वक़्त
धीरज का सोने का business
था,
उसकी दो सुंदर सुशील बेटियाँ थी, घर धन-धान्य से
भरपूर था। अपनी बड़ी बेटी लक्ष्मी का विवाह
धीरज ने अपने समान ही सोने के businessmen दीपक के लड़के राघव से करवा दिया। पर जब बारी छोटी बेटी नेहा
की आई, उसने businessmen के घर विवाह
करने से साफ मना कर दिया। अपने नाम के अनुरूप ही उसे सिर्फ
प्यार ही चाहिए था, धन
दौलत की चमक से वो
कोसों दूर थी।
उसने अपने साथ पढ़ने वाले साधारण घर के अति बुद्धिमान विशाल से विवाह करने की बात अपने
पिता को बता दी। धीरज को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आई, वो बोले बेटा
कहाँ तू महलों की पली
और कहाँ ये साधारण परिवार का लड़का, ये तुझे
दाल-रोटी के सिवा कुछ नहीं दे पाएगा।
नेहा बोली, मुझे उससे
ज्यादा की लालसा भी नहीं है। क्या करते, बेटी की
ज़िद के आगे? उन्होंने नेहा
और विशाल का विवाह
करा दिया,
विवाह के पहले ही विशाल ने
एक बड़ी कंपनी में job join
कर ली थी। दोनों का
जीवन हंसी खुशी बीत रहा था।
धीरज ने नया showroom खोला, तो दोनों बेटियों
को बुलाया, अपनी
अपनी हैसियत के
अनुसार दोनों बेटियों की वेषभूषा व gift
थे। जब विशाल धीरज
और उनके मित्रगण के मध्य खड़ा था, तो
सबने उसकी वेषभूषा
का उपहास किया। ये बात विशाल को अंदर तक घर कर गयी।
उसने ठान लिया, कि
अगले एक साल में ही
वो अपने ससुर से अधिक धनवान हो कर दिखाएगा।
अत्यधिक मेहनती व बुद्धिमान विशाल जुट गया, अपने
आपको सिद्ध करने में। उसने अपनी बुद्धि और मेहनत से मार्केट में शाख जमानी शुरू कर
दी, पर
इन सब में उसने नेहा
को समय देना धीमे धीमे कम कर दिया। नेहा को विशाल के जुनून
की वजह नहीं पता थी। विशाल
में आए इस परिवर्तन से वो बिलकुल भी खुश नहीं थी। एक
साल में ही शहर में
विशाल ने हीरे का एक बड़ा showroom खोला, उसने
inauguration में उन सबको बुलाया,
जो उसके ससुर कि पार्टी
में आए थे, सब
चकाचौंध थे, धीरज
को अपनी बेटी पर बहुत
नाज हो रहा था, कि
उनकी बेटी ने हीरा पसंद
किया था। पर आज नेहा बहुत दुखी थी, विशाल भी उसके
पिता कि तरह धन दौलत कि चकाचौंध में खोये जा रहा था। कई–2 दिन
दोनों की बात भी
नहीं हुआ करती थी।
नेहा माँ बनने वाली थी, पर इतनी बड़ी खबर
ने भी विशाल और नेहा की बढ़ी हुई दूरी को कम नहीं किया। विशाल को अब बस धन का अंबार लगाने का
जुनून छा गया था। नेहा ने प्रसव के समय विशाल को अपने नजदीक रहने को कहा, विशाल उसे शहर के सबसे बड़े hospital में ले गया, पर अचानक business call आ गया, और वो नेहा को दर्द
में ही छोड़ के चला गया।
नेहा ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया, पर विशाल वहाँ न था।
बड़े धूम-धाम से उसका नाम विजय रखा गया, क्योंकि विशाल को
वो अपने विजय का प्रतीक लगता था।
विजय बड़ा होने लगा, पर उस मासूम के साथ समय बिताने के लिए विशाल के पास वक़्त
ही नहीं था, अब
तक तो वो नेहा के
पिता से भी ज्यादा बड़ा businessmen
बन गया
था।
विशाल का हर समय अपने business में खोये रहने के कारण नेहा धीमे
धीमे बीमार रहने लगी। बहुत बड़े बड़े doctor का इलाज
चलने लगा, विशाल पैसा
पानी की
तरह बहा रहा था, पर
नेहा दिन पर दिन और
अधिक बीमार होती जा रही थी, विशाल समझ
नहीं पा रहा था कि इसकी क्या वजह है?
विशाल नेहा के सिरहाने गया, और उसने उससे पूछा, क्या कारण है, कि इतने बड़े-बड़े doctor भी तुम्हें ठीक नहीं कर पा रहे हैं,
नेहा ने कहा, तुमने
मुझ से वो छीन लिया
है, जिसके
कारण मैं तुम्हारे
पास आई थी।
मैंने छीन लिया है! मैंने तो तुम्हें बस
दिया ही दिया है, ये
इतना बड़ा घर, ऐशो-आराम, धन दौलत।
आज हमारे पास तुम्हारे पिता से भी अधिक धन-धान्य
है।
नेहा बोली, मुझे इन सब की लालसा होती, तो मैं पहले ही बड़े
businessmen से शादी
कर लेती, तुमसे क्यूँ करती?
एक स्त्री को धन से भी ज्यादा अपने पति का वक़्त चाहिए होता है, जब
वो माँ बनती है, तब उसकी पहली कामना होती है, कि
उसका पति उसके साथ
हो, जब
उनका बच्चा बड़ा हो
रहा हो, तब
दोनों मिल के उसे
अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा करें, इससे अनमोल इस जहां में
कुछ नहीं है, तुमने मुझसे अपना
वक़्त छीन लिया, मैं तो
तब ज्यादा सुखी थी, जब
हम लोगों कि जरूरतें भी पूरी
हो रही थीं, और तुम्हारा
साथ भी था।
विशाल अब सब समझ गया था, जीवन का सुख सिर्फ
अधिकता में नहीं
संतुलन में है, उसने काम का समय निर्धारण
कर लिया था, अब वो नेहा और विजय को वक़्त भी देने
लगा था, नेहा
भी बिना किसी doctor और medicine
के ठीक होने लगी
थी।