'शरद पूर्णिमा' और पूर्णिमा से क्यों ख़ास
पुराणों
के अनुसार कुछ रात्रियों को विशेष महत्व दिया गया है। जिनमें हैं शिवरात्रि, नवरात्रि और उन्हीं में
शामिल हैं शरद पूर्णिमा की रात्रि।
चन्द्र
को देवों में औषधियों का देवता माना गया है। कहा जाता है, इस दिन चंद्रमा अपनी 16
कलाओं से पूर्ण होकर अमृत की वर्षा करता है। शीतलता के प्रतीक चन्द्र देव को
प्रसाद भी शीतल ही चढ़ाया जाता है। अतः आज के दिन चावल की खीर के भोग का विशेष
महत्व है। रात्रि में चाँद निकल आने के पश्चात चावल की खीर को बर्तन में रख कर कुछ
घंटों के लिए इस तरह रखा जाता है, कि उसमे चंद्रमा की सीधी किरणें पड़े। ऐसा माना जाता है, इस खीर का सेवन करने से पुनर्योवन
शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
लंकाधिपति
रावण भी शरद पूर्णिमा की रात्रि को दर्पण के माध्यम से चंद्र की किरणों को एकत्र
कर अपनी नाभि में अमरत्व क्षमता को बढ़ाया करता था।
ये
तो रही पौराणिक बातें, पर हमारे युवा, पौराणिक नहीं अपितु
विज्ञान में विश्वास रखते हैं। वैज्ञानिक सिद्धांतों व तथ्यों ने भी इसकी पुष्टि
की है कि शरद पूर्णिमा में औषिधियों की स्पंदन क्षमता अधिक बढ़ जाती है,जिससे ओसमोसिस प्रोसैस होने में रक्तिकाओं में एक
विशेष ध्वनि उत्पन्न हो जाती है।
साथ
ही सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र व अश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से
ऊर्जा का संग्रह होता है।
अतः
शरद पूर्णिमा की रात्रि को चाँदनी रात में भ्रमण करने से रोगों का नाश होता है।
यहाँ तक कि दमा के मरीजों के लिए तो ये राम बाण है।
खीर
बनाने का महत्व- वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल व अमृत तत्व होता है, ये तत्व चंद्र की किरणों से अधिक तेज़ी
से ऊर्जा को शोषित करने की क्षमता रखता है, चावल के स्टार्च से ये
प्रक्रिया और तेज़ी से हो जाती है। इसीलिए खीर को खुले आसमान के नीचे रखा जाता
है। जिससे खीर में चंद्र किरणों के औषधिय
गुण समाहित हो जाएँ, और उसका सेवन करके हम में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाए।
चाँदी
का बर्तन - खीर को यदि चाँदी के बर्तन में रखा जाए, तो इसकी औषधीय क्षमता और
अधिक बढ़ जाती है, क्योंकि चाँदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, व इससे विषाणु दूर रहते
हैं।
शरद
पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। बंगाल, उड़ीसा में आज के दिन ही
लक्ष्मी माँ की पूजा की जाती है। कहा जाता है, आज की रात लक्ष्मी माँ ये
देखने निकलती हैं, कि कौन जाग रहा है? इसी कारण इसे कोजागर
पूर्णिमा भी कहते हैं। जो जाग रहा होता है, माँ उसे धन-धान्य प्रदान
करती हैं। और सोने वाले के घर में निवास नहीं करती हैं।
जब
भी पूर्णिमा होती है, चाँद पूर्ण होता है। तो वो रात तो वैसे ही अपनी अलग छटा
बिखेर रही होती है। फिर अगर रात शरद पूर्णिमा की हो, तो सोने पे सुहागा हो
जाता है, एक तो
रात हसीन, उस पर
आप इस रात को घूमेंगे तो निरोगी भी हो जाएंगे। तो सोच क्या रहे हैं। बढ़िया सी चावल
की खीर बनाएँ, चंद्र देव को भोग लगाएँ, खीर रूपी प्रसाद का सब के
साथ उसका आनंद लें फिर अपने पूरे परिवार के साथ रात्रि-भ्रमण अवश्य कीजिये।
सब
का साथ हो, और निरोगी काया हो, बस यही तो ज़िंदगी का सार
है।