Wednesday, 30 October 2024

Article : छोटी दीपावली के कई नाम क्यों?

आज दीपावली के पांच-दिवसीय त्यौहार का दूसरा दिन है। इसे बहुत से नामों से जाना जाता है।

जैसे छोटी दीपावली, रुप चौदस/चतुर्दशी, नरक चौदस/चतुर्दशी आदि, साथ ही कहीं-कहीं पर इसे हनुमान जी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

पर क्या कारण हैं इन नामों के? या क्यों छोटी दीपावली को इतने सारे नामों से पुकारते हैं।

छोटी दीपावली के कई नाम क्यों?

1) छोटी दीपावली : 

चौदस या चतुर्दशी को छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह दिन दीपावली से ठीक एक दिन पहले आता है। 

प्रभू श्री राम के आगमन का समाचार, अयोध्या में पहुंच चुका था, इस दिन से ही लोगों ने घर की उसी तरह साज-सज्जा करनी आरंभ कर दी थी, जैसे दीपावली पर करते हैं। इस दिन पूरे घर में 14 दीप जलाने की परंपरा होती है। 

दीपावली की तरह ही मनाए जाने के कारण इस दिन को छोटी दिवाली कहा जाने लगा है। 


2) रूप चौदस / चतुर्दशी :

दीपोत्सव के दूसरे दिन को रूप चौदस भी कहते हैं। माना जाता है कि महालक्ष्मी उन्हीं लोगों पर कृपा बरसाती हैं, जो साफ-सफाई से रहते हैं, इसी मान्यता की वजह से लक्ष्मी पूजा से पहले रूप चौदस पर भक्त, अपने घर‌ को, खुद को सजाते-संवारते हैं। 

कहा जाता है, कि इस दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा करने से रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है।


3) नरक चौदस / चतुर्दशी :

धार्मिक मान्यता के अनुसार, छोटी दिवाली के दिन, अर्थात् चौदस के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी या नरक चौदस भी कहा जाता है।  इस दिन लोग राक्षस पर भगवान कृष्ण की जीत का जश्न मनाते हैं।

एक और मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह पूजा करने से मृत्यु के बाद नरक (नर्क) में जाने से बचा जा सकता है। लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है, कि कोई दुनिया भर के दुष्कर्म करे और यमराज जी की पूजा करे तो सब पुन्य में बदल जाएगा। जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल प्राप्त होगा। 

ईश्वर की पूजा अर्चना करने से हमारे पुन्य कर्मों का श्रेष्ठ फल मिलता है। शुभ फल शीघ्र मिलता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से नरक चतुर्दशी का दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। 


4) हनुमान जन्मोत्सव :

रामायण के अनुसार हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था। उस दिन मंगलवार था, मेष लग्न और स्वाती नक्षत्र था।

महावीर हनुमान को भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार कहा जाता है और वे प्रभू श्री राम के अनन्य भक्त हैं।

हनुमान जी ने वानर जाति में जन्म लिया। उनकी माता का नाम अंजना (अंजनी) और उनके पिता वानर राज केशरी हैं। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार हनुमान जी को पवन पुत्र भी कहते हैं। 

इसलिए इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।


आप सभी को छोटी दीपावली, नरक चौदस, रूप चौदस व‌ हनुमान जन्मोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

श्री हरि व माता लक्ष्मी की कृपा सदैव हम सब पर बनी रहे 🙏🏻

Tuesday, 29 October 2024

Article : धनतेरस पर क्यों खरीदें झाड़ू

हिन्दुओं का प्रमुख पर्व दीपावली माना जाता है, जो कि पांच दिवसीय त्यौहार है, और आज से प्रारंभ हो रहा है।

हिंदू धर्म में धनतेरस के पर्व को बहुत खास माना जाता है। इस दिन से दिवाली पर्व की शुरुआत होती है, जिसकी रौनक भाई दूज तक रहती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा का विधान है। इस दिन समुद्र मंथन के समय भगवान धन्वंतरि ने अमृत कलश लेकर अवतार लिया था। धनवंतरि धन-वैभव और आयुर्वेद के देवता हैं।

पंचांग के अनुसार धनतेरस का त्योहार हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस साल 29 अक्टूबर 2024 को धनतेरस है। ज्योतिष गणना के अनुसार धनतेरस के दिन त्रिग्रही योग, त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग, लक्ष्मी नारायण योग, महापुरुष राजयोग, कुल 5 शुभ संयोग बन रहे हैं। 

इस संयोग में भगवान धन्वंतरि, यमराज और कुबेर देव की पूजा अर्चना करना बेहद लाभकारी साबित होगा। 

वहीं इस दिन सोना-चांदी, बर्तन, वस्त्र व झाड़ू खरीदने की परंपरा सदियों से चली आ रही हैं। 

सोना-चांदी, बर्तन, वस्त्र आदि समझ आता है कि त्यौहार के वैभव और ऐश्वर्य व festivity के लिए खरीदे जाते हैं।

परंतु क्या आप जानते हैं कि धनतेरस के दिन झाड़ू क्यों खरीदी जाती हैं?

