Wednesday, 12 December 2018

Story Of Life : बाबू जी का फैसला


बाबू जी का फैसला 


संजना संजीव की नयी नयी शादी हुई थी। संजना अपने माँ-पापा की एकलौती बेटी थी।
घर में भी किसी का ज्यादा आना जाना नहीं था। gathering कभी होती भी, तो होटल या क्लब में होती थी। सबका अपना अलग कमरा था, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं रहता था, वहीं संजीव का भरा-पूरा परिवार था।

संजीव के घर में माँ और बाबू जी, बड़े भैया-भाभी, राजीव रंजना और उनका एक बेटा राज था। छोटी बहन संध्या थी। माँ बाबू जी का एक कमरा था, भैया-भाभी और छुटकू का एक कमरा था, संजीव और संध्या का एक कमरा था। पर संजीव के घर में सब मिलजुल के रहते थे। कोई भी किसी के कमरे में बैठ जाता था, यहाँ तक कोई भी किसी के कमरे में सो जाता था।
घर में दोस्त, रिश्तेदारों का भी तांता लगा रहता था। संजीव की शादी के बाद से संध्या माँ- बाबू जी कमरे में ही रहने लगी थी।
संजना को सारे परिवार का पूरे समय एक दूसरे में घुसा रहना बिलकुल भी नहीं भा रहा था। शुरू शुरू में तो, जब भी वो और संजीव साथ साथ होते, कभी कोई कभी कोई उनके कमरे में चला आता। और उन्हें नजदीक देख कर sorry sorry कह कर चला जाता। पर कुछ ही दिन में सब समझ गए थे, कि संजना को सबका उसके कमरे में आना पसंद नहीं है। तब से छुटकू तक भी जल्दी चाची के कमरे में नहीं जाता था।
जब भी संजना कुछ बनाती तो, माँ भाभी या संध्या उसकी help करने पहुँच जातीं, पर जब बनाए हुए खाने की तारीफ होती, तो सब कहते, संजना है ही बहुत perfect । सबने उसकी help की है, कोई नहीं बोलता।
एक दिन संजना को बुखार आ गया। माँ ने सारा घर सर पे उठा लिया। सब लग जाओ, मेरी संजना को ठीक करने में। कोई संजना की पसंद का खाना बना रहा था। और अपना छुटकू तो यही तके रह रहा था, कब चाची उठ रही हैं। light जला दे, उनकी sleeper उठा के दे दे। जब सो जाए तो light बंद कर दे। और खेले भी एकदम चुपचाप कि चाची को बिलकुल भी disturbance ना हो। इतना ध्यान और प्यार संजना को पहली बार मिला था।
इन सब के बाद भी संजना को वहाँ रहना अच्छा नहीं लग रहा था। ये बात बाबू जी समझ गए। पर ये बात उन्होने किसी को नहीं बताई, पर वे मन ही मन सोचने लगे, कि ऐसा क्या करें कि सबके साथ साथ संजना भी खुश रहे।
तभी उन्हें एक उपाय सूझ गया। उन्होने सबको बुला कर कहा...
आखिर बाबू जी को क्या उपाय सूझा, जानते हैं, बाबू जी का फैसला ( भाग -२ ) में 

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