सच्ची श्रद्धांजलि
अभी कश्मीर में भारत के कितने
वीर शहीद हो गए हैं, पहले भी हुए थे, और आगे भी
कितने ही और हो जाएंगे, उसकी कोई गिनती नहीं है।
और हम देशवासी, हम……. हम क्या करेंगे? कुछ दिन दुःख मना लेंगे, अपना DP change
कर लेंगे। Candles
जला लेंगे। या आक्रोश में रहेंगे, कि हम इसका revenge लेंगे।
बस हो गया, फिर...... फिर क्या? फिर वही, आरक्षण का रोना, महंगाई का रोना, जातिवाद, आतंकवाद, और दुनिया की राजनीति।
बस हो गया, फिर...... फिर क्या? फिर वही, आरक्षण का रोना, महंगाई का रोना, जातिवाद, आतंकवाद, और दुनिया की राजनीति।
बस यही; यही तो करने
वाले हैं ना?
जो जवान देश की रक्षा को अपना
लक्ष्य बनाकर army join करते हैं, वो तो घर से ही कफ़न बांध कर जाते हैं। उनके घर वालों को भी
ये ज्ञात रहता है, कि कभी भी उनके शहीद होने का समाचार मिल सकता है।
कितने ही अपने बूढ़े माँ-बाप
को छोड़ जाते हैं, कोई अपनी नव-विवाहिता या नवजात शिशु को पीछे छोड़ जाते हैं।
पर ना तो वो इस बात से डरते
हैं, ना इस बात की उन्हें कोई चिंता होती है। उनके सिर पर तो बस
यही जुनून सवार होता है कि, "मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए"।
तो क्या केवल कुछ दिन का शोक
ही उन्हें श्रद्धांजलि होगी? नहीं, बिलकुल भी नहीं।
अगर उनको श्रद्धांजलि देनी
ही है, तो उसके लिए हमें उनकी ही तरह अपने से ऊपर उठ कर देश के लिए
सोचना होगा।
हमे आरक्षण, महंगाई, जातिवाद, आतंकवाद, और दुनिया
की राजनीति, सब छोड़ना होगा। देश को स्वच्छ और स्वस्थ रखना होगा। देश का किस
तरह से सर्वांगीण विकास हो, इस ओर विचार और कार्य करना होगा। हमें भारत को सम्पूर्ण जगत
में सर्वप्रथम बनाना होगा।
उन्हें भी, और उन सबको
भी जो भारत के लिए शहीद हुए थे, या जिन्होंने भारत को आज़ाद कराया था।
क्योंकि वो तो बस यही कहते
हैं -
मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए..........
कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों, अब तुम्हारे
हवाले वतन साथियों........