Vote - एक सही चुनाव।
आरक्षण article को लोगों द्वारा
बहुत पसंद किया गया। पर उसपे
मिली प्रतिक्रियाओं में एक मुद्दा सामने आया, कि अब आरक्षण देश और समाज
की विसंगतियों को दूर
करने का उपाय नहीं रह गया है। यह सिर्फ एक वोट-बैंक की राजनीति
के हित में इस्तेमाल
किए जाने वाला हथियार बन गया है। साथ ही एक और
विचार सामने आया कि general caste में unity नहीं है।
बहुत सोचने पर ये ही समझ आया, कि हम लोग शुरुआत से ही गलत हैं।
जब vote appealing की
बारी आती है, तब
हम general caste वाले discussion तो बहुत करते
हैं, ये
योजना होनी चाहिए, वो
योजना होनी चाहिए। सरकार
ये ठीक से नहीं कर रही, इसे
ऐसा करना चाहिए, या
वैसा करना चाहिए।
पर एक सही candidate
का चुनाव करने के
लिए हम vote डालने नहीं जाएंगे। क्योंकि हमे केवल छींटाकशी
ही करनी आती है, vote तो अधिकांशतः गरीब
लोग या आरक्षित जाति के लोग ही देने जाते हैं।
ऐसा लगता
है कि हम अगर किसी को vote
करते दिख जाएंगे, तो
हमारी तौहीन हो
जाएगी।
तो फिर जनाब! रोना किस बात का है? जो
बोओगे, काटोगे
भी वही।
जिसका candidate चुना जाएगा, फिर आगे सुना भी तो उसका ही जाएगा।
मेरा ये कहना, उन चंद
लोगों से बिलकुल
नहीं है, जो
vote देने जाते हैं। पर
आप ही बताइये, उन
चंद लोगों के करने
से कुछ होगा? सोचना
तो सभी को ही पड़ेगा।
समाज का सही प्रतिनिधि चुनने के लिए समाज का सही और
पूरा प्रतिनिधित्व
होना भी चाहिए।
जब अटल जी ब्रह्मलीन हुए, तो बहुतों ने
उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी। पर, उस पर ये
सवाल उठाने के लिए उस समय social
media पर एक message
भी काफी viral हुआ था, “उनके जाने के बाद दुख मनाने वालों- तब साथ दिया होता, तो
शायद देश आज कुछ और ही होता”।
बिलकुल,
अच्छे नेताओं को खोने के बाद केवल दुख मनाने से कुछ नहीं होता है। जब वे देश की सेवा में सेवारत हैं, तब ही उनका साथ देकर, देश को उन्नतशील बनाएँ।
सभी
देशभक्तों को सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि, हम सही नेता
का चुनाव करें। उनको सही समय पर वोट करें, और
देश के विकास में
उनको सहयोग प्रदान करें।
अब सवाल ये उठता है कि उचित उम्मीदवार
है कौन?
बहुत से
राजनेता अपने अपने कार्यों को प्रदर्शित कर चुके
हैं।
किसी को भी ये समझाने की आवश्यकता नहीं
है, कि किसे चुना जाना चाहिए।
किया गया काम खुद चीख-चीख कर बता रहा है, कि किसे चुना जाना चाहिए।
जिसकी सरकार के time
में घोटाले ना हुए हों, देश के पास धन-सम्पदा बढ़ी हो, भारत
का देश-विदेश में नाम हुआ हो, जिसने अपनों
के विकास के बारे में
ना सोच के सब के विकास के बारे में सोचा हो, उसे
ही चुना जाना चाहिए।
तो अब भी आप क्या सोच रहे हैं? समझ ही गए होंगे, किसे चुनना है? किसका साथ देना
है? और अगर आप अभी भी सोच ही रहे हैं, तब ये तो सिद्ध होता ही है,
कि आप उनमें शामिल थे, जिन्हें अटल जी के
जाने का कोई दुख नहीं था। आपको ना तो देश के विकास से मतलब है, ना ही अच्छे नेताओं के चले जाने से।
आपको मतलब है तो, सिर्फ अपनी
दाल- रोटी से।
वो भी ना जाने कितने दिनों तक मिलेगी, अगर हम सही
वोट नहीं डालेंगे।