आसरा
मिश्रा जी बड़े बाबू थे। सीमित सी आमदनी और बड़ा सा परिवार, हमेशा हाथ तंग ही रहता।
ऐसे में खाने-पीने का खर्च ही बड़ी मुश्किल से निकल पाता था, तो भला पढ़ाई-लिखाई की कौन सोचता।
मिश्रा जी तो बड़े बाबू बन गये थे, पर पैसों की तंगी और बच्चों की नालायकी ऐसी थी कि कोई चपरासी बन जाए तो बड़ी बात थी।
बस छुटके वरुण से ही मिश्रा जी को थोड़ा सा आसरा था। वही था जो पढ़-लिख लेता था।
कई बार छुटके की पढ़ाई-लिखाई के कारण घर में नमक रोटी ही खाने को मिल पाती थी। इस कारण सब वरुण से बहुत चिढ़ते थे।
ऐसे ही साल बीतते गए और सभी बड़े हो गए, दोनों बेटियों की शादी करते हुए मिश्रा जी ने घर को गिरवी रख दिया।
यही तो एक पूर्वजों की निशानी थी, वो अकेला asset भी हाथ से जाता रहा।
मिश्रा जी पत्नी और तीनों बेटे झोपड़ी में रहने आ गये। वरुण पढ़ने में अच्छा था तो उसकी अच्छी नौकरी लग गई थी। उसी के आसरे सबका गुजारा चल रहा था।
कुछ दिन बाद तीनों बेटों की शादी भी हो गई।
वरुण को अमेरिका से अच्छा offer मिल गया था, तो वो अपनी पत्नी के साथ चला गया।
अब तो घर में आए दिन नमक रोटी खाने को मिलती थी, वो भी बहुत सारे झगड़े के साथ।
पांच साल में, बहुओं ने तो खूब ताने सुनाए, वरुण पर सबसे ज्यादा खर्चा करते थे, जब वो ही छोड़ कर चल दिया तो हमारा आसरा किस मुंह से करे बैठें हैं।
कुछ हमारे वालों पर खर्च कर भी देते तो सूखी रोटी तो ना खानी पड़ती।
बेटे भी यह नहीं कहते थे कि हम ही नालायक थे, कभी पढ़ते ही नहीं थे तो बाबूजी खर्च करके भी क्या करते। वो भी माँ-बाबू जी को खरी खोटी सुनाने से बाज नहीं आते थे।
तंग आकर मिश्रा जी ने दोनों बेटों को घर से निकाल दिया।
मिश्रा जी की पत्नी बोलीं, छुटके के आसरे थे, वो छोड़कर सबसे पहले चल दिया, बाकी दोनों बेटों को आप ने निकाल दिया।
अब बुढ़ापे में किसके आसरे रहेंगे?
अरे... परेशान क्यों होती हो, ऊपर वाले के आसरे थे, उसके ही रहेंगे।
तभी घर के बाहर एक बड़ी सी चमकती हुई Car आ कर रुकी। उसमें से एक driver बाहर आया और बोला साहब, आप दोनों घर चलिए...
मिश्रा जी और उनकी पत्नी दोनों आंखें खोल खोल कर चमकती हुई कार को देख रहे थे।
उनके घर के आगे कभी scooter या bike नहीं रुकती थी, फिर car वो भी इतनी बड़ी और चमकती हुई।
मंत्र मुग्ध से दोनों एक साथ बोले, किस के....
आगे पढ़े, आसरा (भाग- 2) में...