Tuesday, 27 December 2022

Story of Life: बंटवारा प्रेम का (भाग - 2)

यह एक ऐसी कहानी है, जिससे हर एक लड़की जुड़ी हुई है। 

बंटवारा प्रेम का (भाग - 1) के आगे...

बंटवारा प्रेम का (भाग - 2)



बच्चे के रूदन की आवाज सुनाई दी तो, सब एक दूसरे को बधाई देने लगे। 

जब नर्स बच्चे को लेकर सबके सामने पहुंची तो, सबको बधाई देते हुए देख कर सकुचाते हुए बोली

बेटी हुई है! 

थोड़ी देर सन्नाटा पसर गया, सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे...

फिर थोड़ी देर बाद बच्चे की दादी आगे बढ़ी और मुस्कुराते हुए बोलीं, लक्ष्मी माता आई हैं, हमारे द्वार, सबको करो प्रणाम🙏🏻

बच्चे की नानी भी आगे बढ़ चुकी थीं और प्यार से बोली, मां जगदम्बा स्वयं प्रकट हुई हैं, कहकर उन्होंने बच्ची के चरण स्पर्श कर लिए।

थोड़ी देर में ही फिर से पूरे अस्पताल में बधाइयों का सिलसिला और खुशी की लहर छा गई।

नर्स को भी भरपूर इनाम दिया गया। 

जब अड़ोसी-पड़ोसी लोगों को पता चला कि बेटी हुई है तो वो बोलने लगे, अब मालती के सारे लाड़ खत्म हो जाएंगे... पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।

अभी भी मालती और बच्ची का उतने ही प्यार से ध्यान रखा जा रहा था।

नामकरण संस्कार भी बड़े धूमधाम से मनाया गया और क्योंकि उसके पैदा होने, सब जगह खुशी की लहर छा गई थी, अतः उसका नाम खुशी ही रख दिया।

खुशी अपने ददिहाल ननिहाल दोनों जगह लाडली थी। उस एक के तीन नाम थे, लक्ष्मी, जगदंबा और खुशी...

हां खुशी, सबसे ज्यादा अपने खुशी नाम से खुश थी। 

खुशी के होने के चंद सालों बाद दो जुड़वां भाई हुए। वो लड़के थे और एक साथ दो भी। फिर भी उनके होने से घर में वो खुशहाली ना छाई, जो खुशी के होने से हुई थी।

होती भी कैसे?

 पहला बच्चा, पहला ही होता है, उसके आने से सिर्फ वो नहीं आता है, बल्कि उसके साथ आती है, एक अनूठी खुशी, सबका पहली बार नये रिश्ते में बंधने का अटूट बंधन.. 

पहली बार मां-पापा बनना, पहली बार दादी-नानी, बुआ-चाचा,  मौसी-मामा, बनना... सब ही तो पहली बार बन रहे होते हैं। 

उस सुख का एहसास, यह सोचने ही नहीं देता है कि बच्चा क्या हुआ है, लड़का या लड़की? 

तो बस दो भाई होने के बाद भी, सब जगह खुशी को ही सबसे ज्यादा प्यार मिलता था।

फिर एक छोटी सी बहन‌ भी हो गई, पर सबका नंबर बाद में आता था, क्योंकि लाडली तो हमारी खुशी ही थी। 

छोटे भाइयों और बहन को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि खुशी अपने छोटे भाइयों और बहन को इतना प्यार करती थी, कि सबकी कमी पूरी हो जाती थी।

खुशी जो उनसे कह देती, उनके लिए पत्थर की लकीर हों जाती।

आगे पढें, बंटवारा प्रेम का (भाग - 3) में 

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