Tuesday 21 June 2022

India's Heritage : पतंजलि योग सूत्र का उद्भव: एक अनोखी कथा

योग, ध्यान, तपस्या, हमेशा से ही भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। 

फिर वो चाहे ईश्वरीय अवतार हों, ऋषि मुनि हों या राक्षस हों। हमारे सभी वेद पुराणों में वर्णित है कि सभी, योग, ध्यान, तपस्या में लीन रहा करते थे।

योग, ध्यान, तपस्या के द्वारा, उन्होंने अनेकों अविस्मरणीय वरदान प्राप्त किए। फिर वो चाहे, अकाट्य शक्ति, सामर्थ्य व सत्ता के लिए किया गया हो, शरीर को वज्र जैसा बनाना हो, जीवित ही स्वर्ग प्रस्थान करना हो, ईश्वर प्राप्ति करना हो, योग, सबमें सहायक रहा है। 

भारतीय संस्कृति में शिव को पहला योगी माना गया है। योग की परम्परा भारत में हजारों साल से चली आ रही है।

भारतीय दर्शन में योग दर्शन के प्रतिपादक महर्षि पतंजलि हैं। उन्होंने जन जन तक योग का महत्व, उसकी आवश्यकता और उसके लाभ को अपने योग सूत्र द्वारा प्रस्तुत किया। जो आज भी पतंजलि के योग सूत्र के नाम से प्रसिद्ध हैं।

आज योग दिवस है, इस उपलक्ष्य में हम अपने India's Heritage( धरोहर) segment में महर्षि पतंजलि जी से ही जुड़ी पौराणिक कथा प्रस्तुत करने जा रहे हैं।

पतंजलि योग सूत्र का उद्भव: एक अनोखी कथा 

बहुत समय पहले की बात है, सभी ऋषि-मुनि भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बोले, "भगवन, आपने धन्वन्तरि का रूप ले कर शारीरिक रोगों के उपचार हेतु आयुर्वेद दिया, पर अभी भी पृथ्वी पर लोग काम, क्रोध और मन की वासनाओं से पीड़ित हैं, इनसे मुक्ति का तरीका क्या है? अधिकतर लोग शारीरिक ही नहीं, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी विकारों से दुखी होते हैं।"


भगवान आदिशेष सर्प की शैया पर लेटे हुए थे; सहस्त्र मुख वाले आदिशेष सर्प, जागरूकता का प्रतीक है। उन्होंने ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुन कर, जागरूकता स्वरुप आदिशेष को महर्षि पतंजलि के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया। इस तरह योग का ज्ञान प्रदान करने हेतु पृथ्वी पर महर्षि पतंजलि ने अवतार लिया। 


महर्षि पतंजलि के नियम

पतंजलि ने कहा की जब तक ज्ञान चर्चा हेतु एक साथ 1000 शिष्य इकट्ठे नहीं होते, वह योग सूत्रों का प्रतिपादन नहीं करेंगे। ऐसे में विंध्य पर्वत के दक्षिण में 1000 शिष्य इकट्ठे हुए। महर्षि की एक और शर्त थी, उन्होंने कहा कि उनके और शिष्यों के बीच एक पर्दा रहेगा, जब तक ज्ञान का सत्र समाप्त न हो उस परदे को नहीं उठाया जाएगा और न ही कक्ष से बाहर जाया जायेगा।


महर्षि पतंजलि ने 1000 शिष्यों को परदे के पीछे रहकर बिना एक शब्द बोले ज्ञान देना आरम्भ किया। यह एक अलौकिक दृश्य था, शिष्य अभूतपूर्व ऊर्जा का संचार महसूस कर रहे थे, पतंजलि बिना कुछ कहे ज्ञान का संपादन कर रहे थे।


शर्त की अवहेलना

एक शिष्य को लघुशंका के लिए कक्ष छोड़ना पड़ा, उसने सोचा की वह चुपचाप जायेगा और वापिस आ जायेगा। 

उस शिष्य के जाने के बाद, एक और शिष्य को जिज्ञासा हुई की महर्षि परदे के पीछे क्या कर रहे है? उसने उत्सुकतावश पर्दा उठा दिया। परदे के उठाते ही वहां उपस्थित सभी शिष्य भस्म हो गए। यह देख पतंजलि अत्यंत दुखी हुए। उसी समय लघुशंका से लौटे शिष्य ने कक्ष में प्रवेश किया और बिना अनुमति के बाहर जाने के लिए क्षमा-याचना की।


