रिश्तों की हद (भाग -2) के आगे..
रिश्तों की हद (भाग -3)
कितनी खूबसूरत है यह दुनिया!
नहीं श्यामली, तुम ग़लत सोच रही हो..
क्या ग़लत? बताओ तो, क्या तुम सारे दोस्त, हमारे अपने नहीं हो? क्या तुम हमारी जरूरत में काम नहीं आओगे?
बिल्कुल अपने हैं, मैंने कब मना किया?
फिर भी मैं तुम से यह कहूंगी कि तुम्हारी सोच ग़लत है।
हम सारे तुम्हारे अपने हैं, पर मैं फिर repeat करुंगी, सारे! मतलब तुम्हारा मायका, ससुराल और हम दोस्त भी...
और जिस sequence में कहा है, उसी sequence में..
सबसे पहले मायका, फिर ससुराल, फिर दोस्त...
पर सभी रिश्तों की अपनी एक हद होती है...
मायका भी सबसे पहले इसलिए है, क्योंकि हम उनके ही ज्यादा नजदीक होते हैं और उनसे ही अपने दिल की कहने में संकोच नहीं करते हैं।
पर अगर हम अपने ससुराल वालों के साथ भी उतने ही जुड़ जाएं, जितने मायके वालों के साथ हैं तो नजदीकी उनसे भी हो जाएगी और संकोच भी ख़त्म हो जाएगा। और फिर वो ही सबसे पहले होंगे।
अब तुम कहोगी श्यामली, कि मायके वालों से जुड़ने के लिए तुमने कोई मेहनत, कोई प्रयास नहीं किया, पर यहां तो...
बिल्कुल रितिका, तुमने मेरे मन की बात बोल दी, श्यामली ने जिज्ञासा पूर्वक कहा..
करते हैं, हम तब भी मेहनत और प्रयास दोनों कर रहे होते हैं, और वो भी दोनों तरफ से, (हम भी और हमारे मां-पापा भी) पर तब वो इतनी slow and continuous process में चल रहा होता है कि हम समझ ही नहीं पाते हैं। दूसरा उस समय हमारे बुद्धि का विकास भी हो रहा होता है। तो सब मिलकर बहुत smoothly conditioning हो जाती है।
जबकि जब हम ससुराल आते हैं, बुद्धि विकसित हो चुकी होती है और कम समय में ज्यादा प्रयास करने पड़ते हैं और वो भी दोनों तरफ से कोई भी करना नहीं चाहता हैं। बस इसलिए ही कभी भी दूरी नहीं पटती है और एक gape पूरी जिंदगी बना ही रहता है।
इसलिए दोनों की ही अपनी एक हद बनी रहती है।
यह तो हुई ससुराल और मायके के लोगों से बनने और ना बनने की बात...
पर जब बात होती है, दोस्तों की, तो उनकी भी हद होती है, पर कुछ अलग..
वो तब ही ज्यादा helpful रहेंगे, जब तक नजदीकी रहेगी, फिर वो चाहे तब हो, जब आप उनके साथ एक ही पढ़ाई करते हों, या एक ही जगह job करते हो या एक ही जगह रहते हों या आपको ऐसी जगह help की जरूरत हो, जहां वो हों, और help भी ऐसी हो कि वो बहुत अधिक दिनों की ना हो... दोस्ती का रिश्ता, तो वैसे भी तब तक ही ज्यादा सशक्त होता है, जब तक नजदीकी ज्यादा रहती है।
जबकि तुम्हें दूर की या बहुत दिनों की help चाहिए तो उसके लिए अपने means तुम्हारे अपने मां-पापा, भाई-बहन, सास-ससुर जेठ,ननद-देवर ही काम आएंगे।
दूसरा तुम्हारी हर ख़ुशी और दुःख में दोस्त तब तक ही खड़े रहते हैं, जब तक घर से कोई ना आए, उनके आते से ही दोस्त पीछे हट जाते हैं।
पूरी जिंदगी में ना जाने कितने दोस्त बनते हैं, मिलते हैं, छूटते हैं, पर हमारे घर परिवार के लोग, सारी जिंदगी के लिए एक ही रहते हैं। इसलिए ही उनका फ़र्ज़ भी ज्यादा होता है और हक भी और हद भी...
हर रिश्ते की अपनी हद होती है और सब उस हद तक ही सहायक होते हैं।
इसलिए दोस्त बनाओ, दोस्ती भी निभाओ, पर अपनों से रिश्ता बनाकर, उनसे जुड़े रहकर, मायके से भी और ससुराल से भी..
रितिका, तुमने मुझे जो आज समझाया है, ऐसा ना मैंने कभी सोचा, ना ही समझा..
मैं आज ही अपने ससुराल और मायके दोनों तरफ, सबको बता देती हूँ।
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