अगर नहीं, तो आइए जान लेते है।

धनतेरस पर क्यों खरीदें झाड़ू

1) Why to buy a broom :

हमारे शास्त्रों में झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि झाडू घर में शुभता और संपन्नता लाती है। सदियों से धनतेरस पर झाड़ू खरीदना शुभ माना जाता है।

साथ ही मत्स्य पुराण में भी इसका जिक्र किया गया है, उसके अनुसार धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने से घर में बरकत बनी रहती हैं। साथ ही साधक की आर्थिक स्थिति पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदी जाती हैं।


2) Which broom to purchase :

आजकल बाजार में फूल झाड़ू और सींक की झाड़ू के साथ-साथ plastic की झाड़ू भी मिल रही है।

पर अगर आप दीपावली के उपलक्ष्य पर झाड़ू खरीद रहे हैं तो, इस दौरान फूल झाड़ू को घर लाना, सबसे ज़्यादा लाभकारी माना जाता है। 

हमेशा फूल वाली और घनी झाड़ू खरीदनी चाहिए, कहा जाता है कि जितनी अधिक घनी झाड़ू होगी, उसका सकारात्मक प्रभाव उतना ही ज्यादा होगा। 

इसके अलावा, झाड़ू का सींक टूटा नहीं होना चाहिए। टूटी हुई झाड़ू को अशुभ माना जाता है।

इसके अतिरिक्त आप सींक की झाड़ू भी खरीद सकते हैं, लेकिन ध्यान रखिएगा, plastic की झाड़ू भूलकर भी न खरीदें। 

हां, अगर और किसी वक्त झाड़ू खरीद रहे हैं, तो plastic की झाड़ू भी एक अच्छा option है, यह लम्बे समय तक चलती है। पर फूल झाड़ू जितनी अच्छी धूल-धक्कड़ साफ़ नहीं करती है।


3) Tying a thread on broom :

यदि आप धनतेरस पर झाड़ू खरीदकर घर ला रहे हैं, तो पहले उसपर सफेद रंग का धागा बांधें। मान्यता है कि इससे मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।


4) The old (used) broom :

घर में झाड़ू को कभी भी खड़ा करके नहीं रखना चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है। हमेशा झाड़ू को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए, जहां हर किसी की नजर न पडे़। इस दौरान, घर की पुरानी झाड़ू को किसी साफ व उचित स्थान पर छुपा कर रख देना चाहिए। जिससे अगर आप की पुरानी झाड़ू सही अवस्था में है तो भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल की जा सके।

बस एक बात का हो सके तो ध्यान रखिएगा, कि एक साथ दो झाड़ू न रखें, खासकर एक दूसरे पर चढ़ा कर के। 

झाड़ू, एक ऐसी आवश्यक वस्तु है, जिसे अमीर से लेकर गरीब तक सभी खरीद सकते हैं और खरीदते भी हैं। 

शायद इस article को पढ़कर आपके सभी संशय दूर हो गये होंगे... यदि कोई और quary हो तो कृपया comment box पर पूछ लीजिएगा....


आप सभी को दीपावली के पंचदिवसीय त्यौहार पर हार्दिक शुभकामनाएँ। 

यह पर्व सभी की जिंदगी में सुख-समृद्धि और प्रसन्नता लाए। 

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Monday, 28 October 2024

Article : समर, हिन्दुत्व की रक्षा के लिए...

आज का यह article, एक समर (लड़ाई) है, हिन्दुत्व की रक्षा का...

और इस समर के होने की बहुत ज़्यादा आवश्यकता भी है, क्योंकि बहुत सालों से एक slow poison देते हुए हिन्दुत्व का अंत करते जा रहे हैं, और जाने-अनजाने, हम सब हिन्दू, इसके भागीदार बनते जा रहे हैं....

जानना है कैसे?

समर‌, हिन्दुत्व की रक्षा के लिए…

1) Firecrackers (पटाखे) :

दीपावली के आते ही पटाखों द्वारा फैलने वाले प्रदूषण की दुहाई, बच्चों को school में 10 दिन पहले से दी जानी शुरू कर दी जाती है। उनके कोमल मन-मस्तिष्क में इतने अच्छे से यह बात बैठा दी जाती है कि कोई भी बच्चा अपने माता-पिता से पटाखे लाने की ज़िद ही न करें और अगर कोई उन्हें पटाखे लाकर दे दे, तो भी उन्हें जलाने को वो लालायित न हो।

माना थोड़ा प्रदूषण होता है, पर केवल दीपावली में? Christmas पर, New Year पर, किसी के स्वागत पर, कोई बड़ा event होने पर, जीत का जश्न मनाने पर, पटाखे फोड़ने से प्रदूषण नहीं होता है क्या? 

कमाल है ना? दीपावली पर फोड़े जाने वाले पटाखे ही केवल प्रदूषण फैलाते हैं... 

