मैं भी बहू थीं
लक्ष्मी पुराने ख्यालों
वाली थी, जिसका मानना था, घर में
गृहणी को सभी काम अपने आप करने चाहिए, घर के कामों के लिए नौकर रखना, आलस और
बर्बादी दर्शाता है।
इसलिए उसने घर के कामों के
लिए कोई भी नौकर नहीं रखे थे।
उसका एकलौता बेटा रचित शादी
योग्य हो चला था। कई रिश्ते आ रहे थे, पर ज्यादातर नौकरीपेशा थीं।
लक्ष्मी सबको इंकार करती
जा रही थी, आखिर उसे बिना job वाली पढ़ी- लिखी कामना मिल ही गयी।
बड़ी धूमधाम से विवाह
सम्पन्न हो गया।
कामना के गृह-प्रवेश के
साथ ही लक्ष्मी ने सभी कामों को हाथ लगाना बंद कर दिया। और सब कामना के कंधों पर
डाल कर अब वह दिन भर आराम करती, और जब देखो तब कुछ ना कुछ कामों के फरमान यह कह कर जारी
कर देती, कि मैं भी बहू थी, तो
कितना काम करती थी, आजकल की जैसी ना थी।
कामना के मायके में बर्तन, झाड़ू-
पोछा वाली लगी हुई थी। फिर पढ़ने में भी बहुत प्रखर थी, तो घर
के कामों को कम ही हाथ लगाती थी।
ससुराल में आ कर एकदम से पड़े इतने काम और सास के
ताने उसे जीने नहीं दे रहे थे। पर उस पर पहाड़ तो तब टूट गया, जब रचित
की बीमार के कारण नौकरी चली गयी।
रचित बहुत दुखी था, कामना ने
रचित से कहा, private company थी, तो वो आपके ठीक होने का wait तो नहीं
करती, पर आप परेशान क्यों हो रहे हैं? आप इतने
होनहार हैं, ठीक हो जाइए, दूसरी मिल जाएगी। और अगर आप कहे, तो मैं
भी job ढूँढने का प्रयास करूँ।
तुमको, माँ
करने नहीं देगी।
आप मनाइए ना, माँ जी
को। अगर जरूरत पड़ने पर काम ही ना आ सके, तो इतने पढे-लिखे होने का क्या लाभ?
आगे जानने के लिए पढ़ें मैं भी बहू थी (भाग-2)