माँ की दवाई
कुंदन रोज़ घर से 20 गुब्बारे लाता और चौराहों में दौड़-दौड़ कर बेचा करता।
इससे मुश्किल से उसके पास इतना ही पैसा इकट्ठा हो पाता कि एक दिन खाना मिलता और एक दिन फांकों में गुजरते क्योंकि माँ की दवाई में बहुत पैसे लग जाते थे।
फिर भी कुंदन पूरे जोश से गुब्बारे बेचता रहता।
एक दिन कुंदन गुब्बारे बेचने के लिए, एक car के नज़दीक गया।
Car में एक समाजसेवी बैठा था। कुंदन को देखकर बोला...
तुम गुब्बारे क्यों बेचते हो?
पढ़ाई क्यों नहीं करते हो?
यह बताइए, क्या होगा पढ़ाई कर के?
समाजसेवी बोला, तुम पढ़-लिख जाओगे तो बड़े होकर पैसे कमाओगे।
कुंदन बोला, वो तो मैं अभी भी कमा रहा हूँ।
समाजसेवी बोला, अरे, इतने कम नहीं और ज्यादा कमा सकते हो।
अच्छा, पर जब मैं पढ़ाई करुंगा, तब पैसे कहाँ से आएंगे और मेरी पढ़ाई के लिए... वो पैसे कहाँ से आएंगे। खाने-पीने के लिए भी तो पैसे चाहिए।
अरे, छोटी सी जान! अभी से तुझे पैसे की कितनी फ़िक्र है। मैं दूंगा तुझे पैसे, पढ़ने, खाने-पीने सब के लिए।
कुंदन बोला, मेरी माँ बहुत बीमार रहती हैं, उसकी दवाई के लिए ही मैं गुब्बारे बेचता हूँ। अगर मैं पढ़ने जाऊंगा तो वो बिना दवाई के नहीं बचेंगी।
मुझे नहीं पढ़ना।
समाजसेवी बोला -कुंदन, अगर मैं उसके लिए भी पैसे दे दूं तो?
कुंदन सुनकर खुशी से झूम उठा, बोला अगर आप मेरी माँ की दवाई के पैसे देंगे और मुझे सिर्फ एक time ही खाना देंगे तो भी चलेगा। मुझे बहुत सारा काम करना भी मंजूर है...
पर आप ने जिस दिन से मेरी माँ की दवाई के पैसे नहीं दिए, मैं सब छोड़कर आ जाउंगा।
समाजसेवी, कुंदन का माँ के प्रति प्रेम देखकर गदगद हो गया। वो बोला, बेटा ऐसा कभी नहीं होगा, अगर तुम मन लगाकर पढ़ोगे।
आप जो कहेंगे, सब करुंगा...
कुंदन मन लगाकर पढ़ने लगा, उसे रोज़ खाना भी मिल रहा था और माँ का उचित इलाज भी हो रहा था।
कुंदन का माँ के प्रति प्रेम और कर्तव्य उसे आगे बढ़ने को प्रेरित करता रहा क्योंकि वो माँ की दवाई के लिए कुछ भी करने को तैयार था।