीं थीं...
    "मेरी बेटी मेरा अभिमान"

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    1. Thank you Nimisha
      कहानी को वास्तविकता प्रदान कर जीवित कर दिया

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    2. Thank you ma'am for sharing it☺

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  3. मेरी बेटी मेरा अभिमान ,अक्षरशः सत्य है ,मर्मस्पर्शी लेख है🤓🤓

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