Sunday, 21 June 2020

Poem : ध्यान


आप सभी को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ, आप सभी सुखी रहें, स्वस्थ रहें।

आज की यह कविता हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त
इंदौर की उर्मिला मेहता जी की है।

इस कविता के माध्यम से उन्होंने ध्यान को ही सर्वोच्च माना है।

ध्यान

Image courtesy : Pinrest

जिसे  खोजती थी मैं सदा 
तन मन औ' धन के योग से
 क्या है लक्ष्य जीवन का 
औ' ईश्वर किस लिए मौजूद है ?
अच्छाई क्या औ'बुराई क्या है,
 हँसना रोना किसलिये 
जब तक न थी इसकी समझ,
संसार ये निस्सार था  
मानुष जनम पाकर भी
यह सार्थक नहीं हो पाया था ।
 गुरु की कृपा आशीष से 
आनंद की बरखा हुई  
अपने ही ओजस मन को जैसे
जानने की तृषा हुई  
देखकर मन में उजाला , 
तमस आप ही बह गया 
आनंद की परिभाषा को ज्यों 
नया रूप ही मिल गया 
 अब क्षुद्र तुच्छ सी बातों का
  जैसे वजूद ही ना रहा  
आनंद शांति और हँसी का 
एक खजाना मिल गया  
धन्यवाद तो क्या गुरु को, 
शब्दों का बस खेल है  
लक्ष्य-जीवन किया निश्चित 
श्रेष्ठ पथ बस ध्यान है।

Disclaimer:
इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।


3 comments:

  1. सुंदर प्रस्तुति ।ध्यान जीवन की मूल भूत आवश्यकता है

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    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद

      Delete
  2. धन्यवाद उर्मिला जी 🙏🏻

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