ईद पर सैकड़ों बकरे-मुर्गे कट जाएँ तो, किसी तरह का कुछ ग़लत नहीं होगा। किसी school में 'बच्चों को जीव-हत्या नहीं करनी चाहिए', यह समझा कर brain wash नहीं किया जाएगा।


2) Traditional lamps (दीए) :

दीपावली पर दीए जलाकर पूजा की जाती है, लेकिन वो दिन दूर नहीं जब उसे भी प्रदूषण फैलाने वाले कहकर पाबंदी लगा दी जाए, वैसे भी lightings तो आती ही हैं बाजार में, electric दीयों की भी खूब धूम है।

Electric दीया भी बाजार में यह कहकर खूब बेचे जा रहे हैं कि, ना तेल फैलने का झंझट और ना धुएं से प्रदूषण....

अब यह छोटे-छोटे दीए भी अपना अस्तित्व कब तक बचा पाएंगे, ईश्वर ही जाने...


3) Food items (पकवान) :

आज कल लोग, मिठाई और पकवान को हिकारत भरी हुई नजरों से देखने लगे हैं, below standard समझने लगे हैं। 

तो वहीं कुछ लोग, कुछ ज्यादा ही diet conscious हो गये हैं, पूड़ी-कचौड़ी, मीठा-मिठाई देखते ही उन्हें उसमें fat and calories दिखने लगती है, 440 volt का current लग जाएगा।

वो उन्हें न अपने घर में बनाएंगे, न लाएंगे, न खाएंगे। मिठाई की जगह dryfruits and chocolates ने ले ली है और पकवान के नाम पर pizza, pasta, burger and dine out ने ले ली है। 

उसमें fat and calories नहीं दिखेगी... यह सब करना high standards में शुमार है। 

दीपावली पर आने वाले, खील-खिलौने, लइया-बताशे, यह तो अब सब जगह से obsolete ही हो गये हैं।


4) Makeup (श्रृंगार) :

उसकी भी दुर्गति हुई रखी है, एक दिन के लिए भी भारतीय वेशभूषा और श्रृंगार नहीं किया जाता है। उस दिन भी छोटे-छोटे, या इधर-उधर से खुले, फटे, कपड़े ही पहनें जाएंगे। Ladies से न मांग में सिंदूर लगाया जाएगा, न माथे पर बिंदी और न gents से माथे पर तिलक लगाया जाएगा।


5) Cleaning (साफ-सफाई) :

दीपावली पर साफ-सफाई केवल घर से जाले, धूल-धक्कड़ साफ़ करना ही नहीं होता है, बल्कि एक जरिया है, साल भर में बिताए गए लम्हों से रूबरू होने का, क्योंकि साफ-सफाई करते हुए न जाने कितनी हसीन यादों से मुलाकात होती है...

आजकल, बहुत सी companies, किराए पर सफाई करने वालों की facilities देती हैं। बस उनको बुलाओ और काम आसान.... 

एक तरह से देखा जाए, तो जो दीपावली का स्वरूप हमारे बचपन में था, वैसा अब कुछ नहीं रह गया है। न वो साफ-सफाई, न वो सजावट, न वो मिठाई-पकवान, न वो श्रृंगार, न वो पूजा-पाठ...


6) Changes (with time) :

धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया और बदलता ही जा भी रहा है, जो कहीं न कहीं, इस बात का द्योतक है कि हिन्दुत्व का अंत होता जा रहा है। जिसके जिम्मेदार भी हम हिन्दू हैं और जिसका कारण भी हम हिन्दू ही हैं।

पर आखिर कब तक और क्यों? 

हम अपने ही अस्तित्व पर प्रहार करते रहेंगे? सोते रहेंगे? Ignore करते रहेंगे? मूर्ख बनते रहेंगे? खोखली आधुनिकता को बढ़ावा देते रहेंगे? 

आखिर कब हमें एहसास होगा कि हमारा एक कर्तव्य, अपने धर्म, अपनी संस्कृति की रक्षा करना भी है।

चलिए, दीपावली से पहले से ही शुरू करें, समर, हिन्दुत्व की रक्षा का...

बहुत तोड़-मरोड़ लिया, हमारे धर्म, आस्था और त्यौहार को, पर बस, अब नहीं...

अब हम वापस से, पांच-दिवसीय दीपोत्सव के त्यौहार को उसी पारम्परिक रूप से, उसी धूम से मनाएंगे, जैसे हम बचपन में मनाया करते थे।

घर को साफ-सुथरा करके, दीप और फूलों से सजा कर, मिठायों और पकवानों की खुशबू से महका कर, खील-खिलौने, लइया-बताशे लाकर,पारंपरिक वस्त्राभूषण धारण कर, सम्पूर्ण रीति-रिवाजों के साथ पूजा-पाठ करके दीपावली मनाएंगे। तभी तो ईश्वर, घर के कोने-कोने में सुख-समृद्धि बरसाएंगे।


सभी को दीपावली के पांच दिवसीय त्यौहार की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻 🎉