महर्षि पतंजलि का श्राप

करुणावश महर्षि पतंजलि ने बचे हुए सभी योग सूत्र उस शिष्य को दे दिए पर साथ ही उसे नियम की अवहेलना के लिए ब्रह्मराक्षस बन जाने का श्राप दिया। उन्होंने कहा की जब तक तुम ये ज्ञान, किसी एक योग्य विद्यार्थी को नहीं देते, तब तक तुम ब्रह्मराक्षस बने रहोगे। ऐसा कहकर पतंजलि अंतर्ध्यान हो गए।

 इसका अर्थ ये है की जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है तो वह अधिक खतरनाक है, वह ब्रह्मराक्षस जैसी अवस्था है। ऐसे ही जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है, तो वह अबोध व्यक्ति के अपराध करने से अधिक खतरनाक है।

शिष्य ब्रह्मराक्षस बन कर एक पेड़ पर लटक गया और उस रास्ते से निकलने वाले राहगीरों से वह एक प्रश्न पूछता, जो भी उसका सही उत्तर नहीं देता; वह उसे खा जाता था। कुछ हजार वर्षो तक ऐसे ही चलता रहा और इस ब्रह्मराक्षस को कोई भी सक्षम विद्यार्थी नहीं मिल पाया। 

गुरु बने शिष्य

ऐसी स्थिति देख कर करुणा स्वरुप महर्षि पतंजलि ही तब एक विद्यार्थी बन कर ब्रह्मराक्षस को मुक्त करने के लिये प्रकट हुए।

ब्रह्मराक्षस को यह ज्ञात नहीं था कि उसके गुरु जी ही स्वयं शिष्य बन कर आएं हैं।

उस ने वही ज्ञान, पेड़ के ऊपर बिठाकर महर्षि पतंजलि को दिया जिसे उन्होंने ताड़ के पत्तो पर लिखा। ब्रह्मराक्षस रात में ही ज्ञान दिया करता था, पतंजलि अपने आप को खरोंच कर खून निकालते और पत्तों पर लिखते। ऐसा सात दिन तक चलता रहा। अंत में पतंजलि थक गए, उन्होंने लिखित पत्तों को एक कपडे में रखा और स्नान करने चले गए। जब वह वापिस लौटे तो उन्होंने देखा की एक बकरी उनके अधिकतर पत्तो को खा गयी है, पतंजलि बचे हुए पत्तों को समेट कर ले गए। जब ब्रह्मराक्षस श्राप मुक्त हुआ, तो उसे बोध हुआ कि उसकी मुक्ति के लिए, उसके गुरु जी, स्वयं शिष्य बन कर आएं हैं और बहुत से कष्ट भी झेले।

उसने अपने गुरु जी, महर्षि पतंजलि को मुक्ति प्रदान करने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद दिया।

पौराणिक कथा यहीं समाप्त होती है।

योग का जीवन में बहुत ज्यादा महत्व है तथापि, कालान्तर में योग का महत्व कम होने लगा था। पर जब  से मोदी जी, भारत के प्रधानमंत्री बने हैं, उनका हर कदम देश और देश की संस्कृति को सफल और सुदृढ़ बनाने की ओर ही  अग्रसित रहा है। 

27 सितंबर 2014 को, संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'योग दिवस' के अवसर के लिए अपना सुझाव रखा। भारत द्वारा दिए गए प्रस्ताव को तब रिकॉर्ड 177 सदस्य देशों ने समर्थन दिया था। जिसके बाद 21 जून 2015 को दुनिया भर में पहला अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

21 जून ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस क्यों

दरअसल, 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की वजह यह है कि, 21 जून उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे लंबा दिन होता है। साल के इस दिन सूर्य की किरणें सबसे ज़्यादा देर तक धरती पर रहती हैं, जिसको प्रतीकात्मक रूप से मनुष्य के स्वास्थ्य और जीवन से जोड़ा जाता हैसदियों से माना जाता है कि योग करने से लम्बी उम्र होती है।

तो आइए, भारत के गौरव "योग", जिसकी उत्पत्ति भी भारत में हुई और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत ने ही पहुंचाया, उसे आज पूरे मनोयोग से करें।

आज ही नहीं अपितु उसे प्रतिदिन अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करें।

आप सभी को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🙏🏻