शारदीय नवरात्र के पश्चात् दशहरा पर्व, पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐🙏🏻
माता रानी और प्रभू श्रीराम, हम सभी के जीवन में सुख समृद्धि लेकर आए...
आज आप को विरासत के अंतर्गत एक ऐसी कहानी के विषय में बताने जा रहे हैं, जो शायद आप ने नहीं सुनी होगी। पर यह कहानी, देवी मां, भगवान श्री राम जी व रावण के जीवन से जुड़ी हुई, त्रेता युग की कहानी है...
इस कहानी के जरिए आपको ज्ञात होगा कि, हमारी संस्कृत भाषा और मंत्र कितने सशक्त और सटीक हैं। जहाँ सिर्फ अक्षर के हेर-फेर से कितना कुछ बदल जाता है।
आज की हमारी कहानी माँ दुर्गा की भक्ति पर भी आधारित है।
आप ने महिषासुर मर्दिनी की कहानी तो बहुत बार सुनी होगी। यदि नहीं सुनी हो तो, कृपया comments box में डाल दीजिएगा, अगली बार उसे भी post कर देंगे।
तो बात उन दिनों की है, जब प्रभू श्रीराम, माता सीता को वापस लाने के लिए रावण से युद्ध करने जा रहे थे।
युद्ध से पहले का नियम था कि देवी-देवताओं की पूजा अर्चना की जाती थी। अतः प्रभू श्रीराम और रावण, दोनों ही देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न तरह की पूजा अर्चना कर रहे थे।
अपितु प्रभू श्रीराम तो स्वयं ईश्वर थे, उन्हें किसी पूजा अर्चना की क्या आवश्यकता? तथापि वह भी पूजा अर्चना कर रहे थे। यह बात अपने आप में प्रभू श्रीराम की महानता और उनके मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को इंगित करती है।
माँ चंडी देवी को प्रसन्न करना
लंका-युद्ध में ब्रह्माजी ने श्रीराम से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने को कहा।
उनके बताए अनुसार, चंडी पूजन और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई।
वहीं दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लोभ में विजय कामना से चंडी पाठ प्रारंभ किया।
यह बात इंद्रदेव ने पवन देव के माध्यम से प्रभू श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि चंडी पाठ, रावण के पूजा-पाठ, समाप्त होने से पहले ही अति शीघ्र पूर्ण कर लिया जाए।
इधर हवन सामग्री में पूजा स्थल से एक नीलकमल, रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा नज़र आने लगा।
भय इस बात का था कि देवी माँ रुष्ट न हो जाएं। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल असंभव थी।
तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग 'कमलनयन नवकंच लोचन' भी कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए।
प्रभु राम जैसे ही तूणीर से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तब देवी प्रकट हुईं और हाथ पकड़कर कहा "राम मैं प्रसन्न हूं" और प्रभू श्रीराम को विजयश्री का आशीर्वाद दे दिया।
वहीं रावण के चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमानजी सेवा में जुट गए।
निःस्वार्थ सेवा देखकर ब्राह्मणों ने हनुमानजी से वर मांगने को कहा।
इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा, "प्रभु! आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए।"
ब्राह्मण इस रहस्य को समझ नहीं सके और तथास्तु कह दिया। "मंत्र में जयादेवी... भूर्तिहरिणी में 'ह' के स्थान पर 'क' उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है।"
'भूर्तिहरिणी' यानी कि प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और 'भूर्तिकरिणी' का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करा दिया। हनुमानजी महाराज ने श्लोक में 'ह' की जगह 'क' करा के रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।
नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक भगवान राम ने मां भगवती की पूजा की थी और मां भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करके 10वें दिन लंका के राजा रावण का वध किया था।
इस कहानी को पढ़कर आप को एहसास हुआ होगा कि, संस्कृत भाषा कितनी सुदृढ, सशक्त और सटीक है। और यह हमारे सनातन की, हमारे भारत की भाषा है।🙏🏻
विश्व की कोई भी भाषा, संस्कृत भाषा-सी समृद्धशाली, सुदृढ़, सशक्त और सटीक नहीं है। हमें गर्व है कि हमारी हिन्दी भाषा का उद्भव संस्कृत भाषा से ही हुआ है।
माता रानी की जय 🚩 जय श्रीराम 🚩🙏🏻🙏🏻
शुभ विजय दशमी 🙏🏻
जय हिन्द जय हिन्दी 